गुरुवार, 11 नवंबर 2021

ग़ज़ल , दरिया के साथ कहीं समंदर नही जाता

      नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |


दरिया के साथ कहीं  समंदर  नही  जाता 

आंखों के साथ चलकर मंजर नही  जाता 


हर इंसान में होता है मगर कम या ज्यादा 

तमाम कोशिशों के बाद भी बंदर नही जाता 


ख्वाबों ने बना दिया है दिवालिया मुझको 

हर इंसान में रहता है सिकन्दर नही जाता 


तमाम लोग बोलते हैं झूठ किस मक्कारी से 

इसका सच मेरे हलक के अंदर नही जाता 


आखिरत का खौफ़ नही है तनहा मुझको 

रुह जाती है आसमान तक पंजर नही जाता 


    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्क्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , वो है मेरी तुमने जिसको नही देखा

      नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |


वो है मेरी तुमने जिसको नही देखा 

और पूछ रहे ह़़ो किसको नही देखा 


चमेली को गुलाब समझ बैठे हो तुम 

यकीनन ही तुमने उसको नही देखा 


हकिकत ये के सिक्के के दो पहलू हैं

इल्जाम से पहले इसको नही देखा 


कशीदा पढ़ रहे हो हूरों की शान में 

मतलब ज़मीन पर उसको नही देखा 


कुछ कहने से है चुप ही रहना बेहतर 

तनहा जबतक तुमने खुदको नही देखा 


    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , मुस्कान पर दिल दिया आह में मर गए

      नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |


मुस्कान पर दिल दिया आह  में मर गए 

कुछ उसकी राह में कुछ चाह में मर गए 


खौफ़नाक हादसे यू भी हो सकते हैं 

तारीफ़ पर फना हुए वाह में मर गए 


तमाम जुर्म करके बरी हो जाता है जमाना 

हम  एक  मोहब्बत के गुनाह  में मर  गए 


पहले झूठ फिर गैर से रिश्ता अब ये सुलूक 

आज से   तुम  मेरी   निगाह में   मर  गए 


इलाज बनकर वो फिर आए भी तो क्या 

कुछ नसीब के मारे तो कराह में मर गए 


कातिल से तो तुम बच निकले तनहा 

हम तो  अपनों  की पनाह में मर गए 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 6 अक्तूबर 2021

ग़ज़ल , मै ये बात कभी नहीं बताता उसको

     नमस्कार , आज कि रात मैने ये ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं आज सुबह आपके साथ साझा कर रहा हूं ग़ज़ल कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा 


मैं ये बात कभी नहीं बताता उनको 

मुहब्बत में लड़ने का हुनर नही आता उनको 


कहां कहां भटका हूं पानी की तलाश में 

वो मेरी प्यास समझते तो बताता उनको 


कितने जख्म दिए हैं उनकी बेरुखी ने 

दिल कोई चीज होती तो दिखाता उनको 


या खुदा उन्हें कोई तो गम दे रोने को 

मेरी चाहत वो मेरे कंधे पे रोते तो हंसाता उनको 


वो आज आसमान में बादल है नही तो 

चांद को उँगलीयों से छुके दिखाता उनको 


मलाल ये के असल में वो तो वो कोई हैं ही नहीं 

जब भी हम तनहा होते सताता उनको 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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