बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल , इस तरह वो मुझको पराया करती है

      नमस्कार , करीब तीन चार दिन पहले मै ने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं 


इस तरह वो मुझको पराया करती है 

मिलन का वक्त बातों में जाया करती है 


समंदर तो जानता है सीमाएं अपनी 

बाढ तो नदीयों में आया करती है 


जिंदगी खुद को मेरी सास समझने लगी है 

रोज चार बातें सुनाया करती है 


उसके और उसके रिश्ते में अब क्या बाकी है 

वो उसे भइया कहके बुलाया करती है 


प्रेम , प्यार , लव , इश्क़ , मुहब्बत और बाकी सब 

नही यार वो मुझे गणित समझाया करती है 


बर्फ़बारी की तरह जब आती हैं आफतें हयात में 

तनहा लोगों को मांओं की दुआएं बचाया करती है


   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

गुरुवार, 20 जनवरी 2022

ग़ज़ल , अब ये तहज़ीब की पाखंडी सहि नही जाती

      नमस्कार , आज ही मैने ये ग़ज़ल लिखी है और इसे अभी तक कहीं भी साझा नही किया सर्व प्रथम आपके समक्ष रख रहा हूं ग़ज़ल अच्छी हो गई हो तो आपका प्यार मिले 


अब ये तहज़ीब की पाखंडी सहि नही जाती 

जितनी भी दिलकश हो महबूबा घमंडी सहि नही जाती 


एक वक्त ऐसा भी तो आता है मुहब्बत में 

आती हुई गर्मी और जाती हुई ठंडी सहि नही जाती 


बहुत यकीन बाकी है सरकार पर अब भी मेरा 

मगर आखिरकार अब तो ये मंदी सहि नही जाती 


जरा सा झुकने से टूटने का डर बना रहता हो 

बेकार है ऐसी बुलंदी सहि नही जाती 


आजाद करो परिंदे को तुम अपनी कैद से 

मुहब्बत में तनहा नजरबंदी सहि नही जाती 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


मंगलवार, 11 जनवरी 2022

कविता , संस्कृतनिष्ठ है हिन्दी

      नमस्कार , विश्व भर के समस्त हिन्दी प्रेमीयों को 10 जनवरी यानी विश्व हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ | हिन्दी दिवस के इस अवसर पर हिन्दी को समर्पित मेरी एक कविता देखिए 


संस्कृतनिष्ठ है हिन्दी 


अंकल-आंट ही बस नही 

चाचा-चाची , मामा-मामी है 

फूफा-फूफी , मौसा-मौसी है 

ग्रैंडमोम-ग्रैंडडैड बस नही 

दादा-दादी , नाना-नानी है 

मोम-डैड नही माता-पिता है 

रिश्तों में और भी घनिष्ठ है हिन्दी

संस्कृतनिष्ठ है हिन्दी 


बेलकम नही स्वागतम् है 

ये थैंक्यू नही आभार है 

मैम-सर नही महोदया-महोदय है 

मिस्टर-मिसेस नही श्रीमान-श्रीमती है 

ये लकी नही भाग्यवती है 

रिश्पेक्टेड नही आदरणीय है 

और भी बहुत शिष्ट है हिन्दी

संस्कृतनिष्ठ है हिन्दी 


ये पानी नही है जल है 

ये धोखा नही है छल है 

ये दिल नही है ह्रदय है 

ये प्यार नही है प्रेम है 

ये हमला नही है आक्रमण है 

ये सैर नही है भ्रमण है 

शब्दों में और भी विशिष्ट है हिन्दी

संस्कृतनिष्ठ है हिन्दी 


   मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


शनिवार, 8 जनवरी 2022

कविता , वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा

      नमस्कार , जनवरी की सर्दी चल रही है ऐसे मे आपको गर्मी बड़ी याद आ रही होगी या गर्मी से ठीक पहले आने वाली एक ऐसी रितु है जो हर मन को भाती है जी हां मैं वही कह रहा हूं वसंत उसके मौसम की चाहत हो रही होगी तो उसी पर मेरी ये कविता पढ़े और इस पर अपने ख्याल हमसे साझा करें 


वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा 


ये सर्द कोई रात नही 

ठिठुरने की कोई बात नहीं 

पाले का भय नही 

कल नही आज नही 

अब शीत इस पर भला क्या कहेगा 

वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा 


न असमय रिमझिम फुहारों का भय 

न भिगने से बिमारीयों का भय 

न बाढ़ जैसे हालातों का भय 

विचरण करना होकर निर्भय 

अब तो बादल पुर्ण मौन रहेगा 

वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा 


ग्रीष्म का कहर कौन न जाने 

लू को भला कौन ना पहचाने 

हाय रे गर्मी हर कोई माने 

पर चिलचिलाती धूप न माने 

ये बहता हुआ पसीना भी कहेगा 

वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा 


     मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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