रविवार, 21 जुलाई 2019

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे 7

नमस्कार, बीते एक दो महीनो के दरमिया में मैने कुछ मुक्तक लिखे हैं जिन्हें आज मै आपके दयार में रख रहा हूं अब यहां से आपकी जिम्मेदारी है कि आप मेरे इन मुक्तकों के साथ न्याय करें

मुख्तसर शफर हो इसलिए पुराना शहर छोड़ा हैं मैने
नए दिन रात के लिए पुराना साम सहर छोड़ा है मैने
मोहब्बत का एक नया आशियाना बनाने के लिए
उस शहर में अपना पुराना घर छोड़ा हैं मैने

अपने किए के होने वाले अंजाम से चीढ होती है
तपती धूप पसंद लोगों को सर्द साम से चीढ होती है
क्या गज़ब होगा के कोई शैतानो का मुरीद हो यहां
हिन्दुस्तान में अब लोगों को राम के नाम से चीढ होती है

तुझसे दिल लगाने का मलाल है मुझे
अपने दिल की बात न कह पाने का मलाल है मुझे
तेरे मेरे दरमिया ये दूरीया ये दुनिया नही होती तो बहोत अच्छा होता
तेरे बगैर मुस्कुराने का मलाल है मुझ

एक ही हूजरे में कई लोग रहते हैं
खुदा तेरे सजदे में कई लोग रहते हैं
आज पुरानी तसवीरों की एक किताब मिली तो ये जाना
मेरे दिल के हर कोने में कई लोग रहते हैं

जो शर्म उचित वक्त पर आए ना उस शर्म पर लानत है
जो कर्म समाजहित में ना हो उस कर्म पर लानत है
देशप्रेम व्यक्त करने वाले शब्दों के उच्चारण से आपत्ति है जिसे
जिस धर्म में राष्टप्रेम गुनाह है उस धर्म पर लानत है

तू इस कहानी का हिस्सा नया नया नही है
तेरा मेरा किस्सा नया नया नही है
मै जानता हूं वो बहोत खफ़ा है मुझसे
मगर उसका ये गुस्सा नया नया नही है

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      इन मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

सोमवार, 8 जुलाई 2019

नज्म, कितनी गरीब है ज़िन्दगी

       नमस्कार, जब से मैने होश संभाला है तब से लेकर आज तक जिंदगी ने मुझे जो भी दिया या है जो कुछ भी मैने महसूस किया है उऩ सभी एहसासो को एक नज्म में पिरोने की कोशिश की है मै अपनी इस कोशिश में कितना कामयाब हुआ हूं ये आप मुझे बताएंगे, अब यहां से आपकी जिम्मेदारी ज्यादा बनती है |

कितनी गरीब है ज़िन्दगी

हर घडी सांसों की मोहताज है
कितनी गरीब है ज़िंन्दगी
कभी आंसू कभी मुस्कान
कभी काम कभी आराम
कितनी अजीब है ज़िंदगी

जब जिसको चाहती है
कई नाच नचा देती है
पल में दौलत से मालामाल
किसी को तो किसी को
एक एक निवाले का
मोहताज बना देती है
फिर भी सबको यहां
कितनी अजीज है ज़िन्दगी

किसी को बेशुमार फन
से नवाजा है तो
तो किसी को अधूरे मन
से तन नवाजा है
कभी नेकी तो कभी पापा है
किसी की ख़ातिर श्राप है
फिर भी अपनी अपनी
नसीब है ज़िन्दगी

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रविवार, 7 जुलाई 2019

ग़ज़ल, बुराई है बहोत अच्छा होना

     नमस्कार, ये गजल आज लिखा है मैने |आप पढ़े और पढकर बताए की कैसी रही

मन से मासूम दिल का सच्चा होना
इतना आसान भी नहीं है बुढ़ापे मे बच्चा होना

अब ये काबिलियत भी कमजोरीयों के दायरे में आती है
आजकल बुराई है बहोत अच्छा होना

अपने क़ातिल की आह सुनकर भी घबराहट होने लगे
इसी को कहते है दिल का कच्चा होना

इंसाफ़ का वादा किया था सो खुद के साथ इंसाफ़ किया
इसे को कहते है वादे का पक्का होना

वो मुझे आशुओ से तर देखना चाहता था तनहा मुस्कुराता रहा
उसका लाजिम था हक्का बक्का होना

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शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

ग़ज़ल, कैद हूं मैं

नमस्कार, अभी मैने एक गजल लिखी है जिसे मैं आब आपके साथ साझा करने जा रहा हूं | मुझे यकीन है की मेरी ये गजल आपको अच्छी लगेगी

किसी बियाबान में कैद हूं मैं
जिस्मे इंसान में कैद हूं मैं

मजबूरन परिंदों की तरह आजाद उड़ भी नही सकता
अपने मकान में कैद हूं मैं

मै चाहूं भी तो मैं से आगे नही निकल सकता
अपनी पहचान में कैद हूं मैं

किसी कि ख्वाहिशों का गला घोटना रिवाज है यहां
कैसे खानदान में कैद हूं मैं

जिसकी मर्जी के बीना एक पत्ता तक नही हिलता
ऐसे भगवान में कैद हूं मैं

यहां लोग जहन से बहरे हैं कोई चीखे भी तो कैसे
कितने सुनसान में कैद हूं मैं

खुशबूदार फूल होना भी कितना बडा गुनाह है
किसी फूलदान में कैद हूं मैं

अपने काम से काम इस्तेमाल करती है दुनिया मुझको
तनहा किसी सामान में कैद हूं मैं

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