शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

नज्म , दिल की बात हो या दिमाग की बात हो

      नमस्कार , हिन्दी उर्दू कविता जिसे साहित्यिक विधा में नज्म कहा जाता है किसी पहचान का मोहताज नही है | भारतीय सिनेमा में नज्में दशको से मुख्य अभिनेताओ , अभिनेत्रीयो के द्वारा पर्दे पर गायी जा रही है और दर्शकों के द्वारा सूनी एवं पसंद की जा रही है | बहरहाल नज्मो का चलन आज के वर्तमान सिनेमा में खत्म हो गया है |

मैने हाल ही में एक नज्म लिखी है जिसे आप सभी मित्रों के हवाले कर रहा हूं , आप सब की दुआए चाहता हूं -

नज्म , दिल की बात
नज्म , दिल की बात 
दिल की बात हो या दिमाग की बात हो

दिल की बात हो
या दिमाग की बात हो
खामोशी है इसीलिए अब तक
ये तय नहीं है

अगर जो दिल की बात हो
तो मुमकिन है कि दिमाग को गवारा ना हो
मगर जो बात न हो तो गुजारा ना हो
चलो तो फिर तय रहा के
दिमाग की बात हो

मगर - मगर जो दिमाग की बात हो
दिल ये कैसे माने
ये तो नादान है ना
दुनियादारी से अनजान है ना
ये तो चाहता है के एक और मुलाकात हो
मगर ये तो दिमाग को मंजूर नहीं

बहुत सोच समझकर सोच रहा हूं
न जाने कब से
और सवाल भी अभी वही है
के किसकी बात हो
दिल की बात हो
या दिमाग की बात हो

     मेरी नज्म के रुप में ये छोटी सी पेशकश आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |          

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