नमस्कार, ये गजल आज लिखा है मैने |आप पढ़े और पढकर बताए की कैसी रही
मन से मासूम दिल का सच्चा होना
इतना आसान भी नहीं है बुढ़ापे मे बच्चा होना
अब ये काबिलियत भी कमजोरीयों के दायरे में आती है
आजकल बुराई है बहोत अच्छा होना
अपने क़ातिल की आह सुनकर भी घबराहट होने लगे
इसी को कहते है दिल का कच्चा होना
इंसाफ़ का वादा किया था सो खुद के साथ इंसाफ़ किया
इसे को कहते है वादे का पक्का होना
वो मुझे आशुओ से तर देखना चाहता था तनहा मुस्कुराता रहा
उसका लाजिम था हक्का बक्का होना
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इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |
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