नमस्कार , मेरे मन में यह प्रश्न हमेशा से ही उठता रहा है कि आखिर क्यों भगवान श्री कृष्ण पर आस्था रखने वालों के मध्य माता रुक्मिणी को वो स्थान कहीं न कहीं अब तक नही मिल पाया है जो राधाजी को मिला है जबकि भगवान श्री कृष्ण की पत्नी तो माता रुक्मिणी ही हैं |
अपने इसी विचार को केन्द्र में रखकर आज मैने तीन कवित्त में एक छोटी सी रचना करने का प्रयास किया है जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं | इस रचना के लिए कवित्त विधा के चयन का मेरा कारण यह है कि यह हिंदी साहित्य की कुछ सबसे पुरानी विधाओं मे से एक है और इस विधा में अपने विचार को कहने का प्रयास करके मैं इस महान साहित्यिक परंपरा का एक कण मात्र होने का झूठा संतोष पाने की लालसा करता हूं |
अर्धांगिनी श्री कृष्ण की
प्रेम तो मैने भी किया
प्रेम से बढ़कर किया है
चेतना और संवेदना में
हर ह्रदयस्पंदन में जीया है
प्रेम है अमृत सत्य है
मैने भी यह अमृत पीया है
श्री कृष्ण के संग राधा क्यों
जब श्री राम के संग सिया है
निश्चय नही हो सकता यह
आशा और निराशा क्या है
या की यह उमंग वेग कैसा
प्रेम में यह अभिलाषा क्या है
कौन देगा मुझे इसका उत्तर
तनहा प्रेम की परिभाषा क्या है
अगर उचित नही प्रश्न मेरा
बतलाओ प्रेम की भाषा क्या है
श्री कृष्ण का नाम मेरा कीर्तन
मैं जीवन संगिनी श्री कृष्ण की
श्री कृष्ण दर्शन ही मेरा दर्पण
मैं धर्म वामांगी श्री कृष्ण की
श्री कृष्ण का धाम मेरा अर्जन
मैं प्रिया रुक्मिणी श्री कृष्ण की
मेरा सर्वस्व श्री कृष्ण को अर्पण
मैं सदा अर्धांगिनी श्री कृष्ण की
मेरा ये कवित्त आपको कैसा लगा मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
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