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शनिवार, 14 मार्च 2020

कविता , चलो पतंगें उडा़ते हैं

    नमस्कार , मकर संक्राती के पावन पर्व पर हमारे देश में शहर शहर गांव-गांव बच्चों एवं बडो़ के द्वारा पतंगें उडा़यी जाती हैं इसी मौको पर अपने बचपन कि यादों को समेटकर मैने एक कविता लिखी हैं

चलो पतंगें उडा़ते हैं

चलो पतंगें उडा़ते हैं
कागज कि नाव रेत के टिले बनाते हैं

फिर कहीं क्रिकेट खेलते हैं
फिर कहीं कंचे खेलते हैं
फिर कहीं पेड़ों से परिंदे उड़ाते हैं
चलो पतंगें उडा़ते हैं

कहीं आम के पत्ते मुर्झाते हैं
कहीं बेरियों के कांटे पॉव में चुभ जाते हैं
अलहड़ बचपन में धूल में खेलते हुए
नई नई तरंगे उड़ाते हैं
चलो पतंगें उडा़ते हैं

एक बार और अमरुद के पेड़ों पर चढ़ जाते हैं
एक बार और गुल्ली डंडा खेलते हुए लड़ जाते हैं
इस बार फिर से छुट्टियों में उमंगे उड़ाते हैं
चलो पतंगें उडा़ते हैं

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      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार | 

सोमवार, 6 जनवरी 2020

कविता . घी अशुद्ध होगया

      नमस्कार , मैने एक नयी कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी ये कविता पसंद आएगी और आप कविता के मुल भाव तक पहुंच पाएंगे

घी अशुद्ध होगया

जो धर्मग्रंथों बेदो पुराणो अपनिषदो
में नही हुआ वो होगया
शुद्धता कि पहचान
शुद्ध कि परिभाषा
अशुद्ध होगया
कैसे होगया तो जबाब मिला
फलाने ने छु दिया
फलाना कौन था ?
फला जाति फला लिंग का इंसान
हे भगवान
कैसे होगा कल्याण
ये तो अपवित्र हो गया
घी अशुद्ध होगया

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कविता . भुख कितनी है मुझको

     नमस्कार , मैने एक नयी कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी ये कविता पसंद आएगी और आप कविता के मुल भाव तक पहुंच पाएंगे

भुख कितनी है मुझको

भुख कितनी है मुझको
किस सिमा तक है मुझको
खाना देखकर क्या कहुं
खाने कि सुगंध वाह क्या कहुं
परोशने वाली ने बडी शांति से
स्वीकारा मेरी भुख को
और थाली गलबहियॉ फैलाया
मेरी भुख का आलिंगन खाने से कराया
स्वाद कि चटकारे बनी मीठी अॉहे
खाना देख पहले तो ललचाई
फिर मुस्कुराई फिर झुकती रही निगाहें
रात कि सुबह होने तक
भुख सारी मिट गई
और मै और खाना इंतजार करने लगे
एक और नयी रात का
एक और नयी भुख का

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कविता . दिल्ली के सिस्टम को आग लग गई

     नमस्कार , मैने एक नयी कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी ये कविता पसंद आएगी और आप कविता के मुल भाव तक पहुंच पाएंगे

दिल्ली के सिस्टम को आग लग गई

दिल्ली के सिस्टम की लगी आग में
कई जिन्दगीयां जल के राख हो गयी
रोते बिलकते परिवारजन रह गए
सांत्वना,मुआवजा देने वाली सरकार रह गई
जीत गया कुशासन,सुशासन कि हार रह गई
कुर्सियां नही बदली,कुर्सियों पर बैठने वाले बदले
फिर विजयी हुआ है भस्टाचार
व्यवस्थाए वही कि वही बिमार रह गयी
जीवन कि किमत बस कुछ लाख ही तो है
सरकार के आगे मां कि कोख लाचार रह गई  

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कविता . तब तुम उससे क्या कहोगे

     नमस्कार , मैने एक नयी कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी ये कविता पसंद आएगी और आप कविता के मुल भाव तक पहुंच पाएंगे

तब तुम उससे क्या कहोगे

जब वो कहेगी
पापा मुझे रास्ते पर चलने में डर लगता है
तब तुम उससे क्या कहोगे
जब वो कहेगी
भईयां मुझे रात के अंधेरे में कही जाने से डर लगता है
तब तुम उससे क्या कहोगे
जब वो कहेगी
सुनों जी मुझे आपके शराब पीके आने से डर लगता है
तब तुम उससे क्या कहोगे

