मंगलवार, 3 सितंबर 2019

ग़ज़ल, जाने किसका साया था वो

    नमस्कार, दिल के कुछ एहसान यू गजल में ढाल लेना आसान नही है मगर कोशिश कर रहा हूँ आपका साथ मिले तो मुझे आपका समर्थन मिले

जाने किसका साया था वो
मेरे दिल में कौन आया था वो
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आज जो मेरी जरुरत बन गया है जिस्म में लहू की तरह
कलतलक कितना पराया था वो

जरा सी देर में मैने सोच लिया खुदा ही जाने क्या क्या
जरा सी देर के लिए आगोश में आया था वो

जिस पायल को मामुली सा कहकर तुमने गुस्से में फेंक दिया
तुझे क्या बताउ मेरे मकान का किराया था वो

दोनों रुहे जब बेलिबास हुई तब मैने ये जाना
उसमे पुरा मै और मुझ में पुरा समाया था वो

टूटने की हद पर हमे दर्द बनकर आशुओ ने ये एहसास कराया
तनहा हम दोनों ने रिश्ता कमाया था वो

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      इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

ग़ज़ल, तू एक नया कमाल करदे

नमस्कार, आज के हालात के मध्यनजर एक नयी गजल के कुछ शेर यू देंखे के

तू एक नया कमाल करदे
लोगो का जीना मुहाल करदे

अभी पिछले ही सवाल का जबाब नही मिला
तू एक और नया सवाल करदे

उसने तो कम से कम चलने फिरने लायक छोड़ दिया
तू उससे भी बुरा हाल करदे

मै दाल रोटी खा पाउ या ना खा पाउ
तू तो यार लूटकर कंगाल करदे

तू बादशाह है तेरे हुक्म की तामील होगी
ये मुल्क तेरा मुर्गा है जब चाहे हलाल कर दे

तु किसी फरिश्ते से कम थोड़ी है
गुर्बत छूमंतर करके खुशमुना सूरततेहाल करदे

आसमान जब देना तब देना मेरी झोली में
अभी तो मेरे सर पे तिरपाल करदे

जिस्म तो जिस्म मेरी रुह तक तेरी एहसानमंद रहेगी
थोड़ी और सस्ती अरहर की दाल करदे

नए नए फैसले कर नयी नयी पाबंदीया लगा
बस तू मेरे दुश्मनों को बदहाल करदे

खून के घुट पिलाती है या खून के आशु रुलाती है
तनहा तू मोहब्बत का रंग बदलकर गुलाबी से लाल करदे

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रविवार, 1 सितंबर 2019

कविता, सौगंध है हमे तिरंगे की

      नमस्कार, मेरी यह कविता हमारे देश भारत के उन तमाम वीर शहीद सैनिकों को समर्पित है जिन्होंने देश की सीमाओ की सुरक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी है और हमारे भारतीय सेना के सभी जवान जो दिन रात सजग रहकर देश की सुरक्षा कर रहे हैं | अपने बहादूर और परमवीर सैनिकों के दम और भारतीय सेना के अकूत साहस के दम पर ही आज भारत कई दशकों से स्वतंत्रत है और हमेशा रहेगा | मेरी ये कविता मेरा एक छोटा सा प्रयास है अपने देश की सेना के प्रति आदर भाव, विश्वास और गर्व को प्रकट करने का एवं अपने सेना की साहस, धैर्य एवं वीरता को नमन करने का साथ ही मेरे देश के दुश्मनों के लिए मेरी यह कविता एक अंतिम चेतावनी स्वरुप है

सौगंध है हमे तिरंगे की

है गर्व मुझे हर वीर शहीद की बलिदानी पर
देश रक्षा में जो बलिदान हो गई उस हरेक जवानी पर
जरा सोचो तो क्या बीती होगी रहा देखते घर आंगन पर
तिरंगे में लिपटा हुआ पति का शव देख नयी बनी सुहागन पर
जरा सोचो तो क्या बीती उस मां के कलेजे पर
जिसने बेटे के धड के टुकडे देखे रखे हुए तिरंगे पर
जरा सोचो तो उस पिता ने ये बोझ कैसे उठाया होगा
जवान बेटे के शव को कैसे समसान पहुँचाया होगा
उस बेटी का तो मन सोचो जब उसने मुखाग्नी लगाया होगा
उन सारी आंखों का आशु कैसे सुख पाया होगा

मेरी ये कविता आतंकवादीयों के हिमायतदार सुनो
धारा 370 के सारे पक्षकार सुनो
भारत के गद्दार सुनो
मेरी ये ललकार सुनो
वो सारे पत्रकार सुनले जो भारती की सेना को कातिल बताते है
वो नेता और अभिनेता भी सुनले जो भारत में  असहिष्णुता के गीत गाते हैं
सन 47 के पापों को हम तुम्हें फिर न दोहराने देंगे
अब ना अपना खून बहाने देंगे
ना अपना घर जलाने देंगे
उस दौर में भी कुछ तुम जैसे ही लोग लगे थे आतंकिस्तान बनाने में
तुम जैसे ही लोग लगे थे पाकिस्तान बनाने में

हम भारत माता के बेटे हैं
सौगंध है हमे तिरंगे की
हर महादेव कि जय
माता हर हर गंगे की
ये नया दौर है नयी सुबह है नया इतिहास बना देंगे
अपने हर दुश्मन का हम दुनिया से नक्शा ही मिटा देंगे
चेतावनी ये आखरी सुनलो
चॉद सितारों वाला झंडा अब घाटी में कोई नहीं लहराएगा
जो जो भारत मुर्दाबाद कहेगा उसको हम दफना देंगे

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ग़ज़ल, यार तुम्हारे बिन

      नमस्कार, कल रात से आज दिन भर के दरमियाना लिखी मेरी एक नयी गजल आपकी ख़िदमत में हाजिर कर रहा हूँ यदि मेरी यह गजल आपको आपके सच्चे दोस्त की याद दिला दे तो मुझे आपकी पुरी मोहब्बत मिलनी चाहिए | गजल देखे के

किससे मांगु सच्ची राय यार तुम्हारे बिन
मन की व्यथा कही न जाय यार तुम्हारे बिन

मकबूलि का आलम है और है तनहाई
फिकी लगती है टपरीवाली चाय यार तुम्हारे बिन

क्या क्या न याद आए हम क्या क्या तुम्हें बताए
उसकी भी तो कोई खबर न आए यार तुम्हारे बिन

तेरी वो बेवकूफीयां हि तो साद करती थी दिल मेरा
अब यहां हमे कौन हंसाए यार तुम्हारे बिन

ये पिज्जा बर्गर क्या है ये नुडल्स पास्ता क्या है
बहोत दिन हुए समोसा और कचौरी खाए यार तुम्हारे बिन

जरुरतो का हवाला है और नौकरी एक ताला है
ये शहर वो तनहा पिंजरा जहां से हम उड़ ना पाए यार तुम्हारे बिन

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