रविवार, 12 मई 2019

कविता, अब बूढी मां भी बोझ होती हैं

       नमस्कार , कल मदर्स डे अवसर पर एक कविता लिखी थी जिसे आज आपके सम्मुख प्रस्तुत करना चाहता हूँ | कविता के माध्य से मैने आज के इस बदलती सोच एवं परिवेश पर व्यंग करने की कोशिश कि है मै अपनी कोशिश में कितना कामयाब रहा हूं ये आप मुझे जरूर बताइगा

अब बूढी मां भी बोझ होती हैं

ये एक ही ऐसा रिश्ता है
जो पुरी दुनिया में एक जैसा है
ये मां बेटे का रिश्ता है
हां माना बेटियाँ होती हैं
पापा की परियां
पर मां का राजा बेटा है

मां जब बहोत खुश होती होती है
तब भी रो देती है
मां जब बहोत गुस्से में होती है
तब भी रो देती है
ये एक नदी है ऐसी जो
सारी उम्र स्नेह के जल से भरी रहती है
ये गर्व का विषय है हम सभी के लिए
भारत ऐसा देश जहां मां की पुजा होती है

ये जो विदेशी नयी विचारधारा आई है
संग में अपने ओल्ड एज होम भी लाई है
और अब सच तो ये है मेरे यारों
आज के कलयुगी श्रवण कोे देख
हर मां खून के आंसू रोती है
क्योंकि सिर्फ बेटी ही नहीं
अब बूढी मां भी बोझ होती हैं

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      इन कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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