तब तुम उससे क्या कहोगे
जब वो तुमसे पुछेगी
मुझे कोख में हि क्यो मारा जाता है
मेरा बलात्कार कर क्यो जिन्दा जलाया जाता है
मुझे दहेज के लिए क्यो प्रताडित किया जाता है
मुझे पत्नी कहकर शराब के नशे में क्यो पिटा जाता है
मुझे जबरन बेश्या क्यो बनाया जाता है
मेरा बचपन में ही विवाह क्यो कराया जाता है
आखिर मेरा कशुर क्या है
जब वो तुमसे पुछेगी
तब तुम उससे क्या कहोगे

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कविता . नरसंहार . रहने दो

      नमस्कार , मैने दो नयी कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी ये कविताए पसंद आएगी और आप कविता के मुल भाव तक पहुंच पाएंगे

नरसंहार

एक विचारधारा के लोगों ने
एक विधारधारा के लोगों को
एक विचारधाला के उकसावे में
आकर भीषण नरसंहार किया
कानुन व्यवस्था को तार तार किया
सामाजिक मुल्यों का संहार किया
एकता कि भावना का विनाश किया
अब तक इस अन्याय का
न्याय क्यो नही हुआ


रहने दो

क्या कहुं कि गम है
क्या कहुं कि अॉख नम है
क्या कहुं कि वो बेरहम है
क्या कहुं कि उदासी है
क्या कहुं कि उवासी है
क्या कहुं कि अॉखे प्यासी है
क्या कहुं , रहने दो

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कविता . काम कि भावना

      नमस्कार , मैने एक नयी कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी ये कविता पसंद आएगी और आप कविता के मुल भाव तक पहुंच पाएंगे

काम कि भावना

प्रकृति में सृजन कि भावना
नए जीव जनतु प्राणी जानवर फूल फल
हर बिज में अंकुरण कि भावना
दो जीवो से नए जिवन कि भावना
शुखद संयोग मिलन कि भावना
महत्वपुर्ण अखण्ड सत्य काम कि भावना
हर एक आत्मा के तन मन कि भावना
इस भावना से इतना संकोच क्यो ?
इस पवित्र भावना पर संदेह क्यो ?
सत्य है भाव यह ज्यो सत्य है परमात्मा
परमात्मा का आत्मा से विभेद क्यो ?
निवेदन है , क्रीड़ा है , आनंद है प्रेम कि भावना
प्रतीक्षा स्वेच्छा प्रसन्नता है काम कि भावना

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शनिवार, 28 दिसंबर 2019

कविता , जौहर कंड

      नमस्कार , मैने एक नयी कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी ये कविता पसंद आएगी और आप कविता के मुल भाव तक पहुंच पाएंगे

जौहर कुंड

शोकरहित हर्षित होकर
 मृत्यु समय से परिचित होकर
अपने सतित्व कि रक्षा के खातिर
अपने स्त्रीत्व कि सुरक्षा के खातिर
अपने हाथों से मिल जुल कर
कुंड में ज्वाला जलाती विरांगनाए
इतिहास ने देखा है भारत कि धरा पर
जौहर कुंड सजाती विरांगनाए
हंसते हुए जल जाती विरांगनाए
जय भां भवानी के
जय घोष लगाती विरांगनाए

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शनिवार, 30 नवंबर 2019

कविता, पहला करवा चौथ

      नमस्कार , मेरी ये कविता दरहसल पहली बार करवा चौथ करने वाली वन विवाहित महिलाओ पर आधारित है और मेरी यह कविता मेरी अनुभुतियों का शाब्दीक रुप है

पहला करवा चौथ

करवा में जल भास्कर
पुरवा से ढक कर
चलनी में दीप रखकर
सोलह सिंगार कर
दिन भर का उपवास कर
सुहागने सुहाग के साथ
कर रहीं है चौथ के चांद की प्रतीक्षा
सदा प्रेम इसी तरह बना रहे
यही है मन कि इच्छा
दिन भर की भूखी प्यासी
सुहागन की मनोकामना
इतनी कठिन तपस्या के बाद
हे चंन्ददेव अब और न लो
मेरे सब्र कि परीक्षा
निकलआओ गगन में

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कविता, चौथ का चांद है

      कविता , एक अलग तरह कि कविता पढ के देंखे यह कविता शायरी कि तरह है मैने भी जब इसे लिखा था तो मै यही सोच रहा थाकि यह कविता है की नज्म पर जहा तक मुझे पता है यह कविता हि है

सौहर ने बेगम को देखकर ये कहा
वाह क्या बात है चौथ का चांद है

माशुक ने माशुका को देखकर ये कहा
पहली मुलाकात है चौथ का चांद है

शायर ने शायरा को देखकर ये कहा
हूस्न लाजबाब है चौथ का चांद है

जीजा ने साली को देखकर ये कहा
नयी नयी गुलाब है चौथ का चांद है

मयकदे में शराबी ने मय को देखकर ये कहा
भरी हुई गिलास है चौथ का चांद है

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कविता, जिसके पास रजाई नही है

   नमस्कार , ठंड का मौसम कई मायनों में सब के लिए अलग अलग चीजों के लिए याद रहता है कुछ के लिए मिठे एहसास तो कुछ के लिए कडवे और एक चीज जो इसके केंद्र में रहती है वो है रजाई | पर आज मै इस कविता के माध्यम से हमारे देश भारत के उस वर्ग की बात जो गरिबी रेखा के निचे आते है जिनके नसिब में दो वक्ता भर पेट खान नही है तन पर पुरे कपडे नही है मगर शायद हमारे इसी देश का एसी कार से धुमने वाली बहुमंजिला इमारतों में रहने वाला हवाई जहाज में शफर करने वाला वर्ग समझ ही नही सकता | वैसे तो भारत कि कई जगह कि सर्दीया मसहुर है मगर दिल्ली कि सर्दी की बात ही अलग है

जिनके पास रजाई नही है

अपने बिस्तर पर
अपनी रजाई में दुबका हुआ हुं मै
इस सच से बेखबर की
यही ठंड तो उनके लिए भी है
जिनके पास रजाई नही है
मखमल का कंबल नही है
कंबर तो दूर पुरे तन पर वस्त्र नही हैं
विवाईयां हैं पाव में चप्पल नही है
बिमारीयां तो बहुत हैं
मगर दवाई नही है
और मै सबसे कहता फिरता हुं
बहुत ठंड है

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कविता, अंगीठी , चमगादड

     नमस्कार , अभी तक मैने अपनी हिन्दी मे जो सभी पोस्ट की है उनमें केवल एक रचना पोस्ट कि है पर आज दुसरी बार दो कविता रचनाएं पोस्ट कर रहा हुं मुझे उम्मीद है कि आपको अच्छा लगेगा |

अगीठी

कुडकुडाती ठंड में
रात कि गिरती ओश में
सूबह के जाडे में
हाथों को जमने से
पुरे बदन को ठीठुरने से
कानों को गलने से
कौन बचाती है
अंगीठी

चमगादड

उल्टी फितरत
टेढी नियत
आवाज की तेजी
पंखो की ताकत
डरावनी सुरत
नाम जरुरत
दुश्मनों मे दहशत

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कविता, कल कि रात , तलाक बीच में

      नमस्कार , अभी तक मैने अपनी हिन्दी मे जो सभी पोस्ट की है उनमें केवल एक रचना पोस्ट कि है पर आज पहली बार प्रयोग के तौर पर दो कविता रचनाएं पोस्ट कर रहा हुं मुझे उम्मीद है कि आपको अच्छा लगेगा |

कल कि रात याद रहेगी

जब तुमने मुझे गहरी नींद से उठाया था
कुछ कहना है कहके बालों को सहलाया था
मुंह से चुप रहकर आखों से सब बताय था
मेरे हाथ मे अपना हाथ रखकर पलकों को
मुस्कुराकर शर्माकर झुकाया थां
तेरी मिठी सिसकीयों शदा सदा रहेगी
कल कि रात याद रहेगी

तलाक बीच में कहां से आया

प्यार हमारा , तकरार हमारी
रिश्ता हमारा , तफरत हमारी
सफर हमारा , मंजील हमारी
शेर हमारा , महफिल हमारी
ये हीज्र बीच में कहां से आया
तलाक बीच में कहां से आया

माना के सब ठीक आजकल नही है
पर ये रिश्ता अभी विफल नही है
क्या हुआ गर हम अभी सफल नही हैं
मगर अलगाव मुश्किलों का हल नही है
हमारे दरमियान ये दखल कहां से आया
तलाक बीच में कहां से आया

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मंगलवार, 26 नवंबर 2019

कविता, भारत का संविधान

      नमस्कार , आज यानि 26 नवंबर को हमारे सबसे प्राचिन महान विविधता से परिपुर्ण देश भारत का संविधान दिवस है इसकी आपको ठेर सारी शुभकामनाए एवं बधाई | जैसा कि हम सब जानते है भारत दुनियां का सबसे बडा  लोकतांत्रिक देश है साथ ही साध हमारे भारत देश का संविधान दुनियां का सबसे सडा लिखित एवं निर्मित संविधान है और हम सभी देश वासियों को इस पर गर्व है |

       हमारे देश का संविधान इतना बहा एवं महान है कि इसके बारे मे मै कुछ भी लिखु कम ही रहेगा मगर फिर भी मैने एक छोटी सी कविता लिखी है जो यहां उपस्थित है जिसे आपके प्यार कि जरुरत है

भारत का संविधान

एक किताब जो न्याय है
नियम है , विधी है
जो दंण्ड है , क्षमा है
स्पष्ट है , निरपेक्ष है
जो कर्तव्य है , अधिकार है
विचार है , आधार है
जो समान है , सम्मान है
साधन है , समाधान है
जो प्रतीक है , पवित्र है
प्रधान है , विधान है
जो सत्य है , महान है
वो भारत का संविधान है

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कविता, डर कभी नही जीतेगा

      नमस्कार , आज का दिन कही न कही इंसानीयत के लिए खतरो के प्रति विचार विमर्श एवं मानवता पर लगे एक काले धब्बे का प्रतिक है न शिर्फ भारत के लिए अपितु पुरी दुनिया के लिए | आज 26 नवंबर है जिसे 26 /11 भी कहा जाता है | आज ही के दिन हमारे भारत के महाराष्ट प्रांत के मुम्बई शहर के ताज होटल मे 2008 में पाकिस्तान से आए आतंकियों ने हमला किया था जिसमे सैकडों लोगों की जान गई थी | जैसा कि हम जानते है आतंकबाद आज दुनियी के लिए बहोत बडी चुनैती भी है और खतरा भी जिससे आज भारत समेत दुनिया के सैकडों देश पीडित है लेकिन फिर भी आतंकबाद के इस मुद्दे पर पुरी दुनिया एक टेबल पर नही आ पा रही है | ऐसे वक्त में मै मानता हुं कि हमारे प्रधानमेत्री जी का आतंकबाद के खिलाफ दुनियां के हर बडे म्च पर बोलना पहोत ही प्रभावी एवं साहसिक कदम है

       आज के दिन को याद करते हुए उस हमले में अपनी जान गवाले वाले सभी लोगों को श्रद्धांजलि स्वरुप मैने एक छोटी सी कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं

डर कभी नही जितेगा

सच कभी नही हारेगा
डर कभी नही जितेगा
मानवता कभी मिटेगी नही
किसी हाल में झुकेगी नही
दहसत का विनाश होगा
आतंक का सर्वनाश निश्चित है
तफरत का विनाश निश्चित है
प्रेम हमारा सुनहरा कल होगा
ज्यो गंगा का निर्मल जल है
प्रेम की सदा विजय होगी

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कविता, रंडी कहोगे मुझे

       नमस्कार , आज कि मेरी जो कविता है वह हमारे समाज के उस तबके के पर आधारित है जिसे समाज में कोई स्थान नही दिया जाता या यू कहुं तो उन्हे समाज का हिस्सा ही नही माना जाता जबकी सच्चाई ये है कि यही लोग हमारे सभ्य समाज कहने के अनुरुप में खामियों का आईना हैं | ये कविता है देह व्यापार मे लिप्त लोगो की तथा समाज के उनके प्रति रवैये की | मैने कही पढा था की हमारे भारत में करिब 80 लाख से 1 करोड से ज्यादा देह व्यापार मे लिप्त लोग हैं एवं यह आंकडा कम होने के बजाय दिन दुनी रात अठगुनी बढ रहा है जो कि यकिनन सरकारी नाकामयाबी है | मैने इस कविता में कई पहलुओ को लिखने की कोशिश की है मै इसमे कितना कामयाब रहा ये तो आप ही कविता पढकर मुझे बता सकते हैं

रंडी कहोगे मुझे

हां मै देह व्यापार करती हुं
तो क्या कहोगे मुझे ?
रंडी कहोगे
वेश्या कहोगे
तबायब कहोगे
पतुरिया कहोगे
प्रास्टीट्युड या सेक्स वर्कर कहोगे
बोलोना क्या कहोगे मुझे ?

पुछोगे नही मै रंडी कैसे बनी
कैसे करने लगी अपनी कोमल देह का सौदा
कैसे बेचने लगी अपनी चीखो को
कैसे पीने लगी अपनी आंशुओ को
कैसे धोने लगी आचल पर लगे खुन के दागों को
कैसे जश्न मनाने लगी सिने पर मिले जख्मों का
कैसे घोट पाई मै गला
अपने शुखी संसार के सपनों का
कैसे पी लेली हुं जमाने भर कि जील्लत ताने गालीया
मै तम्हारी सभ्य समाज के सिने मे पालने वाली जलन हुं
इस दुनियां के बनाए नियमों से आजाद
तिरस्कार कि गली में रहने वाली घुटन हुं
हां मै बद्चलन हुं
जिसे तुमने बनाया है

याद है तुम्हे
जब पेट की आग जलाती थी
जब मै तुम्हारे पास काम गांगने आती थी
तब तुम मेरी काबिलीयत नही मेरे सिने के उभार देखते थे
कैसे लचकती है मेरी कमर बार बार देखते थे
तो लो मै अब दिखाने लगी हुं
मुझे जन्म देने वाले तुम तो मेरे पिता थे
फिर मात्र कुछ नोंटो के लिए क्यो बेच दिया तुमने मुझे
मै तो यहां बोरे मे कैद लायी गयी थी
तब से कौन आया है यहां मेरी सुध लेने
मै तो शादी के बाद अपने पति को खा गई थी
यही कहा था समाज ने मुझे
जलिल करके ससुराल से निकाली गई थी
ऐसी लाखों कहानीयां है मेरी
बोलो कितनी सुनाउ तुम्हे
कहा कहा के लगे जख्म दिखाउं तुम्हे

आज जो तुम मुझ पर उंगली उठा रहे हो
ये तुम किसे निचा दिखा रहे हो
याद है वो रात जब तुम शराब के नशे मे गुम थे
मेरे जिस्म के पहले खरिदार तो तुम थे
सच सच बोल दुं क्या वो बात
मै नही गई थी तुम्हारा दरबजा खटखटाने
तुम हि आए थे मेरे पास
मुझे गाली देकर तुम किस गफलत में गुम हो
मेरी बर्बादी के जिम्मेदार तुम हो
तुम जरुरत हो इस बाजार की
तुम्हे जरुरत है इस बाजार की
और मै बाजारु हुं

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रविवार, 10 नवंबर 2019

कविता, गुरु नानक देवजी की वाणी में

        नमस्कार , 9 नवंबर को राम मंदिर विवाद या अयोध्या विवाद पर देश की सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के अलावा एक बहोत बडी शुरुआत हुई है जिसके बारे मे मैने पिछली वाली पोस्ट में मैने कहा थाकी मै अपनी अगली पोस्ट में उसके बारे में बात करुंगा |

       दरहसल वो बडी और नयी शुरुआत है 'करतारपुर गलियारा' जिसका उदघाटन भारत में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने किया एवं पाकिस्तान में पाकिस्तान के बजिरे आजम जनाब इमरान खान नियाजी ने किया | गुरुनाक देवजी कि 550वी जयंती के मोके पर खुल रहे इस एतिहासिक गलियारे का उपयोग सालभर भारतीय सिख श्रद्धालुओ के द्वारा किया जा सकेगा | करतारपुर गलियारे से 9 नवंबर का 550 श्रद्धालुओ का पहला जत्था दर्शन के लिए गया इसी के साथ एक नयी शुरुआत का आगाज हुआ | बाबा गुरुनानक देवजी की 550वी जयंती पर मैने बाबाजी के चरणो मे मेरी एक छोटी सी कविता रचना रखने कि कोशिश की है

गुरु नानक देवजी की वाणी में

गुरु नानक देवजी की वाणी में
जीवन जीने की शिक्षा
कठिन परिश्रम की इच्छा
सत्य की विजय की दीक्षा
विपरित समय में धैर्य की परीक्षा

गुरु नानक देवजी की वाणी में
आपस में बढता रहे सदा प्यार
एकजुट रहे सदा परिवार
मिलता रहे स्नेह का उपहार
सदा रहो अपनी सुरक्षा के लिए तैयार

