नमस्कार, अभी मैने एक गजल लिखी है जिसे मैं आब आपके साथ साझा करने जा रहा हूं | मुझे यकीन है की मेरी ये गजल आपको अच्छी लगेगी
किसी बियाबान में कैद हूं मैं
जिस्मे इंसान में कैद हूं मैं
मजबूरन परिंदों की तरह आजाद उड़ भी नही सकता
अपने मकान में कैद हूं मैं
मै चाहूं भी तो मैं से आगे नही निकल सकता
अपनी पहचान में कैद हूं मैं
किसी कि ख्वाहिशों का गला घोटना रिवाज है यहां
कैसे खानदान में कैद हूं मैं
जिसकी मर्जी के बीना एक पत्ता तक नही हिलता
ऐसे भगवान में कैद हूं मैं
यहां लोग जहन से बहरे हैं कोई चीखे भी तो कैसे
कितने सुनसान में कैद हूं मैं
खुशबूदार फूल होना भी कितना बडा गुनाह है
किसी फूलदान में कैद हूं मैं
अपने काम से काम इस्तेमाल करती है दुनिया मुझको
तनहा किसी सामान में कैद हूं मैं
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इन गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
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