बुधवार, 20 फ़रवरी 2019

कविता, ये वही पुराना वाला आदमी है

     नमस्कार , आज के बदलते हुए दौर के बदलाव और रहन सहन को देखकर एक बुज़ुर्ग इंसान क्या सोचता होगा जो इस नए माहौल में खुद को असहज महसूस करता है वही मेरी इस नयी कविता का विषय है | अब और ज्यादा भूमिका न बनाते हुए सीधे सीधे कविता आपके हवाले करता हूँ |

ये वही पुराना वाला आदमी है

ये वही पुराना वाला आदमी है
जो नएपन को अपना नहीं सकता
पुराने विचारों को भुला नहीं सकता
जो इसे मिले हैं पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहे
अपने बुजुर्गों से
उन संस्कारों से पीछा छुड़ा नहीं सकता
बच्चे कहते हैं बड़ा जिद्दी आदमी है
जो कुछ समझता ही नहीं

ये वही पुराना वाला आदमी है
जो कभी बिना नहाए खाता नहीं
इसका दिन ही शुरू नहीं होता
जब तक प्रभु श्री राम के भजन गाता नहीं
जो अब चिढ़ता है मां को मोम कहते सुनकर
जो नएपन को धिक्कारता है
पिताजी को डैड कहते सुनकर
जिसे अब घर की बहओू का
बेहया होना अच्छा नहीं लगता
लोग कहते हैं बड़ा पागल आदमी है

ये वही पुराना वाला आदमी है
जो नएपन को अपना नहीं सकता

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      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

कविता, एक आंसू जवाब चाहता है

     नमस्कार , कल 17/02/019 को मैने एक कविता लिखी है कविता एकदम नयी है तो किसी को सुनाई भी नही है आप इसके पहले पाठक होंगे तो मै ये चाहता हूँ कि इस कविता में अगर कोई पंक्ति या शब्द आपको ऐसा लगे की इसमे बदलाव करना चाहिए तो कमेंट में मुझे जरूर बताइएगा |

एक आंसू जवाब चाहता है

एक आंसू जवाब चाहता है
क्यों बहाया मुझे इसका हिसाब चाहता है
जिसे पढ़कर सुकून का कोई लम्हा मयस्सर हो जाए
दिल ऐसा कोई किताब चाहता है
एक आंसू जवाब चाहता है

बेवजह तो कोई रोता नहीं
बिना रोए आंसू होता नहीं
क्या क्या बताऊं मैं क्या ना बताऊं मैं
मन में बहुत संका छुपी है इसके
यह कहना बेहिसाब चाहता है
एक आंसू जवाब चाहता है

यह भी कोई बात है कि बहता हूं मैं
तुम्हारा गम सबसे पहले सहता रहा हूं मैं
आज बगावत पर उतर आया है
यह करना मुझे लाजवाब चाहता है
एक आंसू जवाब चाहता है

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चार नए मुक्तक

  नमस्कार , हाल के महीनों में मेरे लिखे कुछ तिन चार मुक्तकों को समात फर्मालें हो सकता है ये किसी काम लायक हो -

                     (1)

हर खुशी हर सम्मान से ज्यादा है
मान और अपमान से ज्यादा है
भूलकर भी सड़कों पर कभी यूं न फेंकना इसे
इस झंडे की कीमत मेरी जान से ज्यादा है

                       (2)

हां ये सच है मैं टूटा जरूर हूं
मगर मुझे कांच सा बिखरना नहीं आता #
वो और लोग होंगे जो अपने रुख से पलट जाते हैं
सच बात कह कर मुझे मुंकरना नहीं आता

                       (3)

मेरे करीब से तेरा गुजर जाना भी  कयामत ढाता है
मुझे देखकर तेरा मुस्कुराना भी कयामत ढाता है
खूबसूरती इतनी है कि उफ
यूं बात-बात पर तेरा रूठ जाना भी कयामत ढाता  है

                        (4)

चांद का नूर जरा जरा सा बढ़ता जा रहा है
कोई है के पल पल दिल में उतरता जा रहा है
गुरबत और अमीरी की नाराजगी तो देखिए
तालाब दिन पर दिन सूखते जा रहे हैं समंदर है के बढ़ता जा रहा है

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शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

ग़ज़ल , उसकी औकात ही यही है

    नमस्कार , एक और पीठ पर कायराना हमला , एक और कभी न भरनेवाला जख्म , जी हा मै बात कर रहा हूं पुलवामा में 14 फरवरी को करीब साढे तीन बजे हुए पाकिस्तानी आतंकवादी हमले की जिसने हमारे देश की CRPF के 40 वीर जवान शहीद हो गए और बहुत बड़ी घायलों की संख्या अभी भी जिंदगी एवं मौत की जंग लड रही हैं | मेरी भगवान से यही प्रार्थना है कि इन घायलों को जल्द से जल्द स्वस्थ करदें | जब से मैने इस हमले के बारे में सुना हैं तब से मै विचलित हूं , रह रह कर वो टीवी पर देखे हुए मंजर आंखों के सामने आ रहे हैं जहां जवानों की तिरंगे मे लिपटी हुई लाशें हैं उनके परिवार के रोते बिलखते चेहरे हैं | ऐसी हर बार की अपूरणीय क्षति के बाद होता तो ये है कि हमारे देश की सियासत कुछ राहत पैकेज का ऐलान करती है मतलब ये है कि शहादत की किमत अदा करती है | मगर मै ये पुछना चाहता हूं के क्या चंद रुपये की राहत एक मां को उसका बेटा दे सकती है , एक बाप को उसके बुढापे का सहारा घर का चिराग वापस कर सकती है , एक बच्चे को उसका बाप लौटा सकती है , एक बहन को उसका भाई दे सकती है , उस पत्नी के दुःखों को कम कर सकती है जिसे आज अपने हाथों से अपनी चूडी तोडनी पर रही है अपना मंगलसूत्र उतारना पड़ रहा है | इस हमले की खबर के बाद से ही श्रद्धांजलि देने का सिलसिला सोशल मीडिया एवं देश में चल रहा है मगर मुझे ये लगता है कि जिस दिन हमारा बदला पुरा हो गया उस दिन हमारे वीर अमर शहीदों को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी |

      हमारे वीर शहीद जवानें को अधुरी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैने एक गजल लिखी है जिसे मैं आज आपके साथ साझा कर रहा हूं | मै चाहता हूँ की आपका साथ मुझे मिले |

तल्ख है मगर ये बात ही सही है
गीदड़रों की जात ही यही है

बारहा पीठ में ही मारता है खंजर
उसकी औकात ही यही है

एक एक मौत के सौदागर को मौत का तोहफा देकर पहुंचाओ जहन्नुम
आतंकवाद की बीमारी का इलाज ही यही है

कुत्ते को कुत्ता न कहें सूअर को सूअर न कहे तो और क्या कहें
कहना पड़ेगा हालात ही यही है

हिंद के एक एक दुश्मन को चुन चुन कर कुत्ते की मौत मारती है
तनहा हिंद की फौज का मिजाज ही यही है

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      इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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