शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

ग़ज़ल, सारा हिन्दुस्तान मुझमें है

       नमस्कार ,  नयी गजलों के सिलसिले की एक और नयी गजल आपके प्लेटफार्म पर प्रस्तुत कर रहा हुं मुझे यकिन है आपको पसंद आएगी |

इश्वर अल्लाह भगवान गीता बाइबल कुरान मुझमें हैं
सारे हिन्दुस्तान में हुं मै और सारा हिन्दुस्तान मुझमें है

एक तरफ हैं फूलों के खेत खलिहान और पर्वत पहाडियां है
एक तरफ समंदर और सारा रेगिस्तान मुझमें है

दिल के किसी कोने मे हैं मोहब्बत के सब्ज पेड
और किसी कोने में सारा नख्लीस्तान मुझमें है

क्या है मोहब्बत दानिश्वरों तक का यही सबाल है
उसमें है मेरी और उसकी जान मुझमें है

गज भर जमीन है मेरी रत्ती भर मिलकीयत में
कहीं तनहा सारा का सारा आसमान मुझमें है

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      इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

बुधवार, 23 अक्टूबर 2019

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 13

      नमस्कार , सितंबर महिने और अब तक में मैने ये कुछ नए मुक्तक लिखें हैं जो मेरी पिछली चली आ रही श्रंखला 'चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे' का हिस्सा है | मैं ये चाहुंगा के आप इन मुक्तो को भी पढे जिस तरह से आपने मेरे सभी पुराने मुक्तकों को पढा है |

भले ही हर बदन पर खादी नही है
यहा हर कोई उदारवादी नही है
हर व्यक्ति हर वर्ग हर जाती एक समान है
चलो सुकून है आज का समाज मनुवादी नही है

रेगिस्तान के खेतों में चूडी खनकेगी
हर खलिहान के माथे पर बिंदी चमकेगी
ये बता दो पत्थर की इमारतों को
सब्ज जमीन पर जिंदगी पनपेगी

रेट के टीलों को सजल कहने वाले
खेत के खरपतवारों को फसल कहने वाले
मोहब्बत का एक मिसरा नही लगा पाए
चलो निकलो ,बड़े आए हैं गजल कहने वाले

उजागर है दुनिया में सच छिपा नही है
ये बता कि आज तुझसे कौन खफा नहीं है
ये जो खुद को मसीहा कहता है पड़ोसियों का
ये शख्स तो अपनों का सगा नही है

मोहब्बत अबकी बार है , नई बात है यार
पहला-पहला प्यार है , नई बात है यार
मैं तो हर रोज करता ही था मगर इस बाल
उसे मेरे ऑनलाइन आने का इंतजार है , नई बात है यार

हर मदहोश शख्स में बस शराबी देखते हैं
ये क्या लोग हैं के बस खराबी देखते हैं
उन यारों का याराना छुट गया यार वरना
मेरे यार तो हर मौसम में ख्वाब गुलाबी देखते हैं

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मंगलवार, 22 अक्टूबर 2019

ग़ज़ल, ग़ज़ल में उसे लिखूं या कुछ नया लिखूं

      नमस्कार , दरहसल गजल हिन्दी उर्दू अदबी साहित्य की  खुबसुरत और कामयाब विधा है के इसकी तरह अगर कोई आडी और तिरछी कलम भी चला ले तो वह मेरा जैसा साहित्य का कविताओ का शायरी का विद्यार्थी भी खुद को गजलगो समझने लगता है | तो इन्ही आडी तिरछी लाइनो मे एक और नयी लाइन के रुप में मेरी इस नयी गजल को समात फर्माए

कितना छोडुं कहॉ से कितना क्या लिखूं
गजल मे उसे लिखूं या कुछ नया लिखूं

अभी तो बस तप्सील जारी है पुख्ता नही है
मर्ज पकड में आ जाए तो दवा लिखूं

दिल मेरा मोहब्बत का संगिन मुजरिम है
आपकी कैद है कहो कौन सी दफा लिखूं

हुस्नवालो से कहो हमे हवस नही मोहब्बत है
मेरा बस चले तो आस्मां पे वफा लिखूं

गुल को छोड पत्थर चुननेवालों को क्या कहें
मुझे क्या गरज कि किसी को बेवफा लिखूं

उब आगया हुं तेरी ख्वाईश करते करते
अब बता ना तेरी तारिफ कितनी दफा लिखूं

कलम की रोशनाई खत्म हो गई गम लिखने में
अब वक्त आया है के कुछ दुआं लिखूं

जला के चल दिए है दीया तनहा महफील में
इसके बुझने की वजह पानी है या हवा लिखूं

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कविता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संकट में है

    नमस्कार , आप सब को पता ही होगा की अभी एक हत्या की खबर समाचार चैनलों पर चल रहीं है और हत्या किसकी हुई है क्यो हुई है और किन लोगों ने कि है आप ये सब भी जानते है |  इसी को ध्यान में रखकर मैने ये नयी कविता लिखी है मै चाहुंगा के आप एक बार मेरी ये कविता जरुर पढे |

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संकट में है

जब सत्य लिखने से पहले हत्या का डर हो
जब सत्य बोलने से पहले हत्या का डर हो
मतलब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संकट में है

अब समय है आगे आओ
अब समय है आवाज उठओ
अब समय है एकता दिखाओ
अब समय है आलस्य मिटाओ
अब समय है मेरे स्वर मे स्वर मिलाओ
क्योकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संकट में है

सत्य के मौत की जिम्मेदारी हमारी है
इस समाज मे सब की हिस्सेदारी है
शांती के संदेश मे हमारी कितनी भागीदारी है
डर के खिलाफ लडने मे समझदारी है
क्या हमे पता है हमारी कितनी तैयारी है
विजय हो या पराजय धर्म सदा अधर्म पर भारी है
हर प्रयास सफलता का अधिकारी है
पर अकर्मठता मानसिक बिमारी है
जबकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संकट में है

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