शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

गीत , कान्हा कहो ना प्रेम क्या है

      नमस्कार , आप सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं | श्री कृष्ण जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर मैने भगवान श्री कृष्ण को समर्पित ये गीत लिखा है |


कान्हा कहो ना प्रेम क्या है 

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क्या है वो पीड़ा विरह की 

कान्हा कहो ना प्रेम क्या है 

रहस्य जो है संयोग वियोग में 

भेद छुपा है जो वेदना में 


        नर नही तुम हो नारायण 

        धर्मनिष्ठ हो कर्तव्यपरायण 

        कर्म में हो निहित तुम भी 

        पर प्रेम में मोहित तुम भी 

        सत्य का विश्वास तुम हो 

        ब्रह्मांड में प्रकाश तुम हो 

        झूठ भी तो तुम में है 

        हो तुम्हीं सत्य की चेतना में 


क्या है वो पीड़ा विरह की 

कान्हा कहो ना प्रेम क्या है 

रहस्य जो है संयोग वियोग में 

भेद छुपा है जो वेदना में 


        मुझसे सब यथार्थ कहो 

        सारांश कहो भावार्थ कहो 

        राधा से वियोग रुक्मिणी से योग 

        इसका सब निहितार्थ कहो 

        समय के तीनों आयामों में तुम हो 

        गति और विरामों में तुम हो 

        मुझसे छंदों में कहो या श्लोकों में 

        या कहो तुम विवेचना में 


क्या है वो पीड़ा विरह की 

कान्हा कहो ना प्रेम क्या है 

रहस्य जो है संयोग वियोग में 

भेद छुपा है जो वेदना में 


        मुझसे कहो आनंद क्या है 

        और फिर परमानंद क्या है 

        मोक्ष निहित है ब्रह्म में या 

        या फिर मोक्ष परब्रह्म में है 

        जीव का अस्तित्व क्या है 

        या मरण का महत्व क्या है 

        अमृततुल्य प्रशंसा है या 

        या की है ये आलोचना में 


क्या है वो पीड़ा विरह की 

कान्हा कहो ना प्रेम क्या है 

रहस्य जो है संयोग वियोग में 

भेद छुपा है जो वेदना में 


     मेरी ये गीत आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

रविवार, 14 अगस्त 2022

वन्दे मातरम् पुरा राष्ट्रीय गीत

 24 जनवरी 1950 को वन्दे मातरम् को भारत के राष्ट्रीय गीत के रुप में अपनाया गया | वन्दे मातरम् गीत को 15 अगस्त की मध्य रात्रि को संसद भवन में पुरा गाया गया था परंतु बाद में कुछ लोगों के विरोध के बाद इसके केबल दो खंड के गाने को मान्य किया गया | आज हम में से बहुत से लोगों को पुरा राष्ट्रीय गीत पता ही नहीं है | क्योंकि आज 76वॉ 15 अगस्त है तो मैं ने निश्चय किया की इस अवसर पर पुरा राष्ट्रीय गीत साझा किया जाए |


वन्दे मातरम्

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वन्दे मातरम्

सुजलां सुफलाम्

मलयजशीतलाम्

शस्यश्यामलाम्

मातरम्।


शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्

फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्

सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्

सुखदां वरदां मातरम्॥ १॥


कोटि कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले

कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,

अबला केन मा एत बले।

बहुबलधारिणीं

नमामि तारिणीं

रिपुदलवारिणीं

मातरम्॥ २॥


तुमि विद्या, तुमि धर्म

तुमि हृदि, तुमि मर्म

त्वम् हि प्राणा: शरीरे

बाहुते तुमि मा शक्ति,

हृदये तुमि मा भक्ति,

तोमारई प्रतिमा गडी मन्दिरे-मन्दिरे॥ ३॥


त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी

कमला कमलदलविहारिणी

वाणी विद्यादायिनी,

नमामि त्वाम्

नमामि कमलाम्

अमलां अतुलाम्

सुजलां सुफलाम्

मातरम्॥४॥


वन्दे मातरम्

श्यामलाम् सरलाम्

सुस्मिताम् भूषिताम्

धरणीं भरणीं

मातरम्॥ ५॥


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शनिवार, 13 अगस्त 2022

कविता , अमृतकाल

     नमस्कार , भारत के आजादी का अमृत महोत्सव को केन्द्र में रखकर आज मैने ये कविता लिखी है जिसे मैं आपके जैसे सुधी पाठकों के मध्य पटल पर साझा कर रहा हूं 


अमृतकाल 


ये स्वतंत्रत अमृतकाल 

पुण्य धरा भारत को 

प्रदान कर रहे हैं महाकाल 

उपहार है हर भारतीय को 


अब निश्चय करले हर मन 

राष्ट्र की सेवा में अर्पित तन मन 

नए संकल्प का उत्साह लेकर 

प्रगति पथ पर जुट जाए जन जन


 यह राष्ट्र अजेय अविनाशी है 

जिसके संस्कृति में काशी 

गंगा का अमृत जल जिसका 

निवासी जिसका भारतवासी है 


     मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |



सोमवार, 25 जुलाई 2022

ग़ज़ल , खुद में ही मस्त रहोगे तो घमंडी हो जाओगे

      नमस्कार , कुछ दिनों पहले मैने ये ग़ज़ल लिखी थी पर कुछ संकोच में था इसलिए आपके समक्ष हाजिर नही कर रहा था पर आज हिम्मत करके आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं 


खुद में ही मस्त रहोगे तो घमंडी हो जाओगे 

बेतुके बेबुनियाद और पाखंडी हो जाओगे 


वो माहौल है सत्ता विरोध का की क्या कहने 

तुम सच बोल दो गे तो संघी हो जाओगे 


मई की गर्मी जैसे भले हों हौसले तुम्हारे 

सरकारी फाइलों के जाल में फंसकर ठंडी हो जाओगे 


आम आदमी तो आम तक नही खरीद सकता 

आजकल मंडी में जाओगे तो मंडी हो जाओगे 


या सब चुप हैं या हूआं हूआं कर रहें हैं 

तनहा तुम भी चुप रहे तो शिखंडी हो जाओगे 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

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