बुधवार, 4 जनवरी 2023

मुक्तक , करोड़ों की दुआएं

      नमस्कार , एक नया मुक्तक हुआ है समात फर्माएं मैं इसे बीना किसी भूमिका के पेश कर रहा हूं मुझे यकीन है आपके दिल तक पहुंचेगा |


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तेरे पास नफरत है बददुआएं हैं मुझे देने के लिए 

मेरे पास अनमोल वफाएं हैं तुझे देने के लिए 

ये दुनिया मुझे बहुत गरीब समझती है लेकिन 

मेरे मां के पास करोड़ों की दुआएं हैं मुझे देने के लिए 

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     मेरा ये मुक्तक आपको कैसा लगा मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 30 नवंबर 2022

गीत , रुक्मिणी तुम्हारी

      नमस्कार , बीते हुए कल मेरे मन में एक ख्याल रह रह कर दिन भर आता रहा उसी से इस गीत की जमीन बनी और ये गीत हुई अब मै इसे आपके हवाले कर रहा हूं 


उषा के प्रथम किरण सी रोशनी तुम्हारी 

      तुम्हें याद है ना रुक्मिणी तुम्हारी 


जीवन पथ में तुम्हें बहुत सी रश्मियॉ मिलेंगी 

कोमल लताएं मिलेंगी कलियां मिलेंगी 

जब परछाई बनेगी तो सिर्फ़ संगिनी तुम्हारी 


      तुम्हें याद है ना रुक्मिणी तुम्हारी 


उसकी आंखों का तुमको दर्पण मिलेगा 

एक नदी का सा तुमको समर्पण मिलेगा 

प्रेम योग की बनेगी वही योगिनी तुम्हारी 


      तुम्हें याद है ना रुक्मिणी तुम्हारी 


विरह का बीज कभी बोना नही 

प्रेम मोती को पाकर खोना नही 

रत्न हैं और बहुत पर एक है प्रेममणि तुम्हारी 


      तुम्हें याद है ना रुक्मिणी तुम्हारी 


      मेरी ये गीत आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


रविवार, 20 नवंबर 2022

ग़ज़ल , मेरी बंद जज़्बातों की कोठरी में कुछ रोशनदान हैं

      नमस्कार , एक नयी ग़ज़ल के कुछ शेर यू देखें 


मेरी बंद जज़्बातों की कोठरी में कुछ रोशनदान हैं 

कोई मुसाफिर नही है साहिलों की ये कश्तीयॉ वीरान हैं 


इन ख़्वाबों ने कब्जा जमा लिया है मेरे दिल ओ दिमाग पर 

पहले मैने सोचा था कि ये तो मेहमान हैं 


ये सारे परिंदे जिन्होंने पेड़ों को बसेरा बना रखा है 

मेरा यकीन मानिए इन सब के नाम पर सरकारी मकान हैं 


आज ताली बजा रहे हो जो सड़क का तमाशा देखकर 

तो याद रखना कि तुम्हारे घर की दीवारों के भी कान हैं 


आसमान में एक सुराग है मै कह रहा हूं 

बाकी सब लोग इस हकिकत से अनजान हैं 


तनकिद करनी हो तो तनहा कोई झोपड़ी तलाश करो 

इनके बारे में ज़बान संभालकर बोलना शाही खानदान हैं 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

ग़ज़ल , आवारगी के आलम में लड़कपन जानलेवा है

      नमस्कार , अभी एक खबर मीडिया में छायी रही जिसमें एक आशिक ने अपनी महबूबा को 35 टुकड़ो में काटकर मार डाला इसी से उपजी मेरे मन में एक नयी ग़ज़ल के कुछ शेर यू देखें 


आवारगी के आलम में लड़कपन जानलेवा है 

गुमराही के मंजर में बचपन जानलेवा है 


किसी से दिल लगाना पर होशो हवास न खोना 

मुहब्बत में इस कदर अंधापन जानलेवा है 


चींटी और हाथी दोनों इसी जमी पर हैं 

कामयाबी का इतना पागलपन जानलेवा है 


तितलीयों होशियार रहना फूलों की नीयत पर 

खुशबू का ऐसा दीवानापन जानलेवा है 


काश ऐसी कोई सुरत बने के वो मेरा महबूब होजाए 

वरना मैं तनहा और ये अकेलापन जानलेवा है 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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