गुरुवार, 9 सितंबर 2021

ग़ज़ल , उस खुबसुरत चेहरे की कलाकारी देखो

      नमस्कार , लगभग एक से दो हफ्ता पहले मैने ये ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं आज आपके साथ साझा कर रहा हूं ग़ज़ल कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा 

उस खुबसुरत चेहरे की कलाकारी देखो

फिर दिल के भीतर की मक्कारी देखो 


गर नमूना देखना हो तुम्हें ईमानदारी का 

तो जा के कोई दफ्तर सरकारी देखो 


आज इंसानों ने बहुत तरक्की कर ली है 

मगर जानवरों की वफादारी देखो 


दवा बनाने से पहले कब्रिस्तान बनाए गए 

महामारी में सरकारों की तैयारी देखो 


एक बार में पुरा हासिल नही होगा तनहा 

मुझे देखना हो यार तो बारी-बारी देखो 

      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


शनिवार, 29 मई 2021

ग़ज़ल , नही का मतलब नही , नही होता

      नमस्कार , एक दिवस पूर्व मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके सम्मुख प्रस्तुत करना चाहता हूं |

नही का मतलब नही , नही होता 

इस मोहब्बत मे नही , नही होता 


आंखें भी बहुत बोलती हैं उसकी 

ओठ जो कहें दें वही , नही होता 


मोहब्बत में मिला जख्म नही दिखता 

दर्द दिल के सिवा कहीं , नही होता 


सजा पाता हूं उसके किए जुर्म का 

हर बार वही तो सही , नही होता 


रहती हैं उसकी यादें सदा बनकर 

तभी तो मैं तनहा कभी , नही होता 

     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 26 मई 2021

कविता , अपनों को खोकर

      नमस्कार 🙏विधा कविता में विषय अपनों का गम पर दिनांक 4/4/2021 को मैने एक रचना की थी जिसे आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं 

अपनों को खोकर 


आपनों को खोकर 

जीवन रस फिका लगेगा 

न अब सावन 

लगेगा मन भावन 

और फागुन 

फिका फिका लगेगा 

पकवान अब कोई 

न मीठा लगेगा 

आपनों को खोकर 

जीवन रस फिका लगेगा 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , मै तो कोशिश में हूं तुम्हें सच बताने की

     नमस्कार , 26 मई 2021 को मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपसे साझा कर रहा हूँ आशा है कि आपको मेरी ये ग़ज़ल अच्छी लगेगी 

मै तो कोशिश में हूं तुम्हें सच बताने की 

तुम तो सुनते हो बस इस जमाने की 


तुम्हारे महल की ठंडक तुम्हें मुबारक हो 

मेरी तमन्ना है बस मेरा घर बनाने की 


मैं वो नही के इमान को गिरवी रखदूं 

अना तो चीज ही होती है नजर आने की 


इसबार की बहार आए तो यही शर्त रखुंगा 

मुझसे वादा करो लौटकर न जाने की 


यही हुआ है के एक अरसे से मै तनहा हूं 

ये सजा मिली है मुहब्बत न समझ पाने की 

   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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