मेरी एक नयी ग़ज़ल देखिए
हाकिम रियाया के दिल की बात कब जानता है
जब शहरों में बगावत उठती है तब जानता है
वो अजनबी होता मेरे गमों से तो राहत होती
मगर यही गम है के वो सब जानता है
दुसरे को भीगता देखकर बहुत खुश होता था वो
जब गई है सिर से छत तो अब जानता है
पिछले महीने तेरे शहर में ज़लज़ला आया था
उसके कहने का मतलब जानता है
ये सवाल मेरी शख्सियत पर हावी है
वो मुझसे क्यों पूछता है जब जानता है
मेरी तरफ़ से मुहब्बत में कोई कमी नही रही
ये बात मेरा राम मेरा रब जानता है
यदि ग़ज़ल अच्छी लगे तो अपने विचार मुझसे अवश्य साझा करें, नमस्कार।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 20 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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वाह
जवाब देंहटाएंसुंदर
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