सोमवार, 11 नवंबर 2024

ग़ज़ल, दिल हमारा गुनहगार नहीं है

 दिल हमारा गुनहगार नही है 

ऐसा कोई पहली बार नही है 


हर बार यही सोचता हूं आखरी है 

मगर ये भी आखरी बार नही है


तुझे रास्ता बदलना है तो ऐलानिया बदल 

हमें भी कोई तेरा ही इंतजार नही है 


सांचे में ढालकर कांसे को सोना बना दूं 

ये मेरी कहानी है मगर मेरा किरदार नही है 


तनहा आसान नहीं है जुर्म कबूल कर लेना 

मुझे बेगुनाह समझे ऐसी सरकार नही है

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