एक नयी कविता आपके साथ साझा करना चाहता हूं आशा है आपको अच्छी लगेगी
राम तुम्हारे नहीं हैं
तुम तो कहते थे काल्पनिक हैं
अयोध्या जन्मस्थली ही नहीं
रावण कोई था ही नहीं
लंका कभी जाली ही नहीं
तुम्हें विश्वास नहीं है इस नाम पर
तुम्हें आस्था नहीं है राम पर
राम गर तुम्हारे मन मंदिर में पधारे नहीं हैं
तो फिर राम तुम्हारे नहीं हैं
तुमने प्रश्न उठाए थे राम के सेतू पर
तुम्हें अनास्था है राम के हेतु पर
अब कह रहे हो राम सब के हैं
अब तक तो वक्त बेवक्त कहते थे
राम भक्तों को अंधभक्त कहते थे
राम गुणों के सागर हैं , अति उत्तम हैं
सर्वोत्तम हैं , पुरुषोत्तम हैं
गर तुमने आदर्श राम के जीवन में उतारे नहीं हैं
तो फिर राम तुम्हारे नहीं हैं
कविता कैसी लगी मुझे अपने विचार व्यक्त जरुर बताइएगा , नमस्कार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें