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मंगलवार, 22 सितंबर 2020

ग़ज़ल , महामारी फैली है

        नमस्कार , जैसा कि हम सब जानते हैं कि हम एक लंबे लाँकडाउन के बाद अनलाँक 3 में हैं और इसी के साथ देश में ट्रेने और बसे चलने लगी है बाजार और स्कुल खोले जा चुके है मगर इसका मतलब ये नही है कि कोविड 19 महामारी खत्म हो गयी है बल्की यह तो भारत में दिन पर दिन फैल रही है | आज भारत में कोविड 19 महामारी के 55 लाख से ज्यादा केस मिल चुके हैं और लगभग 88 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी है |

       गौर करने लायक बात यह है की इस तरह कि गंभीर परिस्थितियों में भी भारत सरकार NEET और JEEmains के इग्जाम करा रही है और अब UPSC prelims 2020 के इग्जाम भी 4 अक्टूबर को आयोजित होने जा रहे हैं और इन्हें टालने की सरकार कि कोई मंशा नही दिख रही है  | यहां सवाल यह है कि जिन परिक्षाओं में देश भर के करिब चालिस से पचास लाख लोग हिस्सा लेते हैं ऐसे इग्जामों को कराकर सरकार इतने लोगों के स्वास्थ को खतरे में क्यों डाल रही है क्या देश की इकोनाँमी को रफ्तार देने के लिए इतने लोगों के स्वास्थ को खतरे में डालना सही है | मैं निजी तौर पर सरकार के इस फैसले की कडे़ शब्दो में घोर निंदा करता हुँ | अपने इन्ही विचारों को मैने अपने ग़ज़ल में जगह दी है मुझे उम्मीद है की आपको मेरी यह ग़ज़ल प्रसंद आएगी |

ये सब को पता है कि बीमारी फैली है

फिर भी बाजार में मारामारी फैली है


ये कैसा निजाम है परिक्षाएं करा रहा है

और पुरे मुल्क में महामारी फैली है


कहते हैं घर घर चलकर रोजगार आएगा

गांव में यही खबर सरकारी फैली है


कल मुशाफिरों कि टोली ठहरी होगी यहां

देखों पेड़ के निचे रोटी तरकारी फैली है


जितने भी किए जांए इंतजाम कम हैं

देश के युनाओं में इतनी बेकारी फैली है


कौन देगा इन मासुम से हाथों में किताब

मेरे समाज के बच्चों में बेगारी फैली है


तनहा खुलकर रखता है राय अपनी

हर गली मोहल्ले में ग़ज़ल हमारी फैली है

      मेरी ये ग़ज़ल अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

ग़ज़ल , खबर में है

        नमस्कार , आज मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके दयार में रख रहा हुँ | कहना ये चाहुंगा के अगर आप हालिया खबरों से अवगत होंगे तो आपको इस ग़ज़ल का ज्यादा आनंद आएगा |

धुएँ में बीताई गई रात खबर में है

चर्चा शहर में और बात खबर में है


सत्तापक्ष का नेता गाली गलौच करता है

नेताजी की औकात खबर में है


ये आरक्षण आरक्षण का खेल है

इंसानों कि हर एक जात खबर में है


साजिश का मारा जो सितारा मर गया

अब उसके सारे हालात खबर में है


संदेह के घेरे में हैं बडे़ पर्दें के सितारे

नशे से हुई उनकी मुलाकात खबर में है


प्रेमी संग फरार हुई बेटी के मां-बाप हैं

तनहा उनके जज्बात खबर में है

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रविवार, 20 सितंबर 2020

ग़ज़ल , तू का रिश्ता है

       नमस्कार , आज मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके साथ हिम्मत जुटाकर साझा कर रहा हुँ मुझे यकिन है कि मेरी ये ग़ज़ल आपको अच्छी लगेगी |

