गुरुवार, 4 जुलाई 2019

गजल, मोहब्बत के हाथों मजबूर होने की

    नमस्कार, हफ्ते भर पहले मैने एक गजल लिखी है जिसे मैं आज आपके साथ साझा करने जा रहा हूं

मोहब्बत के हाथों मजबूर होने की
सजा मिल रही है बेकसूर होने की

खुद को जमाने भर का बादशाह समझ लेना
यही तो निशानी है गुरुर होने की

किसी के दिल पर बादशाहत चाहते हो
यही वो उमर है फ़ितूर होने की

मुझे लगता है वो मेरी जिस्म का आधा हिस्सा है
उसे शिकायत है मुझसे दूर होने की

सजा बगैर गुनाह किए भी मिल सकती है
हर बार जरूरी नहीं कसूर होने की

शर्त रखकर मोहब्बत हो नहीं सकती
मोहब्बत में हर बात होती है मंजूर होने की

दुनिया चाहती ही यही है कि तन्हा गुमनाम हो जाए
मगर मुझे जिद है मशहूर होने की

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      इन गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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