नमस्कार , एक नयी ग़ज़ल के कुछ शेर यू देखें
जिसमें हो परमेश्वर का नाम वो चौपाई नही हो सकते तुम
सिर्फ कालिख हो सकते हो स्याही नही हो सकते तुम
चाहते हो नफरत दुआओं में और गाते हो शांति के गीत
सिर्फ मुनाफ़िक़ हो सकते हो सिपाही नही हो सकते तुम
तुमने मारा हैं पीठ में खंजर गले से लगाकर मुझको
सिर्फ कसाई हो सकते हो भाई नही हो सकते तुम
तुम्हारे विवेक पर ताला है और शैतानों को गाली
सिर्फ तिरगी हो सकते हो रोशनाई नही हो सकते तुम
तुम्हारे इतिहास में है तो बस फितना और फितना
सिर्फ़ जुलम हो सकते हो रहनुमाई नही हो सकते तुम
ऐ इंसानियत आज खुद से नाउम्मीद हो गया हूं मैं
सिर्फ बुराई हो सकते हो अच्छाई नही हो सकते तुम
क्या कहा यकीन करूं मैं और तनहा तुम पर
सिर्फ गुनाही हो सकते हो बेगुनाही नही हो सकते तुम
मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
अपने चर्चा मंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार 🙏
जवाब देंहटाएंमैं निरंतर इस मंच पर की गई चर्चाएं पढ़ता रहता हूं यह बहुत ही सकारात्मक एवं उत्कृष्ट साहित्य से भरपूर होता है |
बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद |