रविवार, 6 जनवरी 2019

कविता, एक सनसनी है फैली हुई

   नमस्कार , ये कविता मैने 2013 में लिखी है |किस महीने में लिखी है ये मुझे याद नही है | सनसनी कविता शीर्षक है | इस नाम का एक लोकप्रिय न्यूज चैनल पर एक लोकप्रिय धारावाहिक भी प्रसारित होता है | मुझे यकीन है कि मेरी यह कविता आपको पसंद आयेगी \

आज हर वक्त हर ओर
एक सनसनी है फैली हुई

कोई कहीं बेचैन है
कोई है जो मौन है
कही हुआ है कोई हाका
कहीं पड़ गया देखो डाका
हर ओर देख लो डरडरी है फैली हुई

कहे लुट गई कोई बेचारी
गई आज कही ममता मारी
कहीं जीत गया फरेब
कहीं सच्चाई है हरी हुई

टूट गया कहीं घर किसी का
छूट गया है साथ किसी का
नकली है जमाना ऐसा
हकीकत फिर है छीपी हुई

धोखे से सब मिलता है
पैसे से सब बिकता है
बाजार सजा है फिर से ऐसा कि
इमान की नीलामी खूब हुई

गांव हो या हो शहर
दिन रात चारों पहर
इस तरह उस तरफ
दिशाओं में फिजाओं में
है पूरी घुली हुई

आज हर वक्त हर ओर
एक सनसनी है फैली हुई

    मेरी यह कविता अगर अपनी पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

    इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |  द्वारा भीम

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