शनिवार, 8 जनवरी 2022

कविता , वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा

      नमस्कार , जनवरी की सर्दी चल रही है ऐसे मे आपको गर्मी बड़ी याद आ रही होगी या गर्मी से ठीक पहले आने वाली एक ऐसी रितु है जो हर मन को भाती है जी हां मैं वही कह रहा हूं वसंत उसके मौसम की चाहत हो रही होगी तो उसी पर मेरी ये कविता पढ़े और इस पर अपने ख्याल हमसे साझा करें 


वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा 


ये सर्द कोई रात नही 

ठिठुरने की कोई बात नहीं 

पाले का भय नही 

कल नही आज नही 

अब शीत इस पर भला क्या कहेगा 

वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा 


न असमय रिमझिम फुहारों का भय 

न भिगने से बिमारीयों का भय 

न बाढ़ जैसे हालातों का भय 

विचरण करना होकर निर्भय 

अब तो बादल पुर्ण मौन रहेगा 

वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा 


ग्रीष्म का कहर कौन न जाने 

लू को भला कौन ना पहचाने 

हाय रे गर्मी हर कोई माने 

पर चिलचिलाती धूप न माने 

ये बहता हुआ पसीना भी कहेगा 

वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा 


     मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , अनादि का कब जन्मदिवस है

      नमस्कार , आंग्ल नव वर्ष 2022 में हम प्रवेश कर चुके हैं इस नव वर्ष में यह मेरी प्रथम कविता है जिसे मैं आपको भेंट कर रहा हूं | मुझे भरोसा है कि मेरी यह कविता आपके मन को भाएगी |


अनादि का कब जन्मदिवस है 


वो प्रथम क्षण जब झंकार हुई 

स्वर फुटे लय बने राग हुए 

कौन सा वो प्रथम क्षण था 

ताल लगे आलाप लिए 

अब तक ये प्रश्न विकट है 

अनादि का कब जन्मदिवस है 


माता कौन , पिता कौन 

बन्धु कौन , संबंधी कौन 

मित्र कौन , शत्रु कौन 

शिष्य कौन , गुरु कौन 

बंधन मुक्त भाव प्रकट है 

अनादि का कब जन्मदिवस है 


सूक्ष्म , विशाल जग के निमित्त 

गुण , दोषों के निमित्त 

सृजन , विनाश के निमित्त 

काल , अकाल के निमित्त 

वही निरस वही सरस है 

अनादि का कब जन्मदिवस है 


    मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

ग़ज़ल , अपना कहने का अधिकार हार गई

      नमस्कार , आज सुबह मैने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा | एक जरा सा सलाह है आपके लिए यदि आप वर्तमान खबरों से अवगत होंगे तो आपको इस ग़ज़ल को पढ़ने का पुरा आनंद आएगा |


अपना कहने का अधिकार हार गई 

आज से वो मेरा ऐतबार हार गई 


जिनके सीने की नाप है 56 इंच 

हैरत है कि उनकी सरकार हार गई 


सब ने कहा ये जीता है वो जीता है 

मेरी नजर में खेतों की बहार हार गई 


जश्न की रौनक उस चूल्हें पर कहां है 

जिस पर आग भी हुई लाचार हार गई 


अब कौन इतनी हिम्मत दिखाएगा यहां 

मुल्क की आत्मा है बीमार हार गई 


यही तो सियासत है तनहा तुम क्या जानो 

ऐसा तो नहीं है कि पहली बार हार गई 


      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


गुरुवार, 18 नवंबर 2021

ग़ज़ल , एक दिन मैं सबको चौका दूंगा

एक दिन मैं सबको चौका दूंगा

उस दिन में जिंदगी को धोखा दूंगा

मेरी मौत पे शायद होंगे सब परिवार के लोग इक्ट्ठा
मैं मरकर ही सही सबको मिलने का एक मौका दूंगा

गर कोई करे जुरअत तुम्हें जबरदस्ती छूने की
तुम मां काली भी हो, मैं मेरी बेटी को ये समझा दूंगा

वो करती है गुमान मुझे छोड़ जाने का 
उसे मैं आसमां से एक परी बुलाकर दिखा दूंगा

अगर रखेगा खयाल वो तुम्हारा ए दोस्त
खुदा क़सम मैं मेरे रकीब को भी दुआ दूंगा

✍🏻Rahul Jerry

October 11 , 2021

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