शनिवार, 5 नवंबर 2022

कवित्त , अर्धांगिनी श्री कृष्ण की

      नमस्कार , मेरे मन में यह प्रश्न हमेशा से ही उठता रहा है कि आखिर क्यों भगवान श्री कृष्ण पर आस्था रखने वालों के मध्य माता रुक्मिणी को वो स्थान कहीं न कहीं अब तक नही मिल पाया है जो राधाजी को मिला है जबकि भगवान श्री कृष्ण की पत्नी तो माता रुक्मिणी ही हैं | 


     अपने इसी विचार को केन्द्र में रखकर आज मैने तीन कवित्त में एक छोटी सी रचना करने का प्रयास किया है जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं | इस रचना के लिए कवित्त विधा के चयन का मेरा कारण यह है कि यह हिंदी साहित्य की कुछ सबसे पुरानी विधाओं मे से एक है और इस विधा में अपने विचार को कहने का प्रयास करके मैं इस महान साहित्यिक परंपरा का एक कण मात्र होने का झूठा संतोष पाने की लालसा करता हूं |


अर्धांगिनी श्री कृष्ण की 


प्रेम तो मैने भी  किया 

      प्रेम से  बढ़कर  किया  है 

चेतना और संवेदना में 

      हर ह्रदयस्पंदन में जीया है 

प्रेम है अमृत  सत्य  है 

      मैने भी यह अमृत पीया है 

श्री कृष्ण के संग राधा क्यों 

      जब श्री राम के संग सिया है 


निश्चय नही हो सकता यह 

      आशा और निराशा क्या है 

या की यह उमंग वेग कैसा 

      प्रेम में यह अभिलाषा क्या है 

कौन देगा मुझे इसका उत्तर 

      तनहा प्रेम की परिभाषा क्या है 

अगर उचित नही प्रश्न मेरा 

      बतलाओ प्रेम की भाषा क्या है 


श्री कृष्ण का नाम मेरा कीर्तन 

      मैं जीवन संगिनी श्री कृष्ण की 

श्री कृष्ण दर्शन ही मेरा दर्पण 

      मैं धर्म वामांगी श्री कृष्ण की 

श्री कृष्ण का धाम मेरा अर्जन 

      मैं प्रिया रुक्मिणी श्री कृष्ण की 

मेरा सर्वस्व श्री कृष्ण को अर्पण 

      मैं सदा अर्धांगिनी श्री कृष्ण की 


     मेरा ये कवित्त आपको कैसा लगा मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


गुरुवार, 13 अक्तूबर 2022

ग़ज़ल , नयी पुरानी उजरत में मारा जाएगा

      नमस्कार , एक नयी ग़ज़ल के कुछ शेर यू देखें 


नयी पुरानी उजरत में मारा जाएगा 

नही तो बुरी नियत में मारा जाएगा 


झूठ ने बलवा मचा रखा है दुनियां में 

सच तो इसी दहशत में मारा जाएगा 


ज़िंदा रहने की तमन्ना जिस कदर है 

आदमी अपनी वहशत में मारा जाएगा 


उसकी मुहब्बत इतनी करीब है उसके 

दिवाना आज कुर्वत में मारा जाएगा 


मैं मासूम हूं किसी परिंदे की तरह 

मगर मुझको भी नफरत में मारा जाएगा 


जंग के नतीजे पे सब की नजर है 

मगर दुधमुंहा बच्चा गुर्बत में मारा जाएगा 


ये सोचकर नही दिया मेरे डीएम का जवाब उसने 

तनहा को किसी दिन फुर्सत में मारा जाएगा 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


नज़्म , आप गलत समझ रहीं हैं मुझे

      नमस्कार , मैने एक नयी नज़्म कहने की चाहत की है इस नज़्म के किरदार में वो सारे मर्द मुकम्मल तौर पर सामिल हैं जो इस नज़्म से वाबस्ता ख़्याल रखते हैं | नज़्म देखें के 


आप गलत समझ रहीं हैं मुझे 


सारे मर्द एक जैसे होते हैं 

ये मत कहिए 

मेरी गुज़ारिश है 

मत कहिए 

मैं नही हूं उन मर्दो जैसा 

जो ग़ुरूर महसूस करे 

किसी महिला को खुद से कमतर बताकर 

मैं नही हूं 

उन जैसा जो सोचते हैं 

किचन सिर्फ औरतों का है 

मैं नही हूं 

यकीनन मैं नही हूं 


मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता 

कि वो फला खाना नही बना पाती 

कि उसे सिर पर पल्लू नही रखना 

कि उसे किसी व्रत में यकीन नही है 

कि वो बच्चे की जिम्मेदारी नही चाहती 

तो क्या हुआ 


इससे कोई फर्क नहीं पड़ता वो कैसी दिखती है 

मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता 

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता वो वर्जिन है या नहीं 

मुझे यकीनन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता 

मुझे अगर फर्क पड़ता है तो सिर्फ इससे 

कि वो इंसान कैसी है 

अपने वालिदैन के बारे में क्या ख्याल रखती है 

उन्हें कितना अहमियत देती है 

अपने ख्वातिन होने पर गर्व करती है या नहीं 

अपने हुनर पर यकीन रखती है या नहीं 

अपने फैसले खुद करने की सलाहियत रखती है या नहीं 

वो आजाद ख्याल है या नहीं 

अपनी खुदमुख्तारी को अपना हक समझती है या नहीं 

उसे अच्छे इंसानों की समझ है या नहीं 


मै उसे दुनियां का डर दिखाकर डराना नही चाहता 

मै उसे किसी रिश्ते के बंधन में बांधना नही चाहता 

मै उसके अरमानों के परों को काटना नही चाहता 

मैं नही हूं उन मर्दों जैसा 

यकीनन मैं नही हूं 

आप गलत समझ रहीं हैं मुझे 


     मेरी ये नज़्म आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


मंगलवार, 4 अक्तूबर 2022

कविता , शस्त्र

      नमस्कार , सर्वप्रथम आपको नवरात्रि एवं विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ | जैसा की हम सब जानते हैं विजयादशमी के दिन शस्त्र पुजा होती है उसी को मध्य में रखकर मैने एक कविता लिखने का प्रयास किया है और बहुत हौसला जुटाकर आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं |


शस्त्र 

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वीर का अधिकार है 

शौर्य का आधार है 

अधर्म का उपचार है 

                          शस्त्र 


शांति का विकल्प है 

स्वधर्म की ढाल है 

अधर्मी पर काल है 

                        शस्त्र 


मां दुर्गा का श्रृंगार है 

आत्मरक्षा का विचार है 

प्रकृति का उपहार है 

                         शस्त्र 


मां काली की कटार है

श्री राम का धनुष है 

महादेव का त्रिशूल है 

                           शस्त्र 


     मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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