नमस्कार , कुछ रचनाएं ऐसी होती हैं जिन्हें रचनाकार न सिर्फ रचता है बल्कि उसे जीता भी है या भविष्य में जीना चाहता है आज जो ये गीत मैं ने लिखा है यह उसी तरह की रचना है | यह गीत आपके अवलोकन के लिए उपस्थित है |
प्रेम डोर से बंधी बंदीनी तुम बनो
प्रेम रंग में रंगी रंगीनी तुम बनो
तुम न राधा बनो तुम न मीरा बनो
श्याम गर मैं बनूं रुक्मिणी तुम बनो
प्रेम अंकुर भरा है संसार में
छंद में रस में , अलंकार में
इतने तारे सितारे गगन में हैं क्यों
प्रेम पल्लवित होता है अँधियार में
प्रेम संगीत का एक स्वर है वही
राग गर मैं बनूं रागिनी तुम बनो
प्रेम डोर से बंधी बंदीनी तुम बनो
प्रेम रंग में रंगी रंगीनी तुम बनो
तुम न राधा बनो तुम न मीरा बनो
श्याम गर मैं बनूं रुक्मिणी तुम बनो
प्रेम कंकड़ में शंकर दिखाता है
प्रेम ही तो सावित्री बन जाता है
कभी मेघों को दूत बनाता है प्रेम
प्रेम अंकों में भी मिल जाता है
प्रेम है एक तपस्या चिदानंद है
योग गर मैं बनूं योगिनी तुम बनो
प्रेम डोर से बंधी बंदीनी तुम बनो
प्रेम रंग में रंगी रंगीनी तुम बनो
तुम न राधा बनो तुम न मीरा बनो
श्याम गर मैं बनूं रुक्मिणी तुम बनो
प्रेम शब्दों में बंधकर निहित नही
प्रेम रुपों में रंगों में चिन्हित नही
इससे उंचा हिमालय न सागर है गहरा
प्रेम जैसा कोई फूल सुगंधित नही
प्रेम में विरह भी मधु ही लगे
संग गर मैं बनूं संगिनी तुम बनो
प्रेम डोर से बंधी बंदीनी तुम बनो
प्रेम रंग में रंगी रंगीनी तुम बनो
तुम न राधा बनो तुम न मीरा बनो
श्याम गर मैं बनूं रुक्मिणी तुम बनो
मेरी ये गीत आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |