शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल , कोई नोटिफिकेसन नही मिलेगा तुमको

      नमस्कार , आज ही मैने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं ग़ज़ल अच्छी लगे तो मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य करवाए |


कोई नोटिफिकेसन नही मिलेगा तुमको 

एकतरफा इश्क़ में वेरिफिकेसन नही मिलेगा तुमको 


गर किसी ने तरस खाकर किया है मुहब्बत तुमसे 

फिर वो डेडिकेसन नही मिलेगा तुमको 


जुल्फें , जज़्बात और ताल्लुकात जितना उलझाओगे 

इनका सिम्पलिफिकेसन नही मिलेगा तुमको 


गर तुम्हें अपने प्यार पे यकीन नही तो ना सही 

अब कोई जस्टिफिकेसन नही मिलेगा तुमको 


जिस्म से रूह तक बहुत सादा है तनहा 

इसका ब्यूटीफिकेसन नही मिलेगा तुमको 


    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

कविता , मै ने तो निमित्त रचा है

      नमस्कार , मैने ये कविता करीब दो हफ्ते पहले लिखी है जिसे मैं आज आपके लिए यहां प्रकाशित कर रहा हूं यदि कविता पसंद आए तो अपने ख्याल हमसे साझा करें |


मै ने तो निमित्त रचा है 


कविताओं के स्वर्णिम युग का 

सृजन के सुकोमल सुख का 

काल के विकराल मुख का 

संसार रुपी अनेकों युग का 

मै ने तो निमित्त रचा है 


ये सारे के सारे प्रबंध वहीं हैं 

उपबंध वही हैं , संबंध वही हैं 

वही रस हैं , अलंकार वही हैं 

उपमाएं वही हैं , छंद वही हैं 

मै ने तो निमित्त रचा है 


मेरा ये एक स्वर है जो 

पत्थर में जो , पर्वत में जो 

मानव में जो , नदीयों में जो 

पशुओं में और कंकड़ में जो 

मै ने तो निमित्त रचा है 


अंकुरण की कल्पना हो 

वेदना हो या चेतना हो 

बुद्धि हो या अहंकार हो 

प्रकाश हो या अंधकार हो 

मै ने तो निमित्त रचा है 


    मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल , इस तरह वो मुझको पराया करती है

      नमस्कार , करीब तीन चार दिन पहले मै ने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं 


इस तरह वो मुझको पराया करती है 

मिलन का वक्त बातों में जाया करती है 


समंदर तो जानता है सीमाएं अपनी 

बाढ तो नदीयों में आया करती है 


जिंदगी खुद को मेरी सास समझने लगी है 

रोज चार बातें सुनाया करती है 


उसके और उसके रिश्ते में अब क्या बाकी है 

वो उसे भइया कहके बुलाया करती है 


प्रेम , प्यार , लव , इश्क़ , मुहब्बत और बाकी सब 

नही यार वो मुझे गणित समझाया करती है 


बर्फ़बारी की तरह जब आती हैं आफतें हयात में 

तनहा लोगों को मांओं की दुआएं बचाया करती है


   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

गुरुवार, 20 जनवरी 2022

ग़ज़ल , अब ये तहज़ीब की पाखंडी सहि नही जाती

      नमस्कार , आज ही मैने ये ग़ज़ल लिखी है और इसे अभी तक कहीं भी साझा नही किया सर्व प्रथम आपके समक्ष रख रहा हूं ग़ज़ल अच्छी हो गई हो तो आपका प्यार मिले 


अब ये तहज़ीब की पाखंडी सहि नही जाती 

जितनी भी दिलकश हो महबूबा घमंडी सहि नही जाती 


एक वक्त ऐसा भी तो आता है मुहब्बत में 

आती हुई गर्मी और जाती हुई ठंडी सहि नही जाती 


बहुत यकीन बाकी है सरकार पर अब भी मेरा 

मगर आखिरकार अब तो ये मंदी सहि नही जाती 


जरा सा झुकने से टूटने का डर बना रहता हो 

बेकार है ऐसी बुलंदी सहि नही जाती 


आजाद करो परिंदे को तुम अपनी कैद से 

मुहब्बत में तनहा नजरबंदी सहि नही जाती 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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