शनिवार, 22 जून 2019

मुक्तक , चार चार लाइनों में बातें करूंगा 6

    नमस्कार, दो तीन महीनो के बीच अपने लिखे हुए कुछ मुक्तक आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं | इन मुक्तकों में कुछ सच कुछ किरदारों को बया करने की कोशिश की है मैने अब आपको इन किरदारो को पहचानना है यहां से आपकी जिम्मेदारी अब ज्यादा बनती है मेरी इन रचनाओं के साथ न्याय करने की

मैने सोचा था कि दरिया के किनारों पर चल रहा हूं मैं
किसी नेक ख्याल शख़्स के विचारों पर चल रहा हूं मैं
मगर अब जाकर जादूगर का तिलिस्म टूटा है
एक क़ातिल के इशारों पर चल रहा हूं मैं

मुझे असहिष्णुता शब्द कहने में डर लगता है
मुझे यकीन है आपको सच सुनने में डर लगता है
यही होगा जमीर मरना , इस मुल्क ने जिन्हें सोने के घर दिए हैं
उन्हें हिन्दुस्तान में रहने में डर लगता है

हिन्दुस्तान की नयी तस्वीर बनायी जा रही है
नफरत फैलाने में पारदर्शिता लायी जा रही है
जातीय समीरण राजनीति का भगवान है
तभी तो भगवानो की जात बताई जा रही है

अब ध्रुवीकरण शब्द मुद्दा बना है
क्या राष्ट्रहित में बोलना मना है
जिन्हें लगता है अब देश केवल एक ही रंग में रंग जाएगा
तो याद रखना की वो एक रंग भी कई रंगों से मिलकर बना है

तुम्हारा सच अपने चश्मे से दिखा रहा है
कोई तो बात है जो तुमसे छुपा रहा है
वो जानता तुम अपने मुल्क से बहोत प्यार करते हो
अपनी जीत के लिए वो तुम्हारी भावनाओ का फायदा उठा रहा है

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      इन मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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