मंगलवार, 26 नवंबर 2019

कविता, भारत का संविधान

      नमस्कार , आज यानि 26 नवंबर को हमारे सबसे प्राचिन महान विविधता से परिपुर्ण देश भारत का संविधान दिवस है इसकी आपको ठेर सारी शुभकामनाए एवं बधाई | जैसा कि हम सब जानते है भारत दुनियां का सबसे बडा  लोकतांत्रिक देश है साथ ही साध हमारे भारत देश का संविधान दुनियां का सबसे सडा लिखित एवं निर्मित संविधान है और हम सभी देश वासियों को इस पर गर्व है |

       हमारे देश का संविधान इतना बहा एवं महान है कि इसके बारे मे मै कुछ भी लिखु कम ही रहेगा मगर फिर भी मैने एक छोटी सी कविता लिखी है जो यहां उपस्थित है जिसे आपके प्यार कि जरुरत है

भारत का संविधान

एक किताब जो न्याय है
नियम है , विधी है
जो दंण्ड है , क्षमा है
स्पष्ट है , निरपेक्ष है
जो कर्तव्य है , अधिकार है
विचार है , आधार है
जो समान है , सम्मान है
साधन है , समाधान है
जो प्रतीक है , पवित्र है
प्रधान है , विधान है
जो सत्य है , महान है
वो भारत का संविधान है

      मेरीे ये कविता अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

कविता, डर कभी नही जीतेगा

      नमस्कार , आज का दिन कही न कही इंसानीयत के लिए खतरो के प्रति विचार विमर्श एवं मानवता पर लगे एक काले धब्बे का प्रतिक है न शिर्फ भारत के लिए अपितु पुरी दुनिया के लिए | आज 26 नवंबर है जिसे 26 /11 भी कहा जाता है | आज ही के दिन हमारे भारत के महाराष्ट प्रांत के मुम्बई शहर के ताज होटल मे 2008 में पाकिस्तान से आए आतंकियों ने हमला किया था जिसमे सैकडों लोगों की जान गई थी | जैसा कि हम जानते है आतंकबाद आज दुनियी के लिए बहोत बडी चुनैती भी है और खतरा भी जिससे आज भारत समेत दुनिया के सैकडों देश पीडित है लेकिन फिर भी आतंकबाद के इस मुद्दे पर पुरी दुनिया एक टेबल पर नही आ पा रही है | ऐसे वक्त में मै मानता हुं कि हमारे प्रधानमेत्री जी का आतंकबाद के खिलाफ दुनियां के हर बडे म्च पर बोलना पहोत ही प्रभावी एवं साहसिक कदम है

       आज के दिन को याद करते हुए उस हमले में अपनी जान गवाले वाले सभी लोगों को श्रद्धांजलि स्वरुप मैने एक छोटी सी कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं

डर कभी नही जितेगा

सच कभी नही हारेगा
डर कभी नही जितेगा
मानवता कभी मिटेगी नही
किसी हाल में झुकेगी नही
दहसत का विनाश होगा
आतंक का सर्वनाश निश्चित है
तफरत का विनाश निश्चित है
प्रेम हमारा सुनहरा कल होगा
ज्यो गंगा का निर्मल जल है
प्रेम की सदा विजय होगी

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कविता, रंडी कहोगे मुझे

       नमस्कार , आज कि मेरी जो कविता है वह हमारे समाज के उस तबके के पर आधारित है जिसे समाज में कोई स्थान नही दिया जाता या यू कहुं तो उन्हे समाज का हिस्सा ही नही माना जाता जबकी सच्चाई ये है कि यही लोग हमारे सभ्य समाज कहने के अनुरुप में खामियों का आईना हैं | ये कविता है देह व्यापार मे लिप्त लोगो की तथा समाज के उनके प्रति रवैये की | मैने कही पढा था की हमारे भारत में करिब 80 लाख से 1 करोड से ज्यादा देह व्यापार मे लिप्त लोग हैं एवं यह आंकडा कम होने के बजाय दिन दुनी रात अठगुनी बढ रहा है जो कि यकिनन सरकारी नाकामयाबी है | मैने इस कविता में कई पहलुओ को लिखने की कोशिश की है मै इसमे कितना कामयाब रहा ये तो आप ही कविता पढकर मुझे बता सकते हैं

रंडी कहोगे मुझे

हां मै देह व्यापार करती हुं
तो क्या कहोगे मुझे ?
रंडी कहोगे
वेश्या कहोगे
तबायब कहोगे
पतुरिया कहोगे
प्रास्टीट्युड या सेक्स वर्कर कहोगे
बोलोना क्या कहोगे मुझे ?