सहर और साम का जुस्तजू का रिश्ता है

हवाओं का फूलों से खुशबू का रिश्ता है


उसकी शादी के बाद से ये आदबो आदाब

वर्ना उससे मेरा आप का नही तू का रिश्ता है


न जाने जमाने भर को नागवार गुजरता है

परिन्दे का परिन्दी से गुफ्तगू का रिश्ता है


उसने ऐसे इंसानियत का रिश्ता निभाया है 

कहते है बीमार से उसका लहू का रिश्ता है


रोज घर में रामायण महाभारत साथ होती है

प्यार और तकरार का सास-बहू का रिश्ता है


कौन किसे जीजा कहे कौन किसे साला

दोनों का एक दुसरे से हूबहू का रिश्ता है


गर मोहब्बत का जलवा हो तो तनहा हो

आदत का अदाओं से आरजू का रिश्ता है

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       इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

ग़ज़ल , बेरोजगार हुं साहब

       नमस्कार , आज ही मैने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके सम्मुख रख रहा हुँ आशा करता हुँ की आपको मेरी यह ग़ज़ल प्रसंद आएगी | मैं इमानदार होकर कहुँं तो यह ग़ज़ल मेरे स्वयं के दिल के जज्वात कहती है क्योंकि कम्प्युटर साइंस एण्ड इंजिनियंरिंग से बैचलर ऑफ इंजिनियंरिंग कि डिग्री 2019 में पुरी कर लेने के बाद भी अभी तक मुझे कोई नौकरी या रोजगार नही मिल पाया है तो मैं उन लोगों की मनोदशा बहुत बेहतर करीके से समझ सकता हुँ जो परिवार वाले हैं बहरहाल आप मेरी इस ग़जल का आनंद लिजिए और कैसी रही जरुर बताइएगा |

समाज के नजरों में बेकार हुँ साहब

बाजार में बिकने को तैयार हुँ साहब


नाकारा निकम्मा दुसरे नाम होगए

मैं पढा़ लिखा बेराजगार हुँ साहब


वोट दे देने के बाद कुछ नही मिलेगा

मैं इतना तो समझदार हुँ साहब


शिर्फ मेरे भुखे मरने का सवाल नही

अपने परिवार का आधार हुँ साहब


कौन चाहता है लम्हे गिनकर दिन बिताना

मगर मैं क्या करुं लाचार हुँ साहब


तनहा लहू पसीना बनाकर बहा देंगें

जीतोड़ मेहनत के लिए बेकरार हुँ साहब

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मंगलवार, 1 सितंबर 2020

ग़ज़ल , मुझसे मोहब्बत करो और सबर जाओ ना

     नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से छठवी ग़ज़ल यू देखें के

मुझसे मोहब्बत करो और सबर जाओ ना

यू देख क्या रहे हो , सिधे दिल में उतर जाओ ना


गर तुम्हे जिंदगी देखनी है जिंदा लोगों में नजर आएगी

उधर क्या कर रहे हो , इधर आओ ना


अब तुम्हें ईश्क की गलतफहमी है तो इससे उनको क्या

तुम मरना चाहते हो तो मरो , मर जाओ ना


पत्थरों का क्या है वो तो टकराते ही रहेंगे

अब तुम कांच हो तो बिखरो , बिखर जाओ ना


अब आफत आई है तनहा तो गांव आ रहे हैं

और जाओ शहर , शहर जाओ ना

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ग़ज़ल , बहोत दिन ठहर के आरहे हो क्या

     नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से पांचवी ग़ज़ल यू देखें के

बहोत दिन ठहर के आरहे हो क्या

अपने गांव घर से आरहे हो क्या


बहोत तिजारती लहजे में गुफ्तगुं कर रहे हो

किसी शहर से आरहे हो क्या


तुम्हारा अंदाज भी उसके जैसा है

तुम भी उधर से आरहे हो क्या


लुटे हूए सुल्तान जैसी हालत लग रही है तुम्हारी

क्या , दफ्तर से आरहे हो क्या


लगता है सफर लंबा भी है जरुरी भी है तनहा भी है

कब से , दोपहर से आरहे हो क्या

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      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

