शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

ग़ज़ल , आवारगी के आलम में लड़कपन जानलेवा है

      नमस्कार , अभी एक खबर मीडिया में छायी रही जिसमें एक आशिक ने अपनी महबूबा को 35 टुकड़ो में काटकर मार डाला इसी से उपजी मेरे मन में एक नयी ग़ज़ल के कुछ शेर यू देखें 


आवारगी के आलम में लड़कपन जानलेवा है 

गुमराही के मंजर में बचपन जानलेवा है 


किसी से दिल लगाना पर होशो हवास न खोना 

मुहब्बत में इस कदर अंधापन जानलेवा है 


चींटी और हाथी दोनों इसी जमी पर हैं 

कामयाबी का इतना पागलपन जानलेवा है 


तितलीयों होशियार रहना फूलों की नीयत पर 

खुशबू का ऐसा दीवानापन जानलेवा है 


काश ऐसी कोई सुरत बने के वो मेरा महबूब होजाए 

वरना मैं तनहा और ये अकेलापन जानलेवा है 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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