बड़ी ख़ामोशी से
हर दिन एक
अंजान सी
ख़ामोशी
मेरा पिछा करती है
कहती है
बोलो
वो जो कोई नहीं बोलता
और मैं ख़ामोशी को
बड़ी ख़ामोशी से
जबाब देता हूं
दिन छोटे होने लगे हैं
अब दिन छोटे होने लगे हैं
शायद सूरज भी
अपनी रोशनी
बचा रहा
उन लोगों से
जो अब
सड़कें, पुल, कोयला, तालाब
और भी न जाने क्या-क्या
चुराने लगे हैं
यहां रिवाज़ है
यहां रिवाज़ है
शायद आपको भी
अब भी
अब तक भी
पता ना हो
पर
झूठ बोलना
परंपरागत
दायित्व है
यही तो
विरासत मे मिला है
मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं
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