शनिवार, 20 जनवरी 2024

कविता , राम तुम्हारे नहीं हैं

एक नयी कविता आपके साथ साझा करना चाहता हूं आशा है आपको अच्छी लगेगी 

 राम तुम्हारे नहीं हैं


तुम तो कहते थे काल्पनिक हैं

अयोध्या जन्मस्थली ही नहीं

रावण कोई था ही नहीं

लंका कभी जाली ही नहीं


तुम्हें विश्वास नहीं है इस नाम पर 

तुम्हें आस्था नहीं है राम पर 

राम गर तुम्हारे मन मंदिर में पधारे नहीं हैं 

तो फिर राम तुम्हारे नहीं हैं


तुमने प्रश्न उठाए थे राम के सेतू पर

तुम्हें अनास्था है राम के हेतु पर

अब कह रहे हो राम सब के हैं

अब तक तो वक्त बेवक्त कहते थे

राम भक्तों को अंधभक्त कहते थे


राम गुणों के सागर हैं , अति उत्तम हैं 

सर्वोत्तम हैं , पुरुषोत्तम हैं 

गर तुमने आदर्श राम के जीवन में उतारे नहीं हैं 

तो फिर राम तुम्हारे नहीं हैं 


कविता कैसी लगी मुझे अपने विचार व्यक्त जरुर बताइएगा , नमस्कार 

गुरुवार, 18 जनवरी 2024

कविता, तुम कहते हो राम काल्पनिक

 एक नयी कविता आपके साथ साझा कर रहा हूं 

तुम कहते हो राम काल्पनिक है


तुम कहते हो राम काल्पनिक है

धाम अयोध्या का विस्तार काल्पनिक है

रामसेतु का प्रमाण काल्पनिक है

मां शबरी का सत्कार काल्पनिक है

देवी अहिल्या का उद्धार काल्पनिक है


तुम कहते हो राम काल्पनिक है


पिता के वचनों का रखना मान काल्पनिक है

गुरु के उपदेशों का निरंतर ध्यान काल्पनिक है

संकट में भी पत्नी का निज पति पर अभिमान काल्पनिक है

भाईयों के मध्य वो प्रेम वो सम्मान काल्पनिक है


तुम कहते हो राम काल्पनिक है


हां काल्पनिक है तुम्हारा ये बयान

हां काल्पनिक है तुम्हारा ये विकृत ज्ञान 

हां काल्पनिक है तुम्हारा ये पश्चिमी विधान


और तुम कहते हो राम काल्पनिक है


कविता कैसी लगी मुझे अपने विचार जरुर बताइएगा 



गुरुवार, 4 जनवरी 2024

ग़ज़ल, चुनाव नजदीक आ रहे हैं तैसे तैसे

    नमस्कार , एक नयी ग़ज़ल के कुछ शेर यू देखें 


चुनाव नजदीक आ रहे हैं तैसे तैसे 

कमाल पर कमाल हो रहे हैं वैसे वैसे 


गद्दार भी वफादार भी एक ही सफ में हैं 

तमाम सवाल उठते रहे हैं कैसे कैसे 


सामान पुराना है मगर दुकान का नाम नया है 

चल ही रही है दुकानदारी जैसे तैसे 


कुछ नये बादशाह आये हैं सनातन मिटाने के लिए 

और भी बहुत आये थे इनके जैसे जैसे 


अपनी मांओं का सौदा कर दें सत्ता के लिए 

तनहा तमाम लोग भारत में हैं ऐसे ऐसे 


   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


सोमवार, 13 मार्च 2023

ग़ज़ल , जो मेरी जान लेने का इरादा ओढ़ के आएगा

      नमस्कार , एक नयी ग़ज़ल के कुछ शेर यू देखें 


जो मेरी जान लेने का इरादा ओढ़ के आएगा 

वो पहले मुहब्बत करने का वादा ओढ़ के आएगा 


दहलीज़ पर रखा चिराग बुझाना मत सहर देखकर

अंधेरा उजाले का लबादा ओढ़ के आएगा 


उसकी स्याह नियत पहचान न पाओगे तुम 

बहरूपिया मखमल ज्यादा ओढ़ के आएगा 


उसके किरदार पर हजारों इल्जाम लगते हैं 

खुदा आया तो लिहाफ सादा ओढ़ के आएगा 


तनहा जो शख्स जिस्म से नही रुह से बेपर्दा है 

वही शख्स महफिल में रेशम ज्यादा ओढ़ के आएगा 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


Trending Posts