गुरुवार, 13 अगस्त 2020

डॉ राहत इंदौरी साहब , मगर मेरा तो निजी नुकसान हुआ है

       नमस्कार , मुंतजिर हुं कि सितारों की जरा सी आंख लगे , चांद को छतपे बुला लुंगा इशारा करके | राहत इंदौरी का sab tv  पर वाह वाह क्या बात है के शो में सुना मेरा पहला यही वो शेर है जिसने मुझे उस दौर में राहत साहब का दिवाना बना दिया था और मेरी दिवानगी का आलम यह था कि जब मैं शो देखता था तो पेन और कॉपी लेकर बैठता था  राहत साहब को तभी से मैं लगातार पढ़ता सुनता और देखता आ रहा हुं और यदि मैं सच कहुं तो आज जिस तरह भी टूटी फुटी गजल या शेर कह पाता हुं तो उसमें राहत साहब का बडा़ योगदान है क्योंकी उन्हीं की शायरी को सुन सुन कर मुझे शायरी से मोहब्बत हो गयी


       राहत साहब के जाने का सबसे बडा़ नुकसान यह हुआ है कि अब आने वाली पीढि़यां हिंदी उर्दु शायरी के इस अजिम जादुगर शायर का लाइव नही सुन पाएंगी मगर मुझे यहा थोडा़ सुकून है कि कम से कम एक बार मैने राहत साहब को लाइव सुना है  मैं चाहता था कि जीवन में कम से कम एक बार उनसे मिलुं और उन्हें अपनी गजलें और शेर सुनाउं और उनसे कुछ दाद लूं मगर अब मेरा ये ख्वाब महज एक ख्वाब बनकर रह गया है इसलिए मैने शेर में भी कहा है कि मेरा तो निजी नुकसान हुआ है |


दुनिया के लिए एक शख्स हलाकान हुआ है

मगर मेरा तो निजी नुकसान हुआ है


      अब जब राहत साहब हमारे बिच नही रहे तो उनकी तमाम ग़जलें तमाम शेर हमें उनके हमारे बीच होने का आभास कराते रहेंगें मेरी प्रभु श्री राम से प्रर्थना हैं कि दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें ओम शांति 🙏


     राहत साहब की शायरी को लेकर लोगों का अक्सर मिला जुला रुप रहा | जब से मैने उन्हें पढ़ना सुनना शुरु किया था तब से मैने यह महसुस किया की उनकी शायरी को लेकर अक्सर ही कुछ लोग नाराज तो कुछ लोग ताराज रहें | उनके कुछ शेरों को लेकर उनसे असहमत था और हमेशा मुझे यह लगता रहा कि राहत साहब ने ये क्यों लिखा और यही तो एक अच्छे पाठक की निशानि है अगर वह रचनाकार की तारिफ कर सकता है तो आलोचना भी कर सकता है | इसी को मन में रखकर मैने एक मुक्तक यू कहा है


अब हो गया मेरे लिए सपना वो

मानता ही नही था मेरा कहना वो

तो क्या हुआ तमाम गिले सिकवे थे 

मगर था तो मेरा अपना वो


      इन विचारों को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

कविता , स्वागत नव युग

      नमस्कार , सर्व प्रथम आपको राम मंदिर शिलान्याश की हार्दिक शुभकामनाए | करीब 500 सालों के इंतजार तथा हजारों लोगों की बलिदानीयों के बाद राम भक्त हिन्दुओं के हिस्से यह पावन दिन आ पाया है और अभी सत्य की लडा़ई लम्बी है | नव युग का स्वागत करते हुए मेरी यह कविता 6 अगस्त की है जिसे मैं आपके दयार में रख रहा हुं


