बुधवार, 14 मार्च 2018

इस नदी कि धार को कोई किनारा दीजिए

   बदलाव का स्वर हर बार अपने साथ कुछ चुनौतियां लाता है |  चाहे किसी भी परिस्थिति का बदलाव करना हो या किसी वस्तु का बदलाव हमेशा कुछ ना कुछ नयापन उजागर करता है |  एक निश्चित समय अवधि के बाद हर पुरानी हो चुकी चीज में बदलाव की जरूरत होती है | चाहे वह घोटालों पर घोटाले करती सरकार हो या फिर अंधविश्वास , छुआछूत ,  बेटियों के प्रति हीन भावना आदी |

इस नदी कि धार को कोई किनारा दीजिए

   बदलाव के स्वर को उजागर करती हुई  मेरी एक ग़ज़ल है  जिसे मैं आप लोगों के सामने प्रस्तुत कर रहा हूं |  आशा है कि यह ग़ज़ल आप लोगों को पसंद आए

इस नदी की धार को कोई किनारा दीजिए
हर नए बदलाव में साथ हमारा दीजिए

दुनिया रंगों से भरी है बात कितनी सच्ची है
बूढ़ी आंखों को कोई सुंदर नजारा दीजिए

स्थिर खड़े साहिल को इसकी कोई जरूरत नहीं
डगमगाती नाव को अब सहारा दीजिए

कच्चा धागा ही तो था टूट गया तो क्या हुआ
दिल का तोहफा दिलरुबा को फिर दोबारा दीजिए

      मेरी यह गज़ल आप लोगों को कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्र के जरिये जरूर बताइएगा | अगर मेरे विचारों को लिखते वक्त मुझसे  शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो मैं उसके लिए बेहद क्षमा प्रार्थी हूं |  नमस्कार |

बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

देवरा होलीया में चोलीया फार दिहले बा

       सबसे पहले होली की हार्दिक शुभकामनाएँ , हैप्पी होली.... , होली है..... | रंगों का नाता इंसानो से प्रकृति ने जोडा है हम जो कपड़े पहनते हैं वह भी रंग-बिरंगे होते हैं , मेहंदी लाल रंग की होती है जब दुल्हन की हथेलियों पर रचती है , बर्फ से ढका हिमालय सफेद रंग का है , अनंत विशाल सागर का जल नीले रंग का प्रतीत होता है , नदी के किनारों पर जमी काई भी अरे सुनहरे रंग की होती है , एक स्त्री सुहागन तभी होती है जब वह लाल रंग का सिंदूर अपने माथे पर धरण करती है |रंगों का अस्तित्व ही इस दुनिया को खुशहाल बनाने के लिए है मगर बदलते दौर के इस परिवेश में मेरा सबाल ये है के आखिर होली के इस  त्यौहार में रंगों से तौबा क्यों ?

होली का त्यौहार मानते बच्चे
होली का त्यौहार मानते बच्चे 
   मुझे याद है कुछ वर्षेा पहले तक तब मै शायद कुछ दस वर्ष का रहा हूंगा | होली आने के कई दिनो पूर्व ही एक दूसरे को रंग गुलाल लगाते थे तथा आने बाली होली मुबारक कहते थे | पर इस दौर में तो लोग होली के दिन भी एक दूसरे को रंग गुलाल लगाते से कतराते है , होली के रंग शिर्फ कपडे ही नहीं रंगते बल्कि मन को भी शांति पहुंचाते है , मन में भरी कड़वाहट को होली में मस्ती के रंगो में रंग देते हैं |

   इसी तरह होली के रंगो से सराबोर पेश है होली का एक लोक गीत जिसे मै ने कुछ दिनों पहले लिखा है , ये लोक गीत देवर भाभी के खट्टे मीठे रिश्ते पर आधारित है | इसी कोटी के लोक गीत फागुन के महीने में मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के इलाकों में गायि जाती है  -

हमार नाया नाया फैशन बिगाड़ दिहले बा
देवरा होलिया में चोलिया फार दिहले बा

रोजे पोछे होठलाली
औउर तोड़ेला गहना
करे बरियारी माने नाही कहना
ताजा मालपुआ जुठार दिहले बा
देवरा होलिया में चोलिया फार दिहले बा

जाने कहां-कहां रंगवा लगउलस 
अपना पिचकारी से ढोढी में चूअउलस  
केतनो गरियायी तनीको ना लजाता
हमके कई के भीतरी उहो रातीयअ से केबाड दिहले बा
देवरा होलिया में चोलिया फार दिहले बा

हमार नाया नाया फैशन बिगाड़ दिहले बा
देवरा होलिया में चोलिया फार दिहले बा

  मेरी यह लोक गीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |               

शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

शेरो शायरी कि बातें

      जय श्री कृष्ण , शसरियाकाल ,आदाव , शायरी में हर शायर कि जहनी सोच , अनुभव तथा कल्पनाओं कि झलक होती है | हर असार हर एक शेर किसी न किसी मक़सद को बया करता है | चाहे शायरी सुनी ,पढी या लिखी जाये हमेसा दिल को सुकून पहुचाती है

शेरो शायरी कि बातें
शेरो शायरी 

    उर्दू शायरी कि जानिब से मेरे ये कुछ असार देखे , एक मतला और एक शेर यू होता है के -

मेरे करीब से तेरा गुजर जाना भी , कयामत ढाता है
मुझे देखकर तेरा मुस्कुराना भी , कयामत ढाता है

खूबसूरती इतनी है कि उफ
यूं बात-बात पर तेरा रूठ जाना भी , कयामत ढाता  है

ये कुछ चंद शेर और समात फर्माये

सर्द झोंकों को मामूली समझकर चरागों को अटारी पर नहीं रखते
कभी होश , कभी पानी , कभी बस्तियां कभी , छप्पर यह हवाएं नजाने क्या-क्या उड़ा लेती हैं

मुल्क की असलियत और तरक्की देखनी है  तो मजहब का चश्मा उतारिए
कोहरे में  साफ रोशनी नजर नहीं आती

चंद लफ़्ज़ों की बात नहीं है कि कुछ सैकड़ा पन्नों में आ जाए
जिंदगी से किताब होती है किताब से जिंदगी नहीं होती

दिल की कहने से पहले उनका मिजाज भाप लेना जरूर
ठंडी बयार और लू में फर्क होता है

बिना बेटियों के घर कैसा होगा
बिना चिड़ियों के घोसला देख लेना

और अब ये मख्ते का शेर देखें के

महफूज हो अब तक जो किसी से मोहब्बत नहीं हुई
मालूम होते हो हो समझदार , बहोत

        मेरी शेरो शायरी कि ये बातें आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |               

शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

नज्म , दिल की बात हो या दिमाग की बात हो

      नमस्कार , हिन्दी उर्दू कविता जिसे साहित्यिक विधा में नज्म कहा जाता है किसी पहचान का मोहताज नही है | भारतीय सिनेमा में नज्में दशको से मुख्य अभिनेताओ , अभिनेत्रीयो के द्वारा पर्दे पर गायी जा रही है और दर्शकों के द्वारा सूनी एवं पसंद की जा रही है | बहरहाल नज्मो का चलन आज के वर्तमान सिनेमा में खत्म हो गया है |

मैने हाल ही में एक नज्म लिखी है जिसे आप सभी मित्रों के हवाले कर रहा हूं , आप सब की दुआए चाहता हूं -

नज्म , दिल की बात
नज्म , दिल की बात 
दिल की बात हो या दिमाग की बात हो

दिल की बात हो
या दिमाग की बात हो
खामोशी है इसीलिए अब तक
ये तय नहीं है

अगर जो दिल की बात हो
तो मुमकिन है कि दिमाग को गवारा ना हो
मगर जो बात न हो तो गुजारा ना हो
चलो तो फिर तय रहा के
दिमाग की बात हो

मगर - मगर जो दिमाग की बात हो
दिल ये कैसे माने
ये तो नादान है ना
दुनियादारी से अनजान है ना
ये तो चाहता है के एक और मुलाकात हो
मगर ये तो दिमाग को मंजूर नहीं

बहुत सोच समझकर सोच रहा हूं
न जाने कब से
और सवाल भी अभी वही है
के किसकी बात हो
दिल की बात हो
या दिमाग की बात हो

     मेरी नज्म के रुप में ये छोटी सी पेशकश आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |          

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