नमस्कार, बीते एक दो महीनो के दरमिया में मैने कुछ मुक्तक लिखे हैं जिन्हें आज मै आपके दयार में रख रहा हूं अब यहां से आपकी जिम्मेदारी है कि आप मेरे इन मुक्तकों के साथ न्याय करें
मुख्तसर शफर हो इसलिए पुराना शहर छोड़ा हैं मैने
नए दिन रात के लिए पुराना साम सहर छोड़ा है मैने
मोहब्बत का एक नया आशियाना बनाने के लिए
उस शहर में अपना पुराना घर छोड़ा हैं मैने
अपने किए के होने वाले अंजाम से चीढ होती है
तपती धूप पसंद लोगों को सर्द साम से चीढ होती है
क्या गज़ब होगा के कोई शैतानो का मुरीद हो यहां
हिन्दुस्तान में अब लोगों को राम के नाम से चीढ होती है
तुझसे दिल लगाने का मलाल है मुझे
अपने दिल की बात न कह पाने का मलाल है मुझे
तेरे मेरे दरमिया ये दूरीया ये दुनिया नही होती तो बहोत अच्छा होता
तेरे बगैर मुस्कुराने का मलाल है मुझ
एक ही हूजरे में कई लोग रहते हैं
खुदा तेरे सजदे में कई लोग रहते हैं
आज पुरानी तसवीरों की एक किताब मिली तो ये जाना
मेरे दिल के हर कोने में कई लोग रहते हैं
जो शर्म उचित वक्त पर आए ना उस शर्म पर लानत है
जो कर्म समाजहित में ना हो उस कर्म पर लानत है
देशप्रेम व्यक्त करने वाले शब्दों के उच्चारण से आपत्ति है जिसे
जिस धर्म में राष्टप्रेम गुनाह है उस धर्म पर लानत है
तू इस कहानी का हिस्सा नया नया नही है
तेरा मेरा किस्सा नया नया नही है
मै जानता हूं वो बहोत खफ़ा है मुझसे
मगर उसका ये गुस्सा नया नया नही है
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इन मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
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