गुरुवार, 13 अक्तूबर 2022

नज़्म , आप गलत समझ रहीं हैं मुझे

      नमस्कार , मैने एक नयी नज़्म कहने की चाहत की है इस नज़्म के किरदार में वो सारे मर्द मुकम्मल तौर पर सामिल हैं जो इस नज़्म से वाबस्ता ख़्याल रखते हैं | नज़्म देखें के 


आप गलत समझ रहीं हैं मुझे 


सारे मर्द एक जैसे होते हैं 

ये मत कहिए 

मेरी गुज़ारिश है 

मत कहिए 

मैं नही हूं उन मर्दो जैसा 

जो ग़ुरूर महसूस करे 

किसी महिला को खुद से कमतर बताकर 

मैं नही हूं 

उन जैसा जो सोचते हैं 

किचन सिर्फ औरतों का है 

मैं नही हूं 

यकीनन मैं नही हूं 


मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता 

कि वो फला खाना नही बना पाती 

कि उसे सिर पर पल्लू नही रखना 

कि उसे किसी व्रत में यकीन नही है 

कि वो बच्चे की जिम्मेदारी नही चाहती 

तो क्या हुआ 


इससे कोई फर्क नहीं पड़ता वो कैसी दिखती है 

मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता 

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता वो वर्जिन है या नहीं 

मुझे यकीनन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता 

मुझे अगर फर्क पड़ता है तो सिर्फ इससे 

कि वो इंसान कैसी है 

अपने वालिदैन के बारे में क्या ख्याल रखती है 

उन्हें कितना अहमियत देती है 

अपने ख्वातिन होने पर गर्व करती है या नहीं 

अपने हुनर पर यकीन रखती है या नहीं 

अपने फैसले खुद करने की सलाहियत रखती है या नहीं 

वो आजाद ख्याल है या नहीं 

अपनी खुदमुख्तारी को अपना हक समझती है या नहीं 

उसे अच्छे इंसानों की समझ है या नहीं 


मै उसे दुनियां का डर दिखाकर डराना नही चाहता 

मै उसे किसी रिश्ते के बंधन में बांधना नही चाहता 

मै उसके अरमानों के परों को काटना नही चाहता 

मैं नही हूं उन मर्दों जैसा 

यकीनन मैं नही हूं 

आप गलत समझ रहीं हैं मुझे 


     मेरी ये नज़्म आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


मंगलवार, 4 अक्तूबर 2022

कविता , शस्त्र

      नमस्कार , सर्वप्रथम आपको नवरात्रि एवं विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ | जैसा की हम सब जानते हैं विजयादशमी के दिन शस्त्र पुजा होती है उसी को मध्य में रखकर मैने एक कविता लिखने का प्रयास किया है और बहुत हौसला जुटाकर आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं |


शस्त्र 

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वीर का अधिकार है 

शौर्य का आधार है 

अधर्म का उपचार है 

                          शस्त्र 


शांति का विकल्प है 

स्वधर्म की ढाल है 

अधर्मी पर काल है 

                        शस्त्र 


मां दुर्गा का श्रृंगार है 

आत्मरक्षा का विचार है 

प्रकृति का उपहार है 

                         शस्त्र 


मां काली की कटार है

श्री राम का धनुष है 

महादेव का त्रिशूल है 

                           शस्त्र 


     मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


सोमवार, 19 सितंबर 2022

ग़ज़ल , जिसमें हो परमेश्वर का नाम वो चौपाई नही हो सकते तुम

     नमस्कार , एक नयी ग़ज़ल के कुछ शेर यू देखें 

जिसमें हो परमेश्वर का नाम वो चौपाई नही हो सकते तुम 
सिर्फ कालिख हो सकते हो स्याही नही हो सकते तुम 

चाहते हो नफरत दुआओं में और गाते हो शांति के गीत 
सिर्फ मुनाफ़िक़ हो सकते हो सिपाही नही हो सकते तुम 

तुमने मारा हैं पीठ में खंजर गले से लगाकर मुझको 
सिर्फ कसाई हो सकते हो भाई नही हो सकते तुम 

तुम्हारे विवेक पर ताला है और शैतानों को गाली 
सिर्फ तिरगी हो सकते हो रोशनाई नही हो सकते तुम 

तुम्हारे इतिहास में है तो बस फितना और फितना 
सिर्फ़ जुलम हो सकते हो रहनुमाई नही हो सकते तुम 

ऐ इंसानियत आज खुद से नाउम्मीद हो गया हूं मैं 
सिर्फ बुराई हो सकते हो अच्छाई नही हो सकते तुम 

क्या कहा यकीन करूं मैं और तनहा तुम पर 
सिर्फ गुनाही हो सकते हो बेगुनाही नही हो सकते तुम 

     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

शनिवार, 10 सितंबर 2022

नज्म , बेपर्दा औरतें ऐसी नही होतीं

      नमस्कार , आज मैने ये नज्म लिखी है जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं नज्म कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा कमेंट्स के माध्यम से |


बेपर्दा औरतें ऐसी नही होतीं 


बेपर्दा औरतें ऐसी नही होतीं 

वों तो कहकहे लगाती हैं जमाने के सामने 

इनकार कर देती हैं उन रवायतों को मानने से 

जो उन्हें रोकते हैं जमाने के साथ कदम मिलाकर चलने से 

अपने वजूद को पहचानने से 

वो बड़ी बेबाकी से चिल्लाकर ना कहतीं हैं 

उन लोगों को जो उन्हें बोलने नही देते 

गाने नही देते हंसने नही देते 

वो काट डालती हैं ऐसे पिंजरों को जो उन्हें कैद करना चाहते हैं 

वो अपने चेहरों को नकाबों से ढकती नही हैं 

वो चार लोगों के कुछ कहने की परवाह नही करती 

वो किसी से डरती नही हैं 

वो परवाह करती हैं तो बस अपनी 

अपनी आजादी की 

अपनी खुदमुख्तारी की 

एक अजीब सी बगावत होती हैं उनमें 

गज़ब की अना होती है उनमें 

नही , ऐसी नही होतीं 

बेपर्दा औरतें 


     मेरी ये नज्म आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

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