शनिवार, 30 नवंबर 2019

गाना, तु रब कि महरबानी है

      नमस्कार , मेरा एक छोटा सा नया गाना आपकी खिदमत में हाजिर है मुझे आशा है कि आपको प्रसंद आएगा

तु रब कि महरबानी है

जैसे कोई परिंदा चहके
जैसे कोई गुलाब महके
बरषा बरसे जैसे सावन मे
मेंहदी हो जैसे आंगन में
सपनों जैसी अब जिंदगानी है
तु मेरी प्रेम कहानी है
तु रब कि महरबानी है

तेरा मेरा मिलना दुआ है
दिल में कुछ तो हुआ है
धडकन कि सदा इबादत है
हुंई जो सच्ची मोहब्बत है
ये रब कि कैसी मनमानी है
तु मेरी प्रेम कहानी है
तु रब कि महरबानी है

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कविता, पहला करवा चौथ

      नमस्कार , मेरी ये कविता दरहसल पहली बार करवा चौथ करने वाली वन विवाहित महिलाओ पर आधारित है और मेरी यह कविता मेरी अनुभुतियों का शाब्दीक रुप है

पहला करवा चौथ

करवा में जल भास्कर
पुरवा से ढक कर
चलनी में दीप रखकर
सोलह सिंगार कर
दिन भर का उपवास कर
सुहागने सुहाग के साथ
कर रहीं है चौथ के चांद की प्रतीक्षा
सदा प्रेम इसी तरह बना रहे
यही है मन कि इच्छा
दिन भर की भूखी प्यासी
सुहागन की मनोकामना
इतनी कठिन तपस्या के बाद
हे चंन्ददेव अब और न लो
मेरे सब्र कि परीक्षा
निकलआओ गगन में

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कविता, चौथ का चांद है

      कविता , एक अलग तरह कि कविता पढ के देंखे यह कविता शायरी कि तरह है मैने भी जब इसे लिखा था तो मै यही सोच रहा थाकि यह कविता है की नज्म पर जहा तक मुझे पता है यह कविता हि है

सौहर ने बेगम को देखकर ये कहा
वाह क्या बात है चौथ का चांद है

माशुक ने माशुका को देखकर ये कहा
पहली मुलाकात है चौथ का चांद है

शायर ने शायरा को देखकर ये कहा
हूस्न लाजबाब है चौथ का चांद है

जीजा ने साली को देखकर ये कहा
नयी नयी गुलाब है चौथ का चांद है

मयकदे में शराबी ने मय को देखकर ये कहा
भरी हुई गिलास है चौथ का चांद है

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कविता, जिसके पास रजाई नही है

   नमस्कार , ठंड का मौसम कई मायनों में सब के लिए अलग अलग चीजों के लिए याद रहता है कुछ के लिए मिठे एहसास तो कुछ के लिए कडवे और एक चीज जो इसके केंद्र में रहती है वो है रजाई | पर आज मै इस कविता के माध्यम से हमारे देश भारत के उस वर्ग की बात जो गरिबी रेखा के निचे आते है जिनके नसिब में दो वक्ता भर पेट खान नही है तन पर पुरे कपडे नही है मगर शायद हमारे इसी देश का एसी कार से धुमने वाली बहुमंजिला इमारतों में रहने वाला हवाई जहाज में शफर करने वाला वर्ग समझ ही नही सकता | वैसे तो भारत कि कई जगह कि सर्दीया मसहुर है मगर दिल्ली कि सर्दी की बात ही अलग है

जिनके पास रजाई नही है

अपने बिस्तर पर
अपनी रजाई में दुबका हुआ हुं मै
इस सच से बेखबर की
यही ठंड तो उनके लिए भी है
जिनके पास रजाई नही है
मखमल का कंबल नही है
कंबर तो दूर पुरे तन पर वस्त्र नही हैं
विवाईयां हैं पाव में चप्पल नही है
बिमारीयां तो बहुत हैं
मगर दवाई नही है
और मै सबसे कहता फिरता हुं
बहुत ठंड है

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