पुछोगे नही मै रंडी कैसे बनी
कैसे करने लगी अपनी कोमल देह का सौदा
कैसे बेचने लगी अपनी चीखो को
कैसे पीने लगी अपनी आंशुओ को
कैसे धोने लगी आचल पर लगे खुन के दागों को
कैसे जश्न मनाने लगी सिने पर मिले जख्मों का
कैसे घोट पाई मै गला
अपने शुखी संसार के सपनों का
कैसे पी लेली हुं जमाने भर कि जील्लत ताने गालीया
मै तम्हारी सभ्य समाज के सिने मे पालने वाली जलन हुं
इस दुनियां के बनाए नियमों से आजाद
तिरस्कार कि गली में रहने वाली घुटन हुं
हां मै बद्चलन हुं
जिसे तुमने बनाया है

याद है तुम्हे
जब पेट की आग जलाती थी
जब मै तुम्हारे पास काम गांगने आती थी
तब तुम मेरी काबिलीयत नही मेरे सिने के उभार देखते थे
कैसे लचकती है मेरी कमर बार बार देखते थे
तो लो मै अब दिखाने लगी हुं
मुझे जन्म देने वाले तुम तो मेरे पिता थे
फिर मात्र कुछ नोंटो के लिए क्यो बेच दिया तुमने मुझे
मै तो यहां बोरे मे कैद लायी गयी थी
तब से कौन आया है यहां मेरी सुध लेने
मै तो शादी के बाद अपने पति को खा गई थी
यही कहा था समाज ने मुझे
जलिल करके ससुराल से निकाली गई थी
ऐसी लाखों कहानीयां है मेरी
बोलो कितनी सुनाउ तुम्हे
कहा कहा के लगे जख्म दिखाउं तुम्हे

आज जो तुम मुझ पर उंगली उठा रहे हो
ये तुम किसे निचा दिखा रहे हो
याद है वो रात जब तुम शराब के नशे मे गुम थे
मेरे जिस्म के पहले खरिदार तो तुम थे
सच सच बोल दुं क्या वो बात
मै नही गई थी तुम्हारा दरबजा खटखटाने
तुम हि आए थे मेरे पास
मुझे गाली देकर तुम किस गफलत में गुम हो
मेरी बर्बादी के जिम्मेदार तुम हो
तुम जरुरत हो इस बाजार की
तुम्हे जरुरत है इस बाजार की
और मै बाजारु हुं

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बुधवार, 20 नवंबर 2019

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 14

     नमस्कार , पिछले बीते महीने भर में मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हे मै आप के दयार में हाजीर  कर रहा हूं मुझे यकिन है आपको ये मुक्तक यकिनन पसंद आएंगे

अमृत पीने की तमन्ना कौन नही करता
मौत से ज्यादा जीने की तमन्ना कोन नही करता
मेरा उसका वस्ल बहोत मुस्कील है मगर
चांद को छुने की तमन्ना कौन नही करता

इश्वर अल्लाह भगवान गीता बाइबल कुरान मुझमें हैं
सारे हिन्दुस्तान में हुं मै और सारा हिन्दुस्तान मुझमें है
एक तरफ हैं फूलों के खेत खलिहान और पर्वत पहाडियां है
एक तरफ समंदर और सारा रेगिस्तान मुझमें है

जाने क्या इश्क के खेल में क्या अच्छा या बुरा है
आओ जाने तुम्हे मोहब्बत के बारे में कितना पता है
कैसी चलन है वो तुम्हे उसके बारे में क्या पता है
तम्हे उसके बारे में मुझसे ज्यादा पता है

खुशीयां मेरे हिस्से में कम और बहोत ज्यादा गम आते हैं
दिल तो बहोत रोता है मगर आंख में आशु जरा कम आते हैं
मेरी तरफ उंग्ली करके सारे रहनुमाओं ने ये कहा
पहले तुम आगे चलो फिर पिछे पिछे हम आते हैं

वही है हयात की कहानी मगर किरदार बदलते रहते हैं
दुनिया एक किराए का घर है और किराएदार बदलते रहते हैं
कभी मोहब्बत कभी गम कभी खुशी कभी तन्हाई
दिल बीमार भी वही है बस आजार बदलते रहते हैं

मन की सारी सेटिंग डिस्टर्ब हो गयी
जीवन के प्रोग्राम की इंटरप्ट हो गयी
वायरस कि तरह घुस गई हो दिल की हार्डडिस्क मे
मोहब्बत की सारी फाइले करप्ट हो गयी

जहर नहीं बेचता चटपटा चूरमा बेचता हूं मैं
बच्चों के लिए मीठी गोली और खुरमा बेचता हूं मैं
उस मोहल्ले की सारी लड़कियां मेरा इंतजार करती है
नाक की नथनी कान की बाली आंखों के लिए सूरमा बेचता हूं मैं

      मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन मुक्तकों को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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