नमस्कार, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे मुक्तको की इस श्रेणी में आज मै आपको पिछले एक महीने के दरमियान में लिखे मेरे कुछ मुक्तक यहां सुना रहा हूँ
अब अमन की आशा की दिखावे की वो आवाज नही आएगी
उनको समझ में ये खरी बात नही आएगी
जिनकी ख्वाहिश है हिन्दुस्तान के टुकडे करना
उनको कश्मीर की खुशहाली कभी राश नही आएगी
अब जाकर खत्म ये महाभारत हुई है
पहले तो केबल तिजारत हुई है
जिस जन्नत को जहन्नुम बनाया गया था
अब वो कश्मीर घाटी भारत हुई है
भक्त सारे कह रहे हैं , सुशासन है सुशासन है
पर मैं ये कहता हूं , कुशासन है कुशासन है
बच्चियों का चीरहरण देखकर आज भी जो चुप है अपने सिंहासनों पर बैठे हुए
वो सब के सब भी , दुशासन हैं दुशासन हैं
मजहब की आड़ में अपने पर हुए जुल्मों का हिसाब दे दिया
एक कानून बनाकर सरकार ने कई प्रयासों को खिताब दे दिया
सही मायने में इंसाफ और बराबरी आज मयस्सर हुई है इन्हें
अब खवातीनो ने मर्दों की गुलामी को तीन तलाक दे दिया
आसमान से जमीन के शफर में नया हौसला ढूँढ रहे हैं
जिंदगानी बदल दे ऐसा कोई फैसला ढूँढ रहे हैं
हम नयी उमर नए परों के परिंदे
अपना पुराना घोंसला छोड़ नया घोंसला ढूँढ रहे हैं
हिंसा और अधर्म का पर्याय देखना हो तो बंगाल आओ कभी
चिलचिलाती धूप में बसंती बयार अनुभव करना हो तो नैनीताल आओ कभी
लगता है एसी कार और पच्चीस मंजिला मकान मे रहकर भरम होने लगा है तुम्हें
सहिष्णुता तुम्हें देखनी ही है अगर तो वक्त निकालकर भोपाल आओ कभी
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इस मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
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