बुधवार, 30 नवंबर 2022

गीत , रुक्मिणी तुम्हारी

      नमस्कार , बीते हुए कल मेरे मन में एक ख्याल रह रह कर दिन भर आता रहा उसी से इस गीत की जमीन बनी और ये गीत हुई अब मै इसे आपके हवाले कर रहा हूं 


उषा के प्रथम किरण सी रोशनी तुम्हारी 

      तुम्हें याद है ना रुक्मिणी तुम्हारी 


जीवन पथ में तुम्हें बहुत सी रश्मियॉ मिलेंगी 

कोमल लताएं मिलेंगी कलियां मिलेंगी 

जब परछाई बनेगी तो सिर्फ़ संगिनी तुम्हारी 


      तुम्हें याद है ना रुक्मिणी तुम्हारी 


उसकी आंखों का तुमको दर्पण मिलेगा 

एक नदी का सा तुमको समर्पण मिलेगा 

प्रेम योग की बनेगी वही योगिनी तुम्हारी 


      तुम्हें याद है ना रुक्मिणी तुम्हारी 


विरह का बीज कभी बोना नही 

प्रेम मोती को पाकर खोना नही 

रत्न हैं और बहुत पर एक है प्रेममणि तुम्हारी 


      तुम्हें याद है ना रुक्मिणी तुम्हारी 


      मेरी ये गीत आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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