मंगलवार, 1 सितंबर 2020

ग़ज़ल , अपनी साख बचानी पड़ती है

      नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से दुसरी ग़ज़ल यू देखें के

अपनी साख बचानी पड़ती है

बुझती हूई आग जलानी पड़ती है


नाराजगी का दायरा चाहे जो कुछ भी हो

किसी से उम्रभर की दोस्ती हो जाए तो निभानी पड़ती है


बहुत किमती होने का यही खसारा है

हर किसी को अपनी किमत बतानी पड़ती है


बेवजह ताकत का मुजायरा मुनासिब नही तनहा

पर कभी मुखालफिनों को औकात दिखानी पड़ती है

      मेरी ये ग़ज़ल अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

सोमवार, 31 अगस्त 2020

ग़ज़ल , कोई है के पल पल दिल में उतरता जा रहा है

       नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से पहली ग़ज़ल यू देखें के

चांद का नूर जरा जरा सा बढ़ता जा रहा है

कोई है के पल पल दिल में उतरता जा रहा है


गुर्वत और अमिरी कि नाराजगी तो देखिए

तालाब दिन दिन सुख रहे हैं समंदर है के बढ़ता जा रहा है


मेरी लालटेन में मिट्टी का तेल नही है

आफताब है के बस ठलता जा रहा है


रुह कि नजदीकियां बढ़ रहीं हैं दोस्ती का दायरा घट रहा है

जो एक रिश्ता है बदलता जा रहा है


हर तरह के गुनाह का जुर्म उन्हीं के नाम है

अजीब शक्स है सब कुछ सहता जा रहा है


तो जंग ऐसे जीता हूं आज मैं

मैं खामोश हुं और वो कहता जा रहा है


तनहा इस जमीन ने बादशाहों कों फना होते देखा है

वो देखो एक बुलबुला डूबने कि कोशिश में उवरता जा रहा है

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शनिवार, 29 अगस्त 2020

मुक्तक , ये हमारी इंसाफ की लडा़ई को कमजोर करने पर आमादा है

           नमस्कार , पिछले कुछ वर्षो से हम देख रहें है कि कुछ टी वी चैनल आतंकवादीयों अलगाववादीयों और अपराधियों को पत्रकारिता के नाम पर अपना मंच प्रदान करते आए हैं और न शिर्फ मंच प्रदान करते हैं बल्कि बाकायदा उनका महिमामंडन भी करते है राष्ट की जन भावना के साथ खिलवाड़ करते आए हैं तथा अपराधियों के अपराथ को सामान्यीकृत करने का प्रयास करते आए हैं और इसका हालिया उदाहरण सुसांत सिंह राजपुत के केस में देखने को मिला जब एक तथाकथीत बडे़ चैनल ने इस केस कि मुख्य आरोपी को बैठाकर हास्यास्पद सवाल पुछे और मुख्य आरोपी को पुरा समय दिया जिससे वह पिडी़त पर ही संगीन आरोप लगा सके और उसका चरित्र हनन कर सके और न सिर्फ पिडी़त बल्की उसके पुरे परीवार पर आरोप लगा सके और उनका भी चरित्र हनन कर सके | यह बहुत दुर्भाग्यपुर्ण बात है |

      इसलिए अब समय आ गया है कि इन टी बी चैनलों का पुर्णतय बहिस्कार करके इन्हे सत्य से और राष्ट की जन भावना से अवगत कराया जाए | इसी ख्याल पर मैने एक मुक्तक लिखा है 

हर सबूत को हर सत्य को तोड़ मरोड़ करने पर आमादा हैं 

वो पत्रकारिता के नाम पर कातिलों से गठजोड़ करने पर आमादा हैं

आतंकियों और कातिलों को मासूम बनाकर tv चैनलों पर दिखाने वाले

ये हमारी इंसाफ की लडा़ई को कमजोर करने पर आमादा हैं

     जिस तरह से घने अंधेरे को रोशनी की एक किरण हरा देती है उस तरह से टीवी पत्रकारिता में भी कुछ चैनल ऐसे है जो रोशनी की वही किरण हैं और अगले मुक्तक में मैने एक चैनल का नाम भी लिखा है यदि आप समझ जाएं तो कमेंट में लिखिएगा

बिना आग लगे कहीं से यू ही धूआं निकलता नही है

झुठ के तेल के बिना सच का चिराग जलता नही है

तुम सच कह रहे हो 'भारत' तुम पर भारत यकीन करता है

किसी के काला कहने से सुरज का सच बदलता नही है

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बुधवार, 19 अगस्त 2020

मुक्तक , चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 18


     नमस्कार , पिछले दो तीन हप्तों के दौरान मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हें मैं आपके सम्मुख रख रहा हुं 

कोई तुझे अपना बच्चा कहता है

कोई तुझे बहोत सच्चा कहता है

जब तू था भरा बुरा कहते रहे लोग

अब हर कोई बडा़ अच्छा कहता है


सारे समझौतें को संबंधों को सीमाओं को जो तोडा़ तुमने

हमे निहत्था जान झुंड बना जो घात लगाकर घेरा तुमने

तबाही का बर्बादी का और मौत का तांडव देख लिया

जो हल्दी घाटी के वीरों को गलवान घाटी पर छेडा़ तुमने


इन आंखों में अश्क यूही नही आता

जिसका इंतजार है वोही नही आता

चांद की जगह सुरज नही ले सकता

यहां किसी कि तरह कोई नही आता


अब हो गया मेरे लिए सपना वो

मानता ही नही था मेरा कहना वो

तो क्या हुआ तमाम गिले सिकवे थे 

मगर था तो मेरा अपना वो


शहीदों वाला इनका आगाज होना चाहिए

अंदाज इनका भगत आजाद होना चाहिए

भले गांधी रहें मन से सरदार रहें तन से

पर हर बच्चे के दिल में सुभाष होना चाहिए


अपने जमीन की हिफाजत भी नहीं की गई तुमसे

सच की ईमान की सियासत भी नहीं की गई तुमसे

दोस्त कहकर मौन रहकर बौने को राजा बना दिया

इसे निरंकुशता कहें या कायरता बगावत भी नहीं की गई तुमसे

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