शनिवार, 26 अक्तूबर 2019

कविता, दीपोत्सव

       नमस्कार , सर्वप्रथम आप को भारत के सबसे बडे एवं विशाल पर्वो में से एक दिवाली की हार्दीक शुभकामनाए | श्री राम के बनवास से घर आगमान की खुशी में अयोध्यावासियों के द्वारा मनाया गया दीपो का उत्सव आज भारत ही नही पुरे विश्व मे बडे धुम धाम से मनाया जाता है | दीपो का वही उत्सव दीपोत्सव बनकर आज उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा पुरे अयोध्या मे मनाया जा रहा है जहां पुरे अयोध्या में पांच लाख से ज्यादा दीए जलाकर नया विश्व कीर्तीमान बनाया जाएगा | इसी उत्सव को मैने अपनी कविता मे कहने की एक छोटी सी को शिश कि है |
कविता , दीपोत्सव
Happy Diwali
दीपोत्सव

लाखो दीयो का जगमगाता प्रकाश
उनसे प्रकाशित अयोध्या का आकाश
खुद को दोहराता स्वर्णिम इतिहास
जन जन के मन में भर रहा उल्लास
दीपों का उत्सव , दीपोत्सव

दीपावली प्रकाश फैलाने की सबसे बडी रीत
असत्य पर सत्य की , पाप पर पुण्य की जीत
लक्ष्मण हनुमान सियाराम का घर आगमन
दुखों का अंत शुखों का जीवन में शुभ आगमन
दीपों का उत्सव , दीपोत्सव

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ग़ज़ल, तमन्ना कौन नही करता

       नमस्कार ,  नयी गजलों के सिलसिले की एक और नयी गजल आपके प्लेटफार्म पर प्रस्तुत कर रहा हुं मुझे यकिन है आपको पसंद आएगी |

अमृत पीने की तमन्ना कौन नही करता
मौत से ज्यादा जीने की तमन्ना कोन नही करता

मेरा उसका वस्ल बहोत मुस्कील है मगर
चांद को छुने की तमन्ना कौन नही करता

नसीब किसी किसी का साथ देता है फिर भी समंंदर में सफिने की तमन्ना कौन नही करता

खुदा की मेहरबानी है फनकार होना लेकीन
फन में नगिने की तमन्ना कौन नही करता

किसी कारनामें से क्या हिजरत मे जिन्दगी
नही तो वस्ल में जीने की तमन्ना कौन नही करता

मुकद्दर और हालात हाथों में कासा थमाते हैं तनहा
वरना चांदी सोने की तमन्ना कौन नही करता

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ग़ज़ल, सारा हिन्दुस्तान मुझमें है

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इश्वर अल्लाह भगवान गीता बाइबल कुरान मुझमें हैं
सारे हिन्दुस्तान में हुं मै और सारा हिन्दुस्तान मुझमें है

एक तरफ हैं फूलों के खेत खलिहान और पर्वत पहाडियां है
एक तरफ समंदर और सारा रेगिस्तान मुझमें है

दिल के किसी कोने मे हैं मोहब्बत के सब्ज पेड
और किसी कोने में सारा नख्लीस्तान मुझमें है

क्या है मोहब्बत दानिश्वरों तक का यही सबाल है
उसमें है मेरी और उसकी जान मुझमें है

गज भर जमीन है मेरी रत्ती भर मिलकीयत में
कहीं तनहा सारा का सारा आसमान मुझमें है

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बुधवार, 23 अक्तूबर 2019

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 13

      नमस्कार , सितंबर महिने और अब तक में मैने ये कुछ नए मुक्तक लिखें हैं जो मेरी पिछली चली आ रही श्रंखला 'चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे' का हिस्सा है | मैं ये चाहुंगा के आप इन मुक्तो को भी पढे जिस तरह से आपने मेरे सभी पुराने मुक्तकों को पढा है |

भले ही हर बदन पर खादी नही है
यहा हर कोई उदारवादी नही है
हर व्यक्ति हर वर्ग हर जाती एक समान है
चलो सुकून है आज का समाज मनुवादी नही है

रेगिस्तान के खेतों में चूडी खनकेगी
हर खलिहान के माथे पर बिंदी चमकेगी
ये बता दो पत्थर की इमारतों को
सब्ज जमीन पर जिंदगी पनपेगी

रेट के टीलों को सजल कहने वाले
खेत के खरपतवारों को फसल कहने वाले
मोहब्बत का एक मिसरा नही लगा पाए
चलो निकलो ,बड़े आए हैं गजल कहने वाले

उजागर है दुनिया में सच छिपा नही है
ये बता कि आज तुझसे कौन खफा नहीं है
ये जो खुद को मसीहा कहता है पड़ोसियों का
ये शख्स तो अपनों का सगा नही है

मोहब्बत अबकी बार है , नई बात है यार
पहला-पहला प्यार है , नई बात है यार
मैं तो हर रोज करता ही था मगर इस बाल
उसे मेरे ऑनलाइन आने का इंतजार है , नई बात है यार

हर मदहोश शख्स में बस शराबी देखते हैं
ये क्या लोग हैं के बस खराबी देखते हैं
उन यारों का याराना छुट गया यार वरना
मेरे यार तो हर मौसम में ख्वाब गुलाबी देखते हैं

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