शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

ग़ज़ल, वही शख्स पुराना लगता है

     नमस्कार , यहा मै अपनी आज ही के दिन  कही गई मेरी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरी दिली तमन्ना है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी

चेहरा जाना पहचाना लगता है
वही शख्स पुराना लगता है

कोई लकल्लुफ नही रहा गुफ्तगू मे
ताल्लुकात बहुत पुराना लगता है

हमकलाम हुए है हम कई दफा सुरज से
हमारा महताब पर आना जाना लगता है

वही चेहरा दिखाता है हरके शख्स मे
ये आईना शायद पुराना लगता है

आग लगाने मे चार पल भी नही लगते
एक घर बनाने मे जमाना लगता है

मेरे शहर मे लोग बारुद कि खेती करते है
तुम्हारे गांव का मौसम सुहाना लगता है

आस्मा है चादर और बिस्तर है जमी मेरी
ये चांद तो मेरे सिर का सिरहाना लगता है

हर फूल पर डालता रहता है डोरे
भवंरे का मिजाज आशिकाना लगता है

तुम कहते हो ये सियासत खाना है
मुझे ये चोर अचक्को का ठीकाना लगता है

तुम्हे क्या लगता है कौन रहता है यहां
दिल मेरा हक उसका मालिकाना लगता है

इलाज नही मौत मिलती है यहां से
बाहर से देखकर ये दवा खाना लगता है

तनहा कई और दिल के बिमार बैठे है
यकिनन यही वो शराबखाना लगता है

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गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

ग़ज़ल, शक होता है

     नमस्कार , इस पोस्ट के माध्यम से मैं यहा अपनी हाल ही के दो चार दिनों में कही गई मेरी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरा दिली अकिदा है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी

मूहं लाल ना हो तो पान पे शक होता है
हर वक्त फिसलने वाली जुबान पे शक होता है

दिल में सुई चुभती है किसी कि बेरुखी पर
मेरी जान अपनी जान पे शक होता है

कैसी मोहब्बत है तेरी बोलकर इजहार भी नही कर सकता
गर ये है तेरा इमान तो तेरे इमान पे शक होता है

ये कैसा अंजाम हुआ जो कातिल के हक मे गया
मुझे तो तेरी बताई दास्तान पे शक होता है

हमारे कुनवे हमारे अहद कि जहनीयत ही यही है
बेटा गर आवारा हो तो पुरे खानदान पे शक होता है

आदमखोर हों या हैवान सब इसी बस्ती से निकलते हैं
मै जिसे भी देखता हुं यहा हर इंसान पे शक होता है

कितने फर्जी रहनुमा घुम रहे है यहा खुदा बनकर
खुदा मुझे तो अब तेरी असल पहचान पे शक होता है

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ग़ज़ल, मेरे दिल में जाने कहां ठहरा है

     नमस्कार , इस पोस्ट के माध्यम से मैं यहा अपनी हाल ही के दो चार दिनों में कही गई मेरी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरा दिली अकिदा है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी

मेरे दिल मे जाने कहां ठहरा है
जहा तुने कहा था वहा ठहरा है

वक्त तो वर्षों गुजर गया मगर
वही का वही एक लम्हा ठहरा है

उसने यू ही फेंके थे कंकड तालाब में
तभी से पानी जहा ठहरा है

ईतना मीठा लहजा था उसका के
कैद से आजाद परिंदा सहमा ठहरा है

ताजमहल एक फरेब है नही मानोगे
क्या किसी मुमताज के लिए शाहजहॉ ठहरा है

ये कहाबत के वक्त खुद को दोहराता है
तबी से एक शख्स तनहा ठहरा है

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ग़ज़ल, लोग पुछते हैं तुम्हे उर्दू सिखाई किसने

     नमस्कार , इस पोस्ट के माध्यम से मैं यहा अपनी हाल ही के दो चार दिनों में कही गई मेरी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरा दिली अकिदा है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी

कौन शख्स है वो , कि है ये खुदाई किसने
लोग पुछते हैं तुम्हे उर्दू सिखाई किसने

अपने ही घरों में नफरतों के बारुद रखे हुए हैं
हम पडोसियों से पुछते हैं ये आग लगाई किसने

गलतफहमी थी तो थी कम से कम गरमाहट तो देती थी
मेरे बदन से खिंचली है ये एहसासों की रजाई किसने

तुम्हे बताउं मै भी झुठ की एक दुकान खोलने वाला हुं
बडी तीजारत है मुल्क में आजतक सुनी है सच्चाई किसने

कितना बेगैरत है वो जो जहर को तिरयात कह रहा है
कराई है यू भी अपनी जगहंसाई किसने

बिना मतलब के किसी ने आजतक एक निवाला नही खिलाया
उसे भरपेट खाना परोश दिया कि है ये अच्छाई किसने

किसी शख्स की तिशनगी मे खुद को फना कर लेना है
तुम्हे सिखाई है मोहब्बत मे ये बुराई किसने

उसकी लडकी का चक्कर चल रहा है उसके लडके के साथ
बताई है तुम्हे ये बात सुनी सुनाई किसने

अच्छा हि था ना मै शगुफ्ता मरने वाला था
तनहा ये बेरुखी से मेरी जान बचाई किसने

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