नमस्कार, दो तीन महीनो के बीच अपने लिखे हुए कुछ मुक्तक आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं | इन मुक्तकों में कुछ सच कुछ किरदारों को बया करने की कोशिश की है मैने अब आपको इन किरदारो को पहचानना है यहां से आपकी जिम्मेदारी अब ज्यादा बनती है मेरी इन रचनाओं के साथ न्याय करने की
नफरत को धुल चटाया है
मोहब्बत ने गुल खिलाया है
ये कसीदा नही हकीकत है
एकतरफा जनादेश आया है
ऐसे ही हीज्र का गम मनाएंगे हम
खूब हंसेंगे और मुस्कुराएंगे हम
इतनी नजदीकी भी दम घोंट देगी
थोडा नफरत के करीब जाएंगे हम
इंतजार के लम्हे गुज़रते नही जल्दी
मुकद्दर में लिखे हालात बदलते नही जल्दी
जिस्म पर लगे घाव तो मरहम लगाने से भर जाते हैं
जहन पर लगे जख्म भरते नही जल्दी
इंसानों की पोशाक पहनकर आगए हैं
जानवर की जात में बदलकर आगए हैं
नोच नोच कर खाने लगे हैं मासूम बच्चीयों को
लगता है मेरे शहर में भी कुछ आदमखोर आगए
हैं
हयात में किरदार बचाना पड़ता है
जंग में हथियार बचाना पड़ता है
हयात जंग सियासत में शिकस्त हो तो हो
सर नहीं दस्तार बचाना पड़ता है
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इन मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
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