रविवार, 14 अगस्त 2022

वन्दे मातरम् पुरा राष्ट्रीय गीत

 24 जनवरी 1950 को वन्दे मातरम् को भारत के राष्ट्रीय गीत के रुप में अपनाया गया | वन्दे मातरम् गीत को 15 अगस्त की मध्य रात्रि को संसद भवन में पुरा गाया गया था परंतु बाद में कुछ लोगों के विरोध के बाद इसके केबल दो खंड के गाने को मान्य किया गया | आज हम में से बहुत से लोगों को पुरा राष्ट्रीय गीत पता ही नहीं है | क्योंकि आज 76वॉ 15 अगस्त है तो मैं ने निश्चय किया की इस अवसर पर पुरा राष्ट्रीय गीत साझा किया जाए |


वन्दे मातरम्

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वन्दे मातरम्

सुजलां सुफलाम्

मलयजशीतलाम्

शस्यश्यामलाम्

मातरम्।


शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्

फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्

सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्

सुखदां वरदां मातरम्॥ १॥


कोटि कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले

कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,

अबला केन मा एत बले।

बहुबलधारिणीं

नमामि तारिणीं

रिपुदलवारिणीं

मातरम्॥ २॥


तुमि विद्या, तुमि धर्म

तुमि हृदि, तुमि मर्म

त्वम् हि प्राणा: शरीरे

बाहुते तुमि मा शक्ति,

हृदये तुमि मा भक्ति,

तोमारई प्रतिमा गडी मन्दिरे-मन्दिरे॥ ३॥


त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी

कमला कमलदलविहारिणी

वाणी विद्यादायिनी,

नमामि त्वाम्

नमामि कमलाम्

अमलां अतुलाम्

सुजलां सुफलाम्

मातरम्॥४॥


वन्दे मातरम्

श्यामलाम् सरलाम्

सुस्मिताम् भूषिताम्

धरणीं भरणीं

मातरम्॥ ५॥


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शनिवार, 13 अगस्त 2022

कविता , अमृतकाल

     नमस्कार , भारत के आजादी का अमृत महोत्सव को केन्द्र में रखकर आज मैने ये कविता लिखी है जिसे मैं आपके जैसे सुधी पाठकों के मध्य पटल पर साझा कर रहा हूं 


अमृतकाल 


ये स्वतंत्रत अमृतकाल 

पुण्य धरा भारत को 

प्रदान कर रहे हैं महाकाल 

उपहार है हर भारतीय को 


अब निश्चय करले हर मन 

राष्ट्र की सेवा में अर्पित तन मन 

नए संकल्प का उत्साह लेकर 

प्रगति पथ पर जुट जाए जन जन


 यह राष्ट्र अजेय अविनाशी है 

जिसके संस्कृति में काशी 

गंगा का अमृत जल जिसका 

निवासी जिसका भारतवासी है 


     मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |



सोमवार, 25 जुलाई 2022

ग़ज़ल , खुद में ही मस्त रहोगे तो घमंडी हो जाओगे

      नमस्कार , कुछ दिनों पहले मैने ये ग़ज़ल लिखी थी पर कुछ संकोच में था इसलिए आपके समक्ष हाजिर नही कर रहा था पर आज हिम्मत करके आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं 


खुद में ही मस्त रहोगे तो घमंडी हो जाओगे 

बेतुके बेबुनियाद और पाखंडी हो जाओगे 


वो माहौल है सत्ता विरोध का की क्या कहने 

तुम सच बोल दो गे तो संघी हो जाओगे 


मई की गर्मी जैसे भले हों हौसले तुम्हारे 

सरकारी फाइलों के जाल में फंसकर ठंडी हो जाओगे 


आम आदमी तो आम तक नही खरीद सकता 

आजकल मंडी में जाओगे तो मंडी हो जाओगे 


या सब चुप हैं या हूआं हूआं कर रहें हैं 

तनहा तुम भी चुप रहे तो शिखंडी हो जाओगे 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

ग़ज़ल , दाद दीजिए जनाब सरकारी विकास पर

      नमस्कार , आज मैने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं इस यकीन पर की आपको अच्छी लगेगी और आपका प्यार इसे मिलेगा |


दाद दीजिए जनाब सरकारी विकास पर 

56 भोग तैयार रखें हैं मंत्री निवास पर 


तय करना है आवाम का गला कितना काटा जाए

पार्टी मीटिंग रखी गयी है अध्यक्ष निवास पर 


अब बस बोतल खुलने की देर है फिर रामराज्य आएगा 

लोकतंत्र लिखा हुआ है हरेक गिलास पर 


ज्यादा से ज्यादा क्या होगा कोई भूख से मर जाएगा

इससे मातम थोड़ी ना मनेगा विधायक आवास पर 


जो बस फाइलों में दिखता है हकिकत में नही 

साहेब तरस आता है मुझे आपके ऐसे विकास पर 


बोलने को और भी बहुत कुछ बोल सकता है तनहा 

चुप हो रहा है मगर आप की लिहाज पर 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |



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