रविवार, 24 फ़रवरी 2019

कविता, चार पन्नों के इतर भी ज़िन्दगी है

      नमस्कार , हर वक्त हर पल ज़िन्दगी गुजरती जाती है और हम अक्सर इसे किसी किताब में किसी जीवनी में तलाशते रह जाते हैं ये हर इंसान के साथ हो रहा है बस इसी पर चंद लाइनें देख लीजिए

चार पन्नों के इतर भी ज़िन्दगी है

एक पन्ने में परिचय लिखा है
दूसरे में भूमिका है
तीसरे पन्ने ने किरदार बताया है
आखरी पन्ना आते तक
सारांश बन कर रह गयी
ये ज़िन्दगी
पल पल गुजर रही है
मगर किसी को इसकी फिक्र नही

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      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

कविता, क्या रोज रोज वही सवाल करता है

     नमस्कार , एक बेरोजगार नव युवक जब अपनी बेरोजगारी कि समस्या से तंग आकर परेशान रहता है तो कुछ ख्याल उसके मन में यू भी आते हैं जिस तरह से मेरी कविता है

क्या रोज रोज वही सवाल करता है

क्या रोज रोज वही सवाल करता है
चल ना यार
छोड़ ना यार
मालिक बस कुछ ही लोग हैं यहां
बाकी सब किसी न किसी के नौकर हैं
तुम्हें रोज इस बात का अफसोस होता है के
तुम अभी तक किसी के नौकर नही बन पाए
कोई बात नही
तंग अपने इतने भी हालात नही
एक न एक दिन
किसी न किसी के नौकर बन ही जाएंगे
अ जो किसी के नौकर नही बन पाए
तो खुद के मालिक बन जाएंगे
अब और सोचना छोड़ ना यार
चल ना यार

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बुधवार, 20 फ़रवरी 2019

कविता, लोग ठंडी पड़ी चाय समझने लगे हैं मुझे

      नमस्कार , उम्र बढने के साथ साथ इंसान की जिम्मेदारीयां तो बढ जाती हैं मगर मन में जो बच्चा है वह बड़ा नही हो पाता मेरे ख्याल से जिसे शौक कहा जाता है | आधी गूजरी उमर और शौक के बीच कि यही रस्साकशी मेरी कविता का प्रधान भाव है | गुज़ारिश बस ये है कि अगर आप को कविता पसंद आये तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलों जरूर करें और अपना प्यार और आशीर्वाद मुझे यू ही दतें रहें | अब आप हैं और कविता है -

लोग ठंडी पड़ी चाय समझने लगे हैं मुझे

लोग ठंडी पड़ी चाय समझने लगे हैं मुझे
अभी मेरी उम्र ही क्या है मेरी
मात्र पैंतालीस बरस
हां माना चेहरे पर थोड़ी बहुत झुर्रियां है
मगर मैं कोई साठ बरस की थोड़ी हुई हूं
मुझसे अभी और भी कई औरतें बुड्ढीयां हैं
मगर उन्हें तो अभी जवान गाय समझते हैं लोग

मुझे अब भी याद है वह मेरी माईके की गली
वह आम का पेड़
उसी पेड़ की डाली पर तो हम झूला डालते थे
और खूब झूलते थे
मैं और मेरी बचपन की सहेली तितली
मुझे अब भी अच्छा लगता है झूला झूलना
जब कभी गार्डन में जाती हूं
तो जी करता है कि झूला झूललुं
अगर मेरे बच्चे कहते हैं
झूला तो बच्चे और बुड्ढे झूलते हैं

बचपन में मुझे खिलौने बहुत अच्छे लगते थे
तब मेरे पास पूरे एक दर्जन खिलौने थे
हाथी , लंबी पूछ वाला कुत्ता ,  घोड़ा , जोकर     और भी न जाने क्या-क्या
अब भी कहीं किसी खिलौने की दुकान को
देखती हूं तो जी करता है कि
एक खिलौना खरीद लूं अपने लिए
मगर फिर यही ख्याल आता है की
खिलौने तो बच्चे खेलते हैं
और मैं तो अधेड़ उम्र की हूं
तभी तो़
लोग ठंडी पड़ी चाय समझने लगे हैं मुझे

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कविता, ये वही पुराना वाला आदमी है

     नमस्कार , आज के बदलते हुए दौर के बदलाव और रहन सहन को देखकर एक बुज़ुर्ग इंसान क्या सोचता होगा जो इस नए माहौल में खुद को असहज महसूस करता है वही मेरी इस नयी कविता का विषय है | अब और ज्यादा भूमिका न बनाते हुए सीधे सीधे कविता आपके हवाले करता हूँ |

ये वही पुराना वाला आदमी है

ये वही पुराना वाला आदमी है
जो नएपन को अपना नहीं सकता
पुराने विचारों को भुला नहीं सकता
जो इसे मिले हैं पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहे
अपने बुजुर्गों से
उन संस्कारों से पीछा छुड़ा नहीं सकता
बच्चे कहते हैं बड़ा जिद्दी आदमी है
जो कुछ समझता ही नहीं

ये वही पुराना वाला आदमी है
जो कभी बिना नहाए खाता नहीं
इसका दिन ही शुरू नहीं होता
जब तक प्रभु श्री राम के भजन गाता नहीं
जो अब चिढ़ता है मां को मोम कहते सुनकर
जो नएपन को धिक्कारता है
पिताजी को डैड कहते सुनकर
जिसे अब घर की बहओू का
बेहया होना अच्छा नहीं लगता
लोग कहते हैं बड़ा पागल आदमी है

ये वही पुराना वाला आदमी है
जो नएपन को अपना नहीं सकता

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