बदलाव का स्वर हर बार अपने साथ कुछ चुनौतियां लाता है | चाहे किसी भी परिस्थिति का बदलाव करना हो या किसी वस्तु का बदलाव हमेशा कुछ ना कुछ नयापन उजागर करता है | एक निश्चित समय अवधि के बाद हर पुरानी हो चुकी चीज में बदलाव की जरूरत होती है | चाहे वह घोटालों पर घोटाले करती सरकार हो या फिर अंधविश्वास , छुआछूत , बेटियों के प्रति हीन भावना आदी |
बदलाव के स्वर को उजागर करती हुई मेरी एक ग़ज़ल है जिसे मैं आप लोगों के सामने प्रस्तुत कर रहा हूं | आशा है कि यह ग़ज़ल आप लोगों को पसंद आए
इस नदी की धार को कोई किनारा दीजिए
हर नए बदलाव में साथ हमारा दीजिए
हर नए बदलाव में साथ हमारा दीजिए
दुनिया रंगों से भरी है बात कितनी सच्ची है
बूढ़ी आंखों को कोई सुंदर नजारा दीजिए
बूढ़ी आंखों को कोई सुंदर नजारा दीजिए
स्थिर खड़े साहिल को इसकी कोई जरूरत नहीं
डगमगाती नाव को अब सहारा दीजिए
डगमगाती नाव को अब सहारा दीजिए
कच्चा धागा ही तो था टूट गया तो क्या हुआ
दिल का तोहफा दिलरुबा को फिर दोबारा दीजिए
दिल का तोहफा दिलरुबा को फिर दोबारा दीजिए
मेरी यह गज़ल आप लोगों को कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्र के जरिये जरूर बताइएगा | अगर मेरे विचारों को लिखते वक्त मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो मैं उसके लिए बेहद क्षमा प्रार्थी हूं | नमस्कार |