शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

गीत, एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

    नमस्कार, मै जो गीत आज आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं उसे मै ने तकरीबन डेढ़ वर्ष पूर्व लिखना शुरु किया था और आज वो गीत पूर्ण हो गई तो मैने ये तय किया कि इस गीत को आपके सामने प्रस्तुत कर देना चाहिए | इस गीत का भाव हमारे देश में लड़कियों के प्रति हो ने वाली हिंसा की दर्दनाक और शर्मनाक ऐसी घटनाएं है जो किसी भी सभ्य समाज के लिए कलंक हैं | मैं चाहता हूँ कि आप इस गीत को एक बार जरूर पढे और अगर आपके दिल को छू जाए तो औरों के साथ भी साझा करें |

सुनना जरूर तुमको रब का वास्ता
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

उड उड कर रोज दाने खाती थी चुगकर
कभी हंसती थी जोर से कभी शर्माती छुपकर
घुमना चाहती थी वो सारा गगन
रहती थी बस अपनी धुन में मगन
एक दिन भटक गई घर का रास्ता
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

आने वाले खतरे से चिड़िया अनजान थी
चेहरे पर मुस्कान और घोसले की जान थी
कितनी मासूम, कितनी थी भोली
उसकी सुंदरता देख दुनिया हैरान थी
बस दाल के दो दाने थे उसका नाश्ता
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

एक चिडा रोज उसका करता था पीछा
कहता था चिडिया से प्यार है तुमसे
तुम भी करो प्यार कहता था हमसे
जब मानी नही चिडिया तो कर्म किया निचा
अपना लिया उसने जुर्म का रास्ता
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

सुनना जरूर तुमको रब का वास्ता
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

एक दिन वो भी आया जब हैवानीयत की हद हो गई
ज़िन्दगी शर्मिंदा थी, इंसानियत मरगई
चिडे ने उस दिन जब जबरन मरोडी कलाई
और चिडिया के तन से खिचा दुपट्टा
तब चिडिया ने किया विरोध वो नही मानी
तो चिडे ने फेंका चिडिया के चेहरे पर तेजाब वाला पानी
पल में चिडिया का जीवन जलकर खॉख था
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

दुनिया जिसे पहले कहती थी खुबसुरत
अब देखती भी नही समझकर बदसूरत
जीत गया चिडा चिडिया को जलाकर
आजाद उड रहा है कानून को कुछ बोटियां खिलाकर
और चिडिया का हर सपना जलकर राख था
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

सुनना जरूर तुमको रब का वास्ता
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

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गुरुवार, 4 जुलाई 2019

गजल, मोहब्बत के हाथों मजबूर होने की

    नमस्कार, हफ्ते भर पहले मैने एक गजल लिखी है जिसे मैं आज आपके साथ साझा करने जा रहा हूं

मोहब्बत के हाथों मजबूर होने की
सजा मिल रही है बेकसूर होने की

खुद को जमाने भर का बादशाह समझ लेना
यही तो निशानी है गुरुर होने की

किसी के दिल पर बादशाहत चाहते हो
यही वो उमर है फ़ितूर होने की

मुझे लगता है वो मेरी जिस्म का आधा हिस्सा है
उसे शिकायत है मुझसे दूर होने की

सजा बगैर गुनाह किए भी मिल सकती है
हर बार जरूरी नहीं कसूर होने की

शर्त रखकर मोहब्बत हो नहीं सकती
मोहब्बत में हर बात होती है मंजूर होने की

दुनिया चाहती ही यही है कि तन्हा गुमनाम हो जाए
मगर मुझे जिद है मशहूर होने की

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शनिवार, 22 जून 2019

मुक्तक , चार चार लाइनों में बातें करूंगा 6

    नमस्कार, दो तीन महीनो के बीच अपने लिखे हुए कुछ मुक्तक आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं | इन मुक्तकों में कुछ सच कुछ किरदारों को बया करने की कोशिश की है मैने अब आपको इन किरदारो को पहचानना है यहां से आपकी जिम्मेदारी अब ज्यादा बनती है मेरी इन रचनाओं के साथ न्याय करने की

मैने सोचा था कि दरिया के किनारों पर चल रहा हूं मैं
किसी नेक ख्याल शख़्स के विचारों पर चल रहा हूं मैं
मगर अब जाकर जादूगर का तिलिस्म टूटा है
एक क़ातिल के इशारों पर चल रहा हूं मैं

मुझे असहिष्णुता शब्द कहने में डर लगता है
मुझे यकीन है आपको सच सुनने में डर लगता है
यही होगा जमीर मरना , इस मुल्क ने जिन्हें सोने के घर दिए हैं
उन्हें हिन्दुस्तान में रहने में डर लगता है

हिन्दुस्तान की नयी तस्वीर बनायी जा रही है
नफरत फैलाने में पारदर्शिता लायी जा रही है
जातीय समीरण राजनीति का भगवान है
तभी तो भगवानो की जात बताई जा रही है

अब ध्रुवीकरण शब्द मुद्दा बना है
क्या राष्ट्रहित में बोलना मना है
जिन्हें लगता है अब देश केवल एक ही रंग में रंग जाएगा
तो याद रखना की वो एक रंग भी कई रंगों से मिलकर बना है

तुम्हारा सच अपने चश्मे से दिखा रहा है
कोई तो बात है जो तुमसे छुपा रहा है
वो जानता तुम अपने मुल्क से बहोत प्यार करते हो
अपनी जीत के लिए वो तुम्हारी भावनाओ का फायदा उठा रहा है

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मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा 5

     नमस्कार, दो तीन महीनो के बीच अपने लिखे हुए कुछ मुक्तक आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं | इन मुक्तकों में कुछ सच कुछ किरदारों को बया करने की कोशिश की है मैने अब आपको इन किरदारो को पहचानना है यहां से आपकी जिम्मेदारी अब ज्यादा बनती है मेरी इन रचनाओं के साथ न्याय करने की

नफरत को धुल चटाया है
मोहब्बत ने गुल खिलाया है
ये कसीदा नही हकीकत है
एकतरफा जनादेश आया है

ऐसे ही हीज्र का गम मनाएंगे हम
खूब हंसेंगे और मुस्कुराएंगे हम
इतनी नजदीकी भी दम घोंट देगी
थोडा नफरत के करीब जाएंगे हम

इंतजार के लम्हे गुज़रते नही जल्दी
मुकद्दर में लिखे हालात बदलते नही जल्दी
जिस्म पर लगे घाव तो मरहम लगाने से भर जाते हैं
जहन पर लगे जख्म भरते नही जल्दी

इंसानों की पोशाक पहनकर आगए हैं
जानवर की जात में बदलकर आगए हैं
नोच नोच कर खाने लगे हैं मासूम बच्चीयों को
लगता है मेरे शहर में भी कुछ आदमखोर आगए
हैं

हयात में किरदार बचाना पड़ता है
जंग में हथियार बचाना पड़ता है
हयात जंग सियासत में शिकस्त हो तो हो
सर नहीं दस्तार बचाना पड़ता है

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