नमस्कार, ये कविता मेरे छात्रावास के जीवन पर आधारित है तो कि अब जल्द ही खत्म होने वाला है | इस कविता के शीर्षक में जिस नाम का उल्लेख है उस छात्रावास का पुरा नाम रवीन्द्र नाथ टैगोर छात्रावास है यह छात्रावास मेरे कॉलेज सम्राट अशोक तकनीकी संसथान विदिशा मध्य प्रदेश में उपस्थित है | मै इस छात्रावास में कॉलेज के सेकंड इयर में रहा और अब फाइनल इयर में जवाहरलाल नेहरू छात्रावास में हूं | तो इस कविता में उसी पहलीबार छात्रावास में रहने का अनुभव एवं यादें समाहित हैं |
RNT नही भूलेगा
RNT की चाय याद है तुम्हें
मुझे याद है
चाय की , खाने की लाइन में
होने वाली धक्का मुक्की याद है तुम्हें
मुझे याद है
खाने की टेबल पर
एक दूसरे से रोटीयां छिनकर खाना
आधी रात को उठकर खाने की घंटी बजाना
दिवाली के दिनों में
रात के 3 बजे पठाके जलाना
सो रहे दोस्तों को दरवाजा पीट पीट कर जगाना
सब से पैसे मिलाकर सब का जन्मदिन मनाना
फिर रात के 12 बजे केक काटने से पहले
GPL का वो तांडव याद है तुम्हें
मुझे याद है
सीनियरों से मारखाकर
रुम में आकर रोना
साथी यारों का दिल बहलाने की कोशिश करना
रात भर वो गर्लफ्रेंड से बात करना
Exam की आखरी रात जान लगाकर पढना
सीनियरों को नाम लेकर गाली देना
मजाक बेमजाक हर बात पर एक दूसरे को
तली देना याद है तुम्हें
मुझे याद है
वो मेरा रुम नंबर 5
जिसके दरवाजे में नही थी चिटकनी
और खिड़की में नही था कांच
जहां मै अकेला सीनियर रहता था
क्या उस रुम का खामोश सन्नाटा याद है तुम्हें
मुझे याद है
सब याद है
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इन कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
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