ग़ज़ल , ये बेफिजुल का सुनना सुनाना नही होगा

       नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से चौथी ग़ज़ल यू देखें के

ये बेफिजुल का सुनना सुनाना नही होगा

तय हुआ है अब रोज का मिलना मिलाना नही होगा


दूर रहने से क्या जान पहचान बदल जाएगी

होगा तो ये होगा के आना जाना नही होगा


दरिया खुद ही समंदर तलाश लेतीं हैं

मोहब्बत में अब किसी से पुछना पुछाना नही होगा


आ एक दिन तसल्ली से बैढकर गुफ्तगुं कर लेते हैं

मुझसे ये रोज का वाट्सअप पर मैसेज पढ़ना पढ़ाना नही होगा


जिस बला कि खुबसुरत लगना हो एक बार में ही लग जा

तेरी खुबसुरती में तनहा यू बार बार ग़ज़लें लिखना लिखाना नही होगा

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ग़ज़ल , अरे ओ रोज एक नया बहाना बनाने वाले

      नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से तिसरी ग़ज़ल यू देखें के

अरे ओ रोज एक नया बहाना बनाने वाले

ऐसे वादे ही मत किया कर निभाने वाले


पहले मुझे तेरे बारे में खुशफहमी थी

ये तो अब खुला है तू भी सारे अंदाज है जमाने वाले


तुझे शिकायत है के मैने याद नही रखा तुझको

तो ऐसे काम ही क्यों करता है भुलाने वाले


मुझे तो तुझ पर पहले से यकिन था

आने का दिलाशा देकर लौटकर न आने वाले


तेरे बिना भी इस सफर को मुकम्मल करुंगा मै

सफर में तनहा आगे निकल जाने वाले

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ग़ज़ल , अपनी साख बचानी पड़ती है

      नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से दुसरी ग़ज़ल यू देखें के

अपनी साख बचानी पड़ती है

बुझती हूई आग जलानी पड़ती है


नाराजगी का दायरा चाहे जो कुछ भी हो

किसी से उम्रभर की दोस्ती हो जाए तो निभानी पड़ती है


बहुत किमती होने का यही खसारा है

हर किसी को अपनी किमत बतानी पड़ती है


बेवजह ताकत का मुजायरा मुनासिब नही तनहा

पर कभी मुखालफिनों को औकात दिखानी पड़ती है

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सोमवार, 31 अगस्त 2020

ग़ज़ल , कोई है के पल पल दिल में उतरता जा रहा है

       नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से पहली ग़ज़ल यू देखें के

चांद का नूर जरा जरा सा बढ़ता जा रहा है

कोई है के पल पल दिल में उतरता जा रहा है


गुर्वत और अमिरी कि नाराजगी तो देखिए

तालाब दिन दिन सुख रहे हैं समंदर है के बढ़ता जा रहा है


मेरी लालटेन में मिट्टी का तेल नही है

आफताब है के बस ठलता जा रहा है


रुह कि नजदीकियां बढ़ रहीं हैं दोस्ती का दायरा घट रहा है

जो एक रिश्ता है बदलता जा रहा है


हर तरह के गुनाह का जुर्म उन्हीं के नाम है

अजीब शक्स है सब कुछ सहता जा रहा है


तो जंग ऐसे जीता हूं आज मैं

मैं खामोश हुं और वो कहता जा रहा है


तनहा इस जमीन ने बादशाहों कों फना होते देखा है

वो देखो एक बुलबुला डूबने कि कोशिश में उवरता जा रहा है

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बुधवार, 5 अगस्त 2020

ग़ज़ल , मेरे लिए खुदा हैं राम मेरे

     नमस्कार , आपको एवं सम्पुर्ण भारतवर्ष तथा दुनियाभर के सम्पुर्ण रामभक्तों को श्रीराम मंदिर भुमि पुजन की हार्दीक शुभकामनाएं | आज मैं इस पावन दिन को साकार बनाने में जितने भी लोगों ने संघर्ष किया है उन सभी लोगों के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करता हुं | साथ ही हमारे भारतवर्ष में प्रचलित प्रभु श्रीराम के लिए एक संबोधन कहें या शब्द को लेकर मुझे आपत्ति है,वह शब्द है 'इमाम-ए-हिंद' |

     'इमाम-ए-हिंद' शब्द के बारे में कहा जाता है की सबसे पहले इसका उपयोग शायर इकबाल ने किया था तभी से यह जनमानस में गाहे ब गाहे इस्तेमाल होता आ रहा है | इस्लाम मजहब में इमाम कौन होता है तथा इमाम का दर्जा क्या होता है आप जानते हैं यदि ना जानते हो तो आप Google पर सर्च करके जान सकते हैं | हमार प्रभु श्रीराम हमारे लिए या यू कहुं तो हिन्दूओ के लिए भगवान हैं और हमारे भगवान प्रभु श्रीराम को एक इंसान के बराबर कहे जाने पर राम भक्त होने के नाते मुझे घोर आपत्ति है | यही वजह है कि मुझे इस लफ्ज 'इमाम-ए-हिंद' से आपत्ति है क्योंकि मेरे लिए खुदा हैं राम मेरे | 

    इमाम-ए-हिंद' शब्द के प्रति अपनी इसी भावना को दृष्टीगत रखते हुए मैने एक ग़ज़ल लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं | आप इसके बारे में क्या सोचतें हैं और आपको यह ग़ज़ल कैसी रही अपने विचारों से अवगत कराइएगा |

उनके नाम कि कीर्तन में गुजरते हैं सुबहो साम मेरे
उनकी भक्ति करके पुरे हो जाते हैं चारों धाम मेरे

तुमने कह दिया बस इमाम-ए-हिंद उनको
मेरे लिए तो खुदा हैं राम मेरे

हम भी तुम्हारे अकिदे की इज्जत में साहब कहते हैं
और तुमने जानबूझकर बिगाडे़ हैं नाम मेरे

मेरे खुदा को इंसान के बराबर कह दिया तुमने
और कितना करोगे खुदा को बदनाम मेरे

ये हमदर्दी का दिखावा मत करो खबरों में
वर्ना आजतक तो बस बिगाडे़ हैं तुमने काम मेरे

अपने खुदा की ईवादत का ईवादतखाना बनाने के काबिल हैं हम
तनहा भक्त है राम का और हैं श्रीराम मेरे

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सोमवार, 3 अगस्त 2020

ग़ज़ल , ये दरिया सैलाब तो हर साल लाती है


   नमस्कार , हमारा भारत देश तीन ओर से समुंदरों से घिरा हुआ देश है यही वजह है कि हमारे देश के तटवर्ती इलाकों में जमकर बरसात होती साथ ही पहाडो़ पर होने वाली बारिश वहा से निकलने वाली नदियों में बाढ़ ला देती है , असम , बिहार और आस पास के इलाकों में आने वाली बाढ़ इसी का नतीजा है जिससे हर बार लाखों लोंग प्रभावित होते हैं एवं सैकडो़ लोग अपनी जान गवांते हैं

     यहां मेरा सवाल यह है कि जब हमारी प्रांतीय सरकारों को हर साल आने वाली इस मुशीबत का अंजादा है तो फिर हर साल की इस आफत को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम क्यों नही उठाए जाते | इन्ही सवालों को ध्यान में रखकर 28 जुलाई 2020 को एक ग़ज़ल लिखी है | मेरी यह ग़ज़ल कैसी रही आप मुझे जरुर बताईएगा

किसी के लिए यादों का मौसम बेमिसाल लाती है
किसी के लिए ये बारिश जीवन का काल लाती है

तुम पुख्ता क्यों नही करते सुखी जमीन का इंतजाम
ये दरिया सैलाब तो हर साल लाती है

ये मौतों का मंजर देखो और हुकुमतों से पुछो
ये सैलाब अपने साथ तबाही ही नही कई सवाल लाती है

इन आफतों का जिम्मेदार कौन जबाब कौन देगा
इस सवाल कि नजरअंदाजी ही बवाल लाती है

जिनके झोले मे वादे हैं बांटने के लिए
उनके लिए ये सैलाब मौंका मालामाल लाती है

तनहा यही तमाशा देख देख कर बडे़ हुए हैं हम
सियासत हर कमाल के उपर एक कमाल लाती है

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शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

ग़ज़ल , और कुछ नही


    नमस्कार , आज मै यहा अपनी 2019 की शुरुआती महीनों मे लिखी कुछ गजलें आपके साथ बांट रहा हुं मुझे यकिन ही नही पुरा विश्वास है कि आप को यह गजल अच्छी लगेगी

वो तो अहले शहर का मेहमान है , और कुछ नही
हां थोडी़ बहोत जान पहचान है , और कुछ नही

मै तो बस खैरीयत पुछने चला गया था
वो एक बडा़ अच्छा इंसान है , और कुछ नही

जहां ईश्क मिजाज परिंदों का बसेरा नही होता
वो दिल बंजर है विरान है , और कुछ नही

भला ये क्या कह दिया आपने नही बिलकुल नही
दिल अभी मोहब्बत लफ्ज से अंजान है , और कुछ नही

अब कयामत तक तनहा वो न निकलेगा मेरे दिल से
वो मेरी जिश्म है जान है , और कुछ नही

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गज़ल , छोड़ देता है


    नमस्कार , आज मै यहा अपनी 2019 की शुरुआती महीनों मे लिखी कुछ गजलें आपके साथ बांट रहा हुं मुझे यकिन ही नही पुरा विश्वास है कि आप को यह गजल अच्छी लगेगी

पहले मोहब्बत दिखाता है , छोड़ देता है
वो मुझे गले से लगाता है , छोड़ देता है

आखिर कब तक बर्दाश्त करें इन दूरीयों को
वो मुझे दीए कि तरह जलाता है , छोड़ देता है

इतनी मोहब्बत भी तो जीना हराम कर देती है
वो जलता हुआ चिराग बुझाता है , छोड़ देता है

गर तारीफ हो तो मुकम्मल हो अच्छी लगती है
वो तो आधी तस्वीर बनाता है , छोड़ देता है

भले बुलंदीयां नसीब हो बेहतर है जमीन पर रहना
वर्ना बवंडर तो हवा में उडा़ता है , छोड़ देता है

ये दुसरी ही मुलाकात है जरा बच के तनहा
सुना है ये शख्स रिश्ते बनाता है , छोड़ देता है

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गज़ल, आज तो तनहा बहुत खुश हुँ मैं


     नमस्कार , आज मै यहा अपनी 2019 की शुरुआती महीनों मे लिखी कुछ गजलें आपके साथ बांट रहा हुं मुझे यकिन ही नही पुरा विश्वास है कि आप को यह गजल अच्छी लगेगी

यही ना के फिर शाम होने वाली है
एक और गमगीन रात तेरे नाम होने वाली है

तुझे तो मोहब्बतों के ख्वाब आते होंगे
मेरी तो नींद तक हराम होने वाली है

आज फुर्सत से लिख रहा हुं तुझको
आज मेरी गजल तमाम होने वाली है

आज तो तनहा बहुत खुश हुं मैं
आज तनहाई बदनाम होने वाली है

      मेरी ये गज़ल अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस गज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

रविवार, 29 मार्च 2020

गजल , आओ खुशियों कि मुहं दिखाई करते हैं

      नमस्कार , मैने कुछ दिनों पहले एक गजल लिखी थी जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं मुझे यकिन हे कि आपको ये अच्छी लगेगी

आओ खुशियों कि मुहं दिखाई करते हैं
गमों कि घर से बिदाई करते हैं

छुप छुप के इससे उससे क्या करना
आओ ना खुल के बेवफाई करते हैं

ये जुवानी जंग का क्या मतलब
मैदान में आओ हाथापाई करते हैं

गम नही चेहरे पर मुस्कान बेचना शुरु करो
किसी के जख्मों कि तुरपाई करते हैं

और तनहा गम जख्म मरहम खुशियां
अरे अब तो मोहब्बत कि जगहंसाई करते हैं

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शनिवार, 14 मार्च 2020

गजल , सागर सी गहरी रेगिस्तान सी पथरीली आंखें

     नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

सागर सी गहरी रेगिस्तान सी पथरीली आंखें
चॉकु छूरी खंजर सी नुकीली आंखें

कोई कैसे बचे इनके तिलस्म से
कत्थई काली निली आंखें

कैसे पढू मै इनकी लिखाबट को
कभी गुस्सा कभी अॉशु कभी सर्मिली आंखें

देखते ही ईश्क का शुरुर होगया
मैने पहले नही देखी थी वो चमकिली आंखें

देखोगे तो तुम्हे भी मर्ज-ए-मोहब्बत हो जाएगी
कभी देखना मत वो फूलों सी रंगिली आंखें

गर तनहा मरा मोहब्बत में तो ईल्जाम उस पन
मार डालेंगी मुझको तेरी ये जहरिली आंखें

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गजल , ये तो गलतफहमी है कि मेरा दिल टूटा है

    नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

ये तो गलतफहमी है कि मेरा दिल टूटा है
दिल नहीं टूटा बस एक भरम टूटा है

जिस ने दी है ये खबर बेबुनियाद है
जिसने तुमको बताया है बहोत झुठा है

बस इसीलिए नही खाते भाई भाई एक थाली में
ये जो खाना है उसका जुठा है

कौन लाएगा तवस्सुम मेरे चेहरे पर
जो मेरा खुदा है वही मुझसे रुठा है

ये कैसा रोना है के आंख नम ही नही होती
फेसबुक पर रोने का ये नया तरीका है

तुम जो समझते हो तनहा वो गम नही है मुझको
गम तो ये है के एक अच्छा यार छुटा है 

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गजल , हम तुम्हारे हमराज हैं जाना

    नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

तुमसे मेरे राज हैं जाना
हम तुम्हारे हमराज हैं जाना

कल हम्हीं होंगे मोहब्बत निभाने के लिए
तुम्हारे सारे आशिक बस आज हैं जाना

हरदम जो सदाएं तुम सुनते हो
वो मेरे दिल के साज हैं जाना

मोहब्बत के सिवा दुनियां में कुछ भी नही
नफरत बस अल्फाज है जाना

तुम्हारा मिलना खुशनसीबी मेरी है
ये खुशियॉ तो बस आगाज हैं जाना

मोहब्बत तुम्हे है ये सब को खबर है
खामोशी भी आवाज है जाना

जब कहता है सिधे मुंह पर सच कहता है
ये तनहा का अंदाज है जाना

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गजल , उसका रुठना और मेरा मनाना लाजमी था

     नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

उसका रुठना और मेरा मनाना लाजमी था
उसका दूर और मेरा पास जाना लाजमी था

पाहली मोहब्बत का पहला मौका-ए-वस्ल
उसका शर्माना और हाथ छुडा़ना लाजमी था

तमाम दुनियां कि फिक्र और जमाने का डर
उसका मुस्कुराना और घबराना लाजमी था

तनहा दिल की दशा ही कुछ ऐसी थी
उसका गाना और गुनगुनाना लाजमी था

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