सोमवार, 8 जुलाई 2019

नज्म, कितनी गरीब है ज़िन्दगी

       नमस्कार, जब से मैने होश संभाला है तब से लेकर आज तक जिंदगी ने मुझे जो भी दिया या है जो कुछ भी मैने महसूस किया है उऩ सभी एहसासो को एक नज्म में पिरोने की कोशिश की है मै अपनी इस कोशिश में कितना कामयाब हुआ हूं ये आप मुझे बताएंगे, अब यहां से आपकी जिम्मेदारी ज्यादा बनती है |

कितनी गरीब है ज़िन्दगी

हर घडी सांसों की मोहताज है
कितनी गरीब है ज़िंन्दगी
कभी आंसू कभी मुस्कान
कभी काम कभी आराम
कितनी अजीब है ज़िंदगी

जब जिसको चाहती है
कई नाच नचा देती है
पल में दौलत से मालामाल
किसी को तो किसी को
एक एक निवाले का
मोहताज बना देती है
फिर भी सबको यहां
कितनी अजीज है ज़िन्दगी

किसी को बेशुमार फन
से नवाजा है तो
तो किसी को अधूरे मन
से तन नवाजा है
कभी नेकी तो कभी पापा है
किसी की ख़ातिर श्राप है
फिर भी अपनी अपनी
नसीब है ज़िन्दगी

     मेरी ये नज्म अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन नज्म को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Trending Posts