शनिवार, 21 सितंबर 2019

कविता, क्या है भारत की सेना दुनिया वालों देखो तुम

     नमस्कार, ये तो पुरी दुनिया जानती है कि हमारे देश भारत में आतंकवाद फैलाने वाला बढाने वाला एक ही देश है और वो है पाकिस्तान और पाकिस्तान केवल भारत के लिए ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए खतरा है | पाकिस्तान और उसके प्रायोजीत आतंकवाद से हमारे देश भारत की सेना लड़ाने मे सक्षम है और लड ही रही है मगर यदि हमारे देश में ही रहकर हमारे देश के कुछ नेता हमारे देश का ही खाकर हमारे ही देश कि सेना का अपमान करते हैं और राष्ट की एकता को आघात पहुंचाते हैं तो एक कवि एक शायर को इस तरह कि कविता लिखने के लिए विवश कर देते हैं

क्या है भारत की सेना दुनिया वालों देखो तुम

बाढ़ से हाहाकार मची है
हर ओर छींक पुकार मची है
आशियाने बह रहे हैं सैलाबों उनके रेल में
जान बचाओ जान बचाओ धरती मां भी पुकार उठी है
जब जान बचाई एक बच्चे की सेना के जलदूतों ने
सलाम किया था बच्चे ने सैनिक को मन से सोचो तुम
क्या है भारत की सेना दुनिया वालों देखो तुम

यह भारत मां के बब्बर शेर गीदड़रों से नहीं डरते हैं
मातृभूमि के खातिर यह भूखों पेट लड़ते हैं
लोगों कि जान बचाने की खातिर जब भी भीषण बाढ में उतरते हैं
कंधो पर कई जिंदगियां बैठाकर पानी में मिलो पैदल चलते हैं
जबान ने जब जान बचाई एक मां की तो चरण स्पर्श कर लिए मां ने समझो तुम
क्या है भारत की सेना दुनिया वालों देखो तुम

ये वंशज है राणा के , पृथ्वी के , सुभाष के
इन सब के तेवर हैं जैसे भगत सिंह , आजाद के
मंगल पांडे , टाटा टोपे की बलिदानी इनको याद है
झांसी वाली रानी की कहानी इनको याद है
आतंकी धूर्त मूर्ख पड़ोसी को हमने चार बार हराया है
अब एक बार फिर लड़ने को वह हमसे अकुताया है
इस बार क्या होगा अंजाम तुम्हारा दुश्मन मेरे मत पूछो तुम
क्या है भारत की सेना दुनिया वालों देखो तुम

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नज्म, बोलो क्यों लाज नही आयी तुमको

      नमस्कार, ये तो पुरी दुनिया जानती है कि हमारे देश भारत में आतंकवाद फैलाने वाला बढाने वाला एक ही देश है और वो है पाकिस्तान और पाकिस्तान केवल भारत के लिए ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए खतरा है | पाकिस्तान और उसके प्रयोजतीत आतंकवाद से हमारे देश भारत की सेना लड़ाने मे सक्षम है और लड ही रही है मगर यदि हमारे देश में ही रहकर हमारे देश के कुछ नेता हमारे देश का ही खाकर हमारे ही देश कि सेना का अपमान करते हैं और राष्ट की एकता को आघात पहुंचाते हैं तो एक कवि एक शायर को इस तरह कि नज्म कहने के लिए विवश कर देते हैं

बोलो क्यों लाज नहीं आयी तुमको

दशकों से कश्मीर को धू धू के जलाया तुमने
कश्मीरी पंडितों को उनके घर से भगाया तुमने
मारे हैं सैनिकों के गालों पर जो तमाचे तुमने
कश्मीर में सेना पर पत्थर भी फेकवाया तुमने
तिरंगे से लिपटे हुए वीर सपूतों को भ्रष्टाचारी कहके
शहीदों की शहादत का भी अपमान किया है तुमने
तुम्हारे ऐसे देशप्रेम की हो ढेरों बधाई तुमको
बोलो क्यों लाज नहीं आयी तुमको

कभी कहते हो आतंकवाद का मजहब नहीं होता है
लेकिन फिर भी दुनिया को हिंदू आतंकवाद तुम ही बताते हो
जिस राम का नाम बसता है भारत के हरेक कण-कण में
उस राम के एक नाम को युद्धघोष तुम बताते हो
असली आतंकवाद देख चुकी है पूरी दुनिया की नजरें
क्या नहीं देता है दिखाई तुमको
बोलो क्यों लाज नहीं आयी तुमको

हरेक रंग का फूल इस गुलिस्तान में शामिल है
जिस एक रंग से नफरत है तुम्हें कयामत तक
वह एक रंग भी मेरे तिरंगे की पहचान में शामिल है
जब भी कुछ कहते हो नफरत से ही कहते हो तुम मेरे लिए
यह जहरीली भाषा बोलो किसने है सिखाई तुमको
बोलो क्यों लाज नहीं आयी तुमको

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शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

ग़ज़ल, थोड़ा बहोत दिल बहलता है

    नमस्कार, आज मै आपके सामने मेरी सात गजलों की सीरीज लेकर आया हूं जिन्हें मैने पिछले महीने में लिखा है उन्हीं गजलों में से सातवी गजल यू है के

सियासत का हर सिकंदर यही कहकर छलता है
आवाम के वोट के ख़ातिर यहाँ सब चलता है

मेरे माथे का पसीना और हाथ के छाले सबूत हैं
पहले मैं मेरा खून जलाता हूं तब मेरे घर में चुल्हा जलता है

कभी यार कभी प्यार कभी दिलदार कभी तकरार
खेल दिखा रहा है जादू का देखो ना वो कितने रुप बदलता है

हकिकत किताबों मे दफन है नयी नस्लों को बुक रटाई जा रही हैं
आज भी ये अकीदा है कि आबताब को कोई शैतान निगलता है

उतना तो अमीर अपने घरों में पानी तक इस्तेमाल नही करते जनाब
जितना उनकी गाडी से कुचलकर किसी गरीब का खून निकलता है

पुरानी निकाह तो गले की फांसी लगने लगती है अक्सर
और नयी मोहब्बत में दिल थोडा ज्यादा ही मचलता है

तेरे रहनुमाों तक ने तुझे खैरात देने से इनकार कर दिया
ये बता अब तू किसके दम पर इतना उछलता है

उन लोगों को रोको मत मोहब्बत की बात करने दो तनहा
और ज्यादा कुछ नही इससे थोड़ा बहुत दिल बहलता है

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ग़ज़ल, हमको तो ये हमारी वो मंजिल नही लगती

     नमस्कार, आज मै आपके सामने मेरी सात गजलों की सीरीज लेकर आया हूं जिन्हें मैने पिछले महीने में लिखा है उन्हीं गजलों में से छठी गजल यू है के

ये मेरी मोहब्बत का हासिल नहीं लगती
जिन आंखों में भूख चमकती है वो मुझे कातिल नहीं लगती

मेरी मर्जी भी शामिल थी तेरी सरकार बनाने में
मगर तेरी योजनाएं मेरे बेहतरी के काबिल नहीं लगती

ये जो तू बांट रहा है खुशियां सबको गिन-गिन कर
मेरी खुशियां शायद तेरी झोली में शामिल नहीं लगती

जिसे देखिए गमगीन बैठा है अपना अपना शेर लेकर
मुझे तो ये शगुफ्ता लोगों की महफ़िल नही लगती

जहां तक पहुंचाने का ख्वाब दिखाया था तनहा तुमने
हमको तो ये हमारी वो मंजिल नही लगती

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