गुरु नानक देवजी की वाणी में
प्रतिकुल परिस्थीतियों में धैर्यवान बनो
दुर्बलों की सुरक्षा के लिए बलवान बनो
हर कार्य में गुणवान बनो
अपने कुटुंब का सम्मान बनो

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शनिवार, 26 अक्तूबर 2019

कविता, दीपोत्सव

       नमस्कार , सर्वप्रथम आप को भारत के सबसे बडे एवं विशाल पर्वो में से एक दिवाली की हार्दीक शुभकामनाए | श्री राम के बनवास से घर आगमान की खुशी में अयोध्यावासियों के द्वारा मनाया गया दीपो का उत्सव आज भारत ही नही पुरे विश्व मे बडे धुम धाम से मनाया जाता है | दीपो का वही उत्सव दीपोत्सव बनकर आज उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा पुरे अयोध्या मे मनाया जा रहा है जहां पुरे अयोध्या में पांच लाख से ज्यादा दीए जलाकर नया विश्व कीर्तीमान बनाया जाएगा | इसी उत्सव को मैने अपनी कविता मे कहने की एक छोटी सी को शिश कि है |
कविता , दीपोत्सव
Happy Diwali
दीपोत्सव

लाखो दीयो का जगमगाता प्रकाश
उनसे प्रकाशित अयोध्या का आकाश
खुद को दोहराता स्वर्णिम इतिहास
जन जन के मन में भर रहा उल्लास
दीपों का उत्सव , दीपोत्सव

दीपावली प्रकाश फैलाने की सबसे बडी रीत
असत्य पर सत्य की , पाप पर पुण्य की जीत
लक्ष्मण हनुमान सियाराम का घर आगमन
दुखों का अंत शुखों का जीवन में शुभ आगमन
दीपों का उत्सव , दीपोत्सव

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मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

कविता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संकट में है

    नमस्कार , आप सब को पता ही होगा की अभी एक हत्या की खबर समाचार चैनलों पर चल रहीं है और हत्या किसकी हुई है क्यो हुई है और किन लोगों ने कि है आप ये सब भी जानते है |  इसी को ध्यान में रखकर मैने ये नयी कविता लिखी है मै चाहुंगा के आप एक बार मेरी ये कविता जरुर पढे |

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संकट में है

जब सत्य लिखने से पहले हत्या का डर हो
जब सत्य बोलने से पहले हत्या का डर हो
मतलब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संकट में है

अब समय है आगे आओ
अब समय है आवाज उठओ
अब समय है एकता दिखाओ
अब समय है आलस्य मिटाओ
अब समय है मेरे स्वर मे स्वर मिलाओ
क्योकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संकट में है

सत्य के मौत की जिम्मेदारी हमारी है
इस समाज मे सब की हिस्सेदारी है
शांती के संदेश मे हमारी कितनी भागीदारी है
डर के खिलाफ लडने मे समझदारी है
क्या हमे पता है हमारी कितनी तैयारी है
विजय हो या पराजय धर्म सदा अधर्म पर भारी है
हर प्रयास सफलता का अधिकारी है
पर अकर्मठता मानसिक बिमारी है
जबकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संकट में है

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गुरुवार, 17 अक्तूबर 2019

कविता, पहला करवा चौथ

      नमस्कार , आपको करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं | पति पत्नी के मध्य प्यार का यह अभुतपुर्व जिसका संकेत चांद बनता है | यह पर्व रिश्ते को किसी बोझ की तरह नही बल्की जिम्मेदारी एवं आपसी सहयोग से जीवन को गुणवान बनाने का सुचक है | मै इस बार नया नया करवा चौथ मना रहे जोडो को अतिरिक्त बधाई देता हुं | इसी विषय पर मेरी एक नयी कविता साझा कर रहा हुं |

पहला करवा चौथ

करवा में जल भरकर
चलनी में दीप रखकर
सोलह श्रृंगार कर
दिन भर का उपवास कर
सुहागन सुहाग के साथ कर रही है
चौथ के चांद की प्रतीक्षा
सदा प्रेम इसी तरह बना रहे
यही है मन की इच्छा
दिन भर की भूखी प्यासी
सुहागन की मनोकामना
इतनी कठिन तपस्या के बाद
अब और न लो सबर की परीक्षा
गगन में निकल आओ चौथ के चांद

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