स्वागत नव युग 


स्वागत नव युग के प्रथम सुर्य

स्वागत नव युग के प्रथम प्रकाश

भव्य पुष्प कमल के उजास

हर जन मन हर्षित गर्वीत

जन जन को सुख आने का विश्वास

सत्य सनातन नभ में गुंजन

स्वागत नव युग के आकाश


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बुधवार, 5 अगस्त 2020

ग़ज़ल , मेरे लिए खुदा हैं राम मेरे

     नमस्कार , आपको एवं सम्पुर्ण भारतवर्ष तथा दुनियाभर के सम्पुर्ण रामभक्तों को श्रीराम मंदिर भुमि पुजन की हार्दीक शुभकामनाएं | आज मैं इस पावन दिन को साकार बनाने में जितने भी लोगों ने संघर्ष किया है उन सभी लोगों के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करता हुं | साथ ही हमारे भारतवर्ष में प्रचलित प्रभु श्रीराम के लिए एक संबोधन कहें या शब्द को लेकर मुझे आपत्ति है,वह शब्द है 'इमाम-ए-हिंद' |

     'इमाम-ए-हिंद' शब्द के बारे में कहा जाता है की सबसे पहले इसका उपयोग शायर इकबाल ने किया था तभी से यह जनमानस में गाहे ब गाहे इस्तेमाल होता आ रहा है | इस्लाम मजहब में इमाम कौन होता है तथा इमाम का दर्जा क्या होता है आप जानते हैं यदि ना जानते हो तो आप Google पर सर्च करके जान सकते हैं | हमार प्रभु श्रीराम हमारे लिए या यू कहुं तो हिन्दूओ के लिए भगवान हैं और हमारे भगवान प्रभु श्रीराम को एक इंसान के बराबर कहे जाने पर राम भक्त होने के नाते मुझे घोर आपत्ति है | यही वजह है कि मुझे इस लफ्ज 'इमाम-ए-हिंद' से आपत्ति है क्योंकि मेरे लिए खुदा हैं राम मेरे | 

    इमाम-ए-हिंद' शब्द के प्रति अपनी इसी भावना को दृष्टीगत रखते हुए मैने एक ग़ज़ल लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं | आप इसके बारे में क्या सोचतें हैं और आपको यह ग़ज़ल कैसी रही अपने विचारों से अवगत कराइएगा |

उनके नाम कि कीर्तन में गुजरते हैं सुबहो साम मेरे
उनकी भक्ति करके पुरे हो जाते हैं चारों धाम मेरे

तुमने कह दिया बस इमाम-ए-हिंद उनको
मेरे लिए तो खुदा हैं राम मेरे

हम भी तुम्हारे अकिदे की इज्जत में साहब कहते हैं
और तुमने जानबूझकर बिगाडे़ हैं नाम मेरे

मेरे खुदा को इंसान के बराबर कह दिया तुमने
और कितना करोगे खुदा को बदनाम मेरे

ये हमदर्दी का दिखावा मत करो खबरों में
वर्ना आजतक तो बस बिगाडे़ हैं तुमने काम मेरे

अपने खुदा की ईवादत का ईवादतखाना बनाने के काबिल हैं हम
तनहा भक्त है राम का और हैं श्रीराम मेरे

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सोमवार, 3 अगस्त 2020

कविता , राखी अनमोल होती है

      नमस्कार , आपको रक्षाबंधन कि हार्दिक शुभकामनाएं | आज के इस पावन दिन पर मैने एक कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं 

राखी अनमोल होती है

रंग बिरंगे रेशम के धागे के उपर
चक्र , चिडि़या , फूल , कबुतर
कि डिजाइनों से सजी हुई
दुकानों पर बिकती हुई
कलाईयों पर बांधे जाने के लिए तैयार
इन स्नेह बंधनों का अस्तीत्व
केवल इतना बस नही है
ये तो दिलों को , मन से , जीवन से
जीवनभर के लिए बांध देती हैं
और इनका छुट जाना रिश्तों का
टुट जाना हो जाता है

यही स्नेह बंधन है जो भाईयों को
भाई होने , कहलाने का दर्जा दिलाता है
यही स्नेह बंधन है जो भाईयों को
हजारों मिल दूर से भी बहन भाई को
एक दिन एक साथ ले आता है
कभी तोहफे के बराबर या कम
मत समझ लेना इसको क्योंकि
राखी अनमोल होती है

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