शनिवार, 5 जनवरी 2019

ग़ज़ल, जख्म ए दर्प बरदाश्त की जरुरत है

    नमस्कार , एक और गजल कुछ यू हुई है कि बहुत कोशिश करने के बाद भी मै इस गजल का मख्ता नही लिख पा रहा हूं | छोटी सी खुदरंग मिजाज की ये गजल आपको भी अच्छी लगेगी मुझे ऐसा लगता है |

जख्म ए दर्द बरदाश्त की जरुरत है
अभी जख्म भर रहा है एहतियात की जरुरत है

अभी मेरा मनाना बाकी है
अभी तेरे एतराज की जरुरत है

अब तो मै यकीनन मर चुका हूँ
अब मुझे इंसानी एहसास की जरुरत है

यही के उसे छोडने वाला हूं
अब दिल के ऐतबार की जरुरत है

      मेरी गजल के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें , अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

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