रविवार, 1 सितंबर 2019

कविता, सौगंध है हमे तिरंगे की

      नमस्कार, मेरी यह कविता हमारे देश भारत के उन तमाम वीर शहीद सैनिकों को समर्पित है जिन्होंने देश की सीमाओ की सुरक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी है और हमारे भारतीय सेना के सभी जवान जो दिन रात सजग रहकर देश की सुरक्षा कर रहे हैं | अपने बहादूर और परमवीर सैनिकों के दम और भारतीय सेना के अकूत साहस के दम पर ही आज भारत कई दशकों से स्वतंत्रत है और हमेशा रहेगा | मेरी ये कविता मेरा एक छोटा सा प्रयास है अपने देश की सेना के प्रति आदर भाव, विश्वास और गर्व को प्रकट करने का एवं अपने सेना की साहस, धैर्य एवं वीरता को नमन करने का साथ ही मेरे देश के दुश्मनों के लिए मेरी यह कविता एक अंतिम चेतावनी स्वरुप है

सौगंध है हमे तिरंगे की

है गर्व मुझे हर वीर शहीद की बलिदानी पर
देश रक्षा में जो बलिदान हो गई उस हरेक जवानी पर
जरा सोचो तो क्या बीती होगी रहा देखते घर आंगन पर
तिरंगे में लिपटा हुआ पति का शव देख नयी बनी सुहागन पर
जरा सोचो तो क्या बीती उस मां के कलेजे पर
जिसने बेटे के धड के टुकडे देखे रखे हुए तिरंगे पर
जरा सोचो तो उस पिता ने ये बोझ कैसे उठाया होगा
जवान बेटे के शव को कैसे समसान पहुँचाया होगा
उस बेटी का तो मन सोचो जब उसने मुखाग्नी लगाया होगा
उन सारी आंखों का आशु कैसे सुख पाया होगा

मेरी ये कविता आतंकवादीयों के हिमायतदार सुनो
धारा 370 के सारे पक्षकार सुनो
भारत के गद्दार सुनो
मेरी ये ललकार सुनो
वो सारे पत्रकार सुनले जो भारती की सेना को कातिल बताते है
वो नेता और अभिनेता भी सुनले जो भारत में  असहिष्णुता के गीत गाते हैं
सन 47 के पापों को हम तुम्हें फिर न दोहराने देंगे
अब ना अपना खून बहाने देंगे
ना अपना घर जलाने देंगे
उस दौर में भी कुछ तुम जैसे ही लोग लगे थे आतंकिस्तान बनाने में
तुम जैसे ही लोग लगे थे पाकिस्तान बनाने में

हम भारत माता के बेटे हैं
सौगंध है हमे तिरंगे की
हर महादेव कि जय
माता हर हर गंगे की
ये नया दौर है नयी सुबह है नया इतिहास बना देंगे
अपने हर दुश्मन का हम दुनिया से नक्शा ही मिटा देंगे
चेतावनी ये आखरी सुनलो
चॉद सितारों वाला झंडा अब घाटी में कोई नहीं लहराएगा
जो जो भारत मुर्दाबाद कहेगा उसको हम दफना देंगे

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ग़ज़ल, यार तुम्हारे बिन

      नमस्कार, कल रात से आज दिन भर के दरमियाना लिखी मेरी एक नयी गजल आपकी ख़िदमत में हाजिर कर रहा हूँ यदि मेरी यह गजल आपको आपके सच्चे दोस्त की याद दिला दे तो मुझे आपकी पुरी मोहब्बत मिलनी चाहिए | गजल देखे के

किससे मांगु सच्ची राय यार तुम्हारे बिन
मन की व्यथा कही न जाय यार तुम्हारे बिन

मकबूलि का आलम है और है तनहाई
फिकी लगती है टपरीवाली चाय यार तुम्हारे बिन

क्या क्या न याद आए हम क्या क्या तुम्हें बताए
उसकी भी तो कोई खबर न आए यार तुम्हारे बिन

तेरी वो बेवकूफीयां हि तो साद करती थी दिल मेरा
अब यहां हमे कौन हंसाए यार तुम्हारे बिन

ये पिज्जा बर्गर क्या है ये नुडल्स पास्ता क्या है
बहोत दिन हुए समोसा और कचौरी खाए यार तुम्हारे बिन

जरुरतो का हवाला है और नौकरी एक ताला है
ये शहर वो तनहा पिंजरा जहां से हम उड़ ना पाए यार तुम्हारे बिन

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कविता, बार बार तुम यार यही कहते हो

       नमस्कार, एक कवि एक शायर की यह जिम्मेदारी ही नही ये उसका कर्तव्य भी होता है की वह अपने समाज में जो भी कुछ गलत होता देख रहा है या महसूस कर रहा है वह बिना किसी डर के या बिना किसी स्वार्थ के दुनिया की आख में आख मिलाकर सच लिख सके और मै यह कविता लिखकर अपने उसी कर्तव्य का निर्वहन कर रहा हूं इस कविता के जरिए मेरा किसी की भी भावना को ठेस पहुंचाना मेरा मक़सद नही है और मैं अपने इस कविता के सभी पाठकों से भी यह मधुर निवेदन करना चाहूंगा की इस कविता को केवल कविता की तरह ही पढ़े |

बार बार तुम यार यही कहते हो

हर बार तुम यही कहते हो
बार बार तुम यार यही कहते हो
गांधी हमारे, नेहरू हमारे
इंदिरा हमारी, राजीव हमारे
क्या ये सब केवल तुम्हारे
क्या ये भारत के कुछ नही
और जब ये सब केवल तुम्हारे
तब तो तुम्हें मानने ही पड़ेगें
ये सारे तथ्य हमारे
धारा 370 और 35ए की गलती तुम्हारी
उससे खड़े हुए सारे सवाल तुम्हारे
एनआरएचएम, 2जी,3जी,कोयला
हो या 2010 खेल ये सारे घोटाले तुम्हारे
वंशावद का वृक्ष तुम्हारा
भाई भतीजा वाद तुम्हारे
भ्रष्टाचार के भीषण बने हालात तुम्हारे
भारत में गरीबी की चरम सीमा तुम्हारी
देश के विकास का हाल बदहाल तुम्हारे
और भी कई बातें है पर
इतने पर ही बोलो क्या हैं ख्याल तुम्हारे

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कविता, क्या सब सही है

     नमस्कार, एक कवि एक शायर की यह जिम्मेदारी ही नही ये उसका कर्तव्य भी होता है की वह अपने समाज में जो भी कुछ गलत होता देख रहा है या महसूस कर रहा है वह बिना किसी डर के या बिना किसी स्वार्थ के दुनिया की आख में आख मिलाकर सच लिख सके और मै यह कविता लिखकर अपने उसी कर्तव्य का निर्वहन कर रहा हूं इस कविता के जरिए मेरा किसी की भी भावना को ठेस पहुंचाना मेरा मक़सद नही है और मैं अपने इस कविता के सभी पाठकों से भी यह मधुर निवेदन करना चाहूंगा की इस कविता को केवल कविता की तरह ही पढ़े |

क्या सब सही है

लव के नाम पर जेहाद सही है
निकाह से पहले हलाला सही है
तुम्हारे लिए तो तीन तलाक भी सही है
जबरन पहनावा हिजाब सही है
और ख़ातूनों के मुंह पर ताला सही है
तुम्हारी नजरों में बोलो ना
और क्या क्या जनाब सही है
मेरे ये सारे सवाल सही हैं
मगर अब तुम्हें सोचना है
क्या तुम्हारा जबाब